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एक समृद्ध तंत्रवाद्य सुरबहार

स्वरगोष्ठी – 167 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 5 तंत्रवाद्य सुरबहार से उपजते गम्भीर और गमकयुक्त सुरों की बहार   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की पाँचवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने सहयोगी सुमित चक्रवर्ती के साथ सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का उल्लेख करेंगे। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे स्वरवाद्य की चर्चा करेंगे जिसका प्रचलन अब लगभग नहीं के बराबर हो रहा है। आज के सर्वाधिक प्रचलित तंत्रवाद्य स

गायिका जुथिका रॉय के पहली बार रेडियो पर गाने का अनुभव

स्मृतियों के स्वर - 01 गायिका जुथिका रॉय के पहली बार रेडियो पर गाने का अनुभव 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। आज से 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लायूंगा कुछ अनमोल मोतियाँ और आपके साथ बाँटूंगा हमारे इस नये स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर। हम और आप साथ मिल कर गुज़रेंगे स्मृतियों के इन ह

दिल्ली और लाहौर के बीच बंटी संवेदनाएं

ताज़ा सुर ताल - जो दिखते हो  लकीरें है तो रहने दो, किसी ने रूठ कर गुस्से में खींच दी थी..उन्हीं को अब बनाओ पाला आओ कबड्डी खेलते हैं...लकीरें है तो रहने दो ....गुलज़ार साहब ने इन्हीं शब्दों के साथ इस फिल्म को आगाज़ दिया है. क्या दिल्ली क्या लाहौर  एक अलग तरह का अंदाज़े बयां है जो बंटवारे का दर्द बेहद संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है. अभिनेता विजय राज़ की ये पहली फिल्म है बतौर निर्देशक. फिल्म में विजय राज़ के साथ हैं अभिनेता मनु ऋषि जो फिल्म के संवाद लेखक भी हैं. वैसे फिल्म में गीत संगीत का पार्श्व संगीत की तरह ही इस्तेमाल हुआ है, पर जब गीत लिखे हों गुलज़ार साहब ने और संगीत हो सन्देश संदलिया का तो गीत की एक चर्चा तो बनती ही है. तो लीजिये आज सुनिए ताज़ा सुर ताल में इसी फिल्म का एक गीत जिसे गुलज़ार साहब ने इतने खूबसूरत अंदाज़ में लिखा है कि पूरी फिल्म का सार सिमट के आ जाता है इस नन्हें से गीत में, शफकत अमानत अली खान साहब की परिपक्व आवाज़ में सुनिए जो दिखते हो....

छुपा कर प्यार जताती नायिका और छेड़ छाड़ करती सखियाँ

खरा सोना गीत - अँखियाँ भूल गयी है सोना    हमारी प्रस्तोता श्वेता पांडे के साथ गुनगुनाएं ये छेड़ छाड़ से भरा ये नटखट सा गीत....स्क्रिप्ट है सुजॉय चट्टर्जी की और प्रस्तुति है संज्ञा टंडन की....  

लम्बी जुदाई की विसिल और युवा श्रोफ का बाजा

ताज़ा सुर ताल - विसिल बाजा   सुपर स्टार जैकी श्रोफ को फिल्मों में मौका दिया सदाबहार देव साहब ने, मगर उन्हें असली पहचान मिली सुभाष घई कृत हीरो  की जबरदस्त कमियाबी से. कौन इनकार कर सकता है कि फिल्म हीरो  की कामियाबी में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत का महत्वपूर्ण योगदान था. फिल्म का हर गीत आज तक श्रोताओं के दिलो जेहन में बसा हुआ है. बरसों बाद जब जैकी के सुपुत्र टाइगर को फिल्मों में लांच करने की बारी आई तो जैकी को याद आई फिर एक बार अपनी पहली हिट फिल्म के गीतों की. मरहूम रेशमा का गाया लम्बी जुदाई  गीत में एक बेहद खूबसूरत बांसुरी का पीस था. सालों बाद हीरोपंती  में अब उसी मधुर धुन को विसिल में बजाया गया है, और सच कहें तो यही इस गीत की सबसे बड़ी खूबी है. गीत में आगे पीछे क्या गाया जा रहा है इस पर ध्यान ही नहीं जाता बस इंतज़ार रहता है की कब ये धुन बजे. कहना गलत नहीं होगा की टाईगर इस गीत पर जम कर नाचे हैं, यक़ीनन उनमें एक भावी सुपर स्टार के सभी गुण दर्शित हो रहे हैं. मंजीत, निंदी और कौर रफ़्तार के गाये इस गीत में भरपूर पंजाबियत है, और भरपूर मौज मस्ती भी....लीजिये सुनिए ये कदम थिरकाता गीत आ

हसरत की कलम से निकला मुकेश का गाया ये दर्दभरा गीत

खरा सोना गीत - आंसू भरी है ये जीवन की राहें.... हमारे प्रस्तोता अनुज श्रीवास्तव के साथ आज याद करें मुकेश के इस क्लासिक गीत की. स्क्रिप्ट है सुजॉय चट्टर्जी की और प्रस्तुति में मेहनत है संज्ञा टंडन की...लीजिये सुनिए.   

अनूठा तालवाद्य नक्कारा अथवा नगाड़ा

स्वरगोष्ठी – 166 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 4 'नक्कारखाने में तूती की आवाज़'- अब तो इस मुहावरे का अर्थ ही बदल चुका है  'तूती के शोर में गुम हुआ नक्कारा'   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की चौथी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का उल्लेख करेंगे। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे तालवाद्य की चर्चा करेंगे जिसका लोकसंगीत और लोकनाट्य में सर्वाधिक प्र