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गायिका अनुराधा पौडवाल के बचपन और शुरुआती दौर की स्मृतियाँ

स्मृतियों के स्वर - 13 गायिका अनुराधा पौडवाल के बचपन और शुरुआती दौर की स्मृतियाँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ, हमारे इस स्तम्भ में, जिसका शीर्षक है - 'स्मृतियों के स्वर', जिसमें हम और आप साथ मिल कर गुज़रते हैं स्मृतियों के इन हसीन गलियार

‘छेड़ दिये मेरे दिल के तार क्यों...’ : SWARGOSHTHI – 197 : RAG KAMOD

स्वरगोष्ठी – 197 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 6 : राग कामोद पार्श्वगायक किशोर कुमार के लिए जब उस्ताद अमानत अली खाँ ने स्वर दिया ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। छठें दशक के फिल्म संगीत में इस प्रकार के गीतों की संख्या अधिक थी। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के छठें अंक में आज हम आपसे 1958 में प्रदर्शित नृत्य प्रधान फिल्म ‘रागिनी’ के एक गीत पर चर्चा करेंगे। फिल्म का यह गीत राग कामोद के स्वरों में गूँथा गया है। पटियाला घराने के युगल गायक उस्ताद अमानत अली खाँ और फतेह अली खाँ ने इस गीत को स्वर दिया है। फिल्म के संगीतकार ओ.पी. नैयर ने इस गीत का प्

"अंगना आयेंगे साँवरिया..." - देवेन वर्मा को श्रद्धांजलि, उन्हीं के गाये इस गीत के माध्यम से

एक गीत सौ कहानियाँ - 47   देवेन वर्मा की आवाज़ में सुनिए- ‘अँगना आयेंगे साँवरिया ... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 47-वीं कड़ी में आज श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं अभिनेता देवेन वर्मा को उन्हीं के गाए 'दूसरा आदमी' फ़िल्म के गीत "अंग

‘झनक झनक पायल बाजे...’ : SWARGOSHTHI – 196 : RAG ADANA

स्वरगोष्ठी – 196 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 5 : राग अड़ाना फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ में उस्ताद अमीर खाँ ने गाया राग अड़ाना के स्वरों में यह गीत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के पाँचवें अंक में आज हम आपसे 1955 में प्रदर्शित, भारतीय फिल्म जगत की संगीत और नृत्य की प्रधानता वाली फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ के एक शीर्षक गीत- ‘झनक झनक पायल बाजे...’ पर चर्चा करेंगे। फिल्म के इस गीत में राग अड़ाना के स्वरों का ओजपूर्ण उपयोग किया गया है। भारतीय संगीत के उल्लेखनीय स्वरसाधक उस्ताद अमीर खाँ ने इस गीत को स्वर दिया है। खाँ साहब और पण्डित दत्

"दग़ा देके चले गए..." - सितारा देवी को श्रद्धा-सुमन, उन्हीं के गाये इस गीत के ज़रिए

एक गीत सौ कहानियाँ - 46   सितारा देवी का स्मरण करती एक विशेष प्रस्तुति  ‘ दग़ा देके चले गए ... ’     'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 46-वीं कड़ी में आज हम श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं कथक दिवा सितारा देवी को उन्हीं के गाये और उन्हीं पर फ़िल्माए गए

बोलती कहानियाँ: जयशंकर प्रसाद की कला

जयशंकर प्रसाद की कहानी कला 'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट काजल कुमार की लघुकथा ' लोकतंतर ' का पॉडकास्ट सुना था। आज हम लेकर आये हैं महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की कहानी " कला ", जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 11 मिनट 15 सेकंड। इसी कहानी का एक अन्य ऑडियो संस्करण बोलती कहानियाँ के लिए अनुराग शर्मा के स्वर में भी उपलब्ध है । यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानी, उपन्यास, नाटक, धारावाहिक, प्रहसन, झलकी, एकांकी, या लघुकथा को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। झुक जाती है मन की डाली, अपनी फलभरता के डर में। ~ जयशंकर प्रसाद (30-1-1889 - 14-1-1937) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी अब मैं घर जाऊंगी, अब मेरी शिक्षा समाप्त हो चुकी। ( जयशंकर प्रसाद की "कला" से

‘प्रेम जोगन बन के...’ : SWARGOSHTHI – 195 : RAG SOHANI

स्वरगोष्ठी – 195 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 4 : राग सोहनी एक बड़े मानदेय के एवज में उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने रचे मुगल-ए-आजम के मनोहारी गीत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के चौथे अंक में आज हम आपसे 1956 में प्रदर्शित, भारतीय फिल्म जगत की उल्लेखनीय फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के एक गीत- ‘प्रेम जोगन बन के...’ पर चर्चा करेंगे। फिल्म के इस गीत में राग सोहनी के स्वरों का भावपूर्ण उपयोग किया गया है। भारतीय संगीत के शीर्षस्थ साधक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ने इस गीत को स्वर दिया था। खाँ साहब ने अपने पूरे सांगीतिक जीवनकाल में एकमात्र फिल्म