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उषा छाबड़ा की लघुकथा अम्मा

लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। पिछली बार आपने अर्चना चावजी के स्वर में पूजा अनिल की मार्मिक कथा " माँ सब देखती है " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं, उषा छाबड़ा की लघुकथा अम्मा , उन्हीं के स्वर में। उषा जी साहित्यिक अभिरुचि वाली अध्यापिका हैं। वे पिछले उन्नीस वर्षों से दिल्ली पब्लिक स्कूल ,रोहिणी में अध्यापन कार्य में संलग्न हैं। उन्होंने कक्षा नर्सरी से कक्षा आठवीं तक के स्तर के बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तकें एवं व्याकरण की पुस्तक श्रृंखला भी लिखी हैं। वे बच्चों एवं शिक्षकों के लिए वर्कशॉप लेती रहती हैं। बच्चों को कहानियाँ सुनाना उन्हें बेहद पसंद है। उनकी कविताओं की पुस्तक "ताक धिना धिन" और उस पर आधारित ऑडियो सीडी प्रकाशित हो चुकी हैं। आप उनकी आवाज़ में पंडित सुदर्शन की कालजयी कहानी " हार की जीत " तथा उनकी अपनी कहानियाँ मुस्कान , " स्वेटर ", " बचपन का भोलापन " व प्रश्न पहले ही

राग दरबारी कान्हड़ा : SWARGOSHTHI – 270 : RAG DARABARI KANHDA

स्वरगोष्ठी – 270 में आज मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 3 : रफी और मदन की खूबसूरत ग़ज़ल ‘मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊँ कैसे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की तीसरी कड़ी में आज हमने राग दरबारी कान्हड़ा के स्वरों पर आधारित मदन मोहन का स्वरबद्ध किया, फिल्म ‘आपकी परछाइयाँ’ का एक गीत चुना है। इस गीत को पार्श्वगायक मोहम्मद रफी ने स्वर दिया है। मदन मोहन के स्वरबद्ध अधि

"भूखा मरना है तो मुंबई में जाकर मरूँ..." - नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 12   नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी   "भूखा मरना है तो मुंबई में जाकर मरूँ..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं।  आज का यह अंक केन्द्रित है जाने माने अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी पर।    फ़ि ल्म इंडस्ट्री के इस युग में

रेडियो प्लेबैक ओरिजिनल - तुमको खुशबू कहूं कि फूल कहूं या मोहब्बत का एक उसूल कहूं

प्लेबैक ओरिजिनलस् एक कोशिश है दुनिया भर में सक्रिय उभरते हुए गायक/संगीतकार और गीतकारों की कला को इस मंच के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने की. रेडियो प्लेबैक ओरिजिनल की  श्रृंखला में वर्ष २०१६ में हम लेकर आये हैं , उभरते हुए गायक और संगीतकार " आदित्य कुमार विक्रम " का संगीतबद्ध किया हुआ और उनकी अपनी आवाज में गाया हुआ गाना. इस ग़ज़ल के रचनाकार हैं हृदयेश मयंक ने... तुमको खुशबू कहूं कि फूल कहूं या मोहब्बत का एक उसूल कहूं तुम हो ताबीर मेरे ख़्वाबों की   इक हसीं ख़्वाब क्यों फ़िजूल कहूँ   तुम तो धरती हो इस वतन की दोस्त  कैसे चन्दन की कोई धूल कहूँ  जितने सज़दे किए थे तेरे लिए  इन दुआओं की हो क़बूल कहूँ आदित्य कुमार विक्रम वरिष्ठ कवि महेंद्र भटनागर  के गुणी सुपुत्र हैं. वर्तमान में आदित्य जी मुंबई में अपनी पहचान बनाने में प्रयासरत हैं. रेडिओ प्लेबैक इण्डिया परिवार की शुभकामनाएं आपके साथ हैं. श्रोतागण सुनें और अपनी टिप्पणियों के माध्यम से अपने विचार पहुंचाएं. 

आदमी बुलबुला है पानी का..... ’कहकशाँ’ में आज तख़्लीक-ए-गुलज़ार

कहकशाँ - 9 गुलज़ार की लिखी एक त्रिवेणी   "आदमी बुलबुला है पानी का..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ।  आज पेश है ग

"प्रीतम दा के साथ काम करना मेरे लिए कोई 'इतनी सी बात' नहीं" - गीतकार मनोज यादव

एक मुलाकात ज़रूरी है (10) व र्ष २०१६ के पहले ४ महीने में ही "हुआ है आज पहली बार", "मुर्रब्बा" और "इतनी सी बात है" जैसे हिट गीतों के रचनाकार मनोज यादव है आज के हमारे ख़ास मेहमान, कार्यक्रम एक मुलाकात ज़रूरी है में. सुनिए और जानिए क्या है मनोज यादव की कहानी इस सफलता के पीछे की, क्यों बचपन में मनोज हर फूल की चड्डी ढूंढें करते थे, क्यों रहा प्रीतम दा के साथ काम करना उनके लिए इतना ख़ास, और किन संगीतकारों के साथ काम करने के लिए लालायित हैं आज मनोज. आप इस एपिसोड को यहाँ से डाउनलोड भी कर सकते हैं.

राग भीमपलासी : SWARGOSHTHI – 269 : RAG BHIMPALASI

स्वरगोष्ठी – 269 में आज मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 2 : लता और मदन भैया का साथ ‘नैनों में बदरा छाए बिजली सी चमके हाय ऐसे में सजन मोहे गरवा लगाए...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर पिछले अंक से शुरू हुई हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का भी सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की और फिर उस राग की जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की दूसरी कड़ी में आज हमने राग भीमपलासी में उनका स्वरबद्ध किया, फिल्म ‘मेरा साया’ का एक गीत चुना है। इस गीत को पार्श्वगायिका लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। इस गीत को चुनने का एक कारण यह भी है