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वर्षान्त विशेष: 2016 का फ़िल्म-संगीत (भाग-3)

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला 2016 का फ़िल्म-संगीत   भाग-3 रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। हम इन दिनों हर शनिवार आपके लिए लेकर आ रहे हैं वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। अब तक आपने इस श्रृंखला में प्रथम चार महीनों में प्रदर्शित होने वाली फ़िल्मों के गीत-संगीत के बारे में जाना। आइए आज तीसरी कड़ी में चर्चा करें उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए मई और जून के महीनों में। म ई का महीना शुरु हुआ फ़िल्म ’वन नाइट स्टैण्ड’ से जो अपनी शीर्षक और सनी लीओन की वजह से काफ़ी चर्चा में रही। रति अग्निहोत्री के पुत्र तनुज विरवानी को ऐसी फ़िल्म में अभिनय करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी थ

महफ़िल ए कहकशां - 17, मेरा दिल तड़पे दिलदार बिना.. राहत साहब की दर्दीली आवाज़ में इस ग़मनशीं नज़्म का असर हज़ार गुणा हो जाता है

महफ़िल ए कहकशाँ 17   राहत फ़तेह अली खान दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज पेश है राहत फ़तेह अली खान की आवाज़ में एक पंजाबी नगमा|  मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

"मैं मूम्बई में होम सिक फील करता हूँ, तो लौटकर जम्मू आ जाता हूँ" - आदित्य शर्मा : एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है  एपिसोड - 41 वर्ष २०१६ की दो बड़ी फिल्मों ('बार बार देखो' और 'शिवाय') में इनके लिखे गीत शामिल रहे हैं, मिलिए इस उभरते हुए गीतकार आदित्य शर्मा से आज की हमारी महफ़िल में. 'नाच दे नि सारे' और 'रातें' जैसे गीतों के रचेता से सजीव सारथी की इस बातचीत का आनंद लें, बस प्ले का बट्टन दबाएँ और सुनें... ये एपिसोड आपको कैसा लगा, अपने विचार आप 09811036346 पर व्हाट्सएप भी कर हम तक पहुंचा सकते हैं, आपकी टिप्पणियां हमें प्रेरित भी करेगीं और हमारा मार्गदर्शन भी....इंतज़ार रहेगा. एक मुलाकात ज़रूरी है के इस एपिसोड के प्रायोजक थे अमेजोन डॉट कॉम, अमोज़ोन पर अब आप खरीद सकते हैं, कवि विनोद कुमार शुक्ल की प्रतिनिधि कविताओं का ये अनमोल संकलन, खरीदने के लिए क्लिक करें  एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें  मिलिए इन जबरदस्त कलाकारों से भी - कुणाल वर्मा ,  मंजीरा गांगुली ,  रितेश शाह ,  वरदान सिंह ,  यतीन्द्र मिश्र ,  विपिन

खलील जिब्रान की आनंद और पीड़ा

लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। इस शृंखला में पिछली बार आपने पूजा अनिल के स्वर में गीत चतुर्वेदी के उपन्यास " रानीखेत एक्सप्रेस के एक अंश " का वाचन सुना था। आज प्रस्तुत है विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार खलील जिब्रान की लघुकथा आनंद और पीड़ा जिसे स्वर दिया है उषा छाबड़ा ने। प्रस्तुत अंश का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 45 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। बलराम अग्रवाल द्वारा किये गए इस लघुकथा के अनुवाद का गद्य हिंदी समय पर पढा जा सकता है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। लेबनानी और अमेरिकी नागरिकता वाले लेखक खलील जिब्रान 6 जनवरी 1883 को सीरिया में जन्मे थे परंतु उनकी कर्मभूमि अमेरिका रही जहाँ सन् 1932 में छपी उनकी पुस्तक "द प्रॉ

राग सोहनी : SWARGOSHTHI – 296 : RAG SOHANI

स्वरगोष्ठी – 296 में आज नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 9 : राग सोहनी का गीत “प्रेम जोगन बन के, सुन्दर पिया ओर चली...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे राग सोहनी पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला में हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का समापन हम आगामी 25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर करेंगे। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए। यहीं निकट ही मुख्य

वर्षान्त विशेष: 2016 का फ़िल्म-संगीत (भाग-2)

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला 2016 का फ़िल्म-संगीत   भाग-2 रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। अगले पाँच सप्ताह, हर शनिवार हम आपके लिए लेकर आएँगे वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। आइए इस लघु श्रृंखला की दूसरी कड़ी में आज चर्चा करते हैं उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए मार्च और अप्रैल के महीनों में। 2016 के हिन्दी फ़िल्म गीत समीक्षा की पहली कड़ी आकर पिछले सप्ताह रुकी थी ’बॉलीवूड डायरीज़’ पर। मार्च का महीना शुरु हुआ फ़िल्म ’ज़ुबान’ से। इस फ़िल्म में तीन संगीतकार थे - आशु पाठक, मनराज पातर और इश्क बेक्टर। वरुण ग्रोवर और आशु पाठक का लिखा रशेल वरगीज़ का गीत "म्युज़िक इ

परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए.. पेश-ए-नज़र है अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी

कहकशाँ - 25 अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी    "परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की