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भोर की लाली का आह्वान करते आठवें प्रहर के राग

स्वरगोष्ठी – 110 में आज राग और प्रहर – 8 / समापन कड़ी ‘देख वेख मन ललचाय...’ : सोहनी, भटियार, ललित और कलिंगड़ा रागों के रंग आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में उपस्थित हूँ। पिछली सात कड़ियों में हमने दिन और रात के सात प्रहरों में गाये-बजाये जाने वाले रागों पर चर्चा की है। आज इस श्रृंखला की समापन कड़ी है और इस कड़ी में हम आपसे आठवें प्रहर अर्थात रात्रि के चौथे प्रहर के कुछ रागों की चर्चा करेंगे। आठवाँ प्रहर रात्रि के लगभग तीन बजे से लेकर सूर्योदय की लाली फूटने तक की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में प्रस्तुत किये जाने वाले रागों में उजाले का आह्वान, रात की कालिमा व्यतीत होने की कामना और कुछ अलसाए भावों की अभिव्यक्ति होती है। श्रृंखला की समापन कड़ी में आज हम आपसे राग सोहनी, भटियार, ललित और कलिंगड़ा की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे।  आ ठवें प्रहर अर्थात रात्रि के अन्तिम प्रहर में गाये-बजाये जाने वाले रागों में आज सबसे पहले हम आपको र

'सिने पहेली' को हम आज दे रहे हैं अल्प-विराम!

सिने-पहेली   में आज   छठे सेगमेण्ट के विजेताओं की घोषणा 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, 'सिने पहेली' के सफ़र को तय करते हुए हम और आप, साथ-साथ आज आ पहुँचे हैं छठे सेगमेण्ट के नतीजे पर। अर्तात्‍ हमने पूरे कर लिए इस प्रतियोगिता के 60 अंक। कुछ असुविधाओं के कारण हमें 'सिने पहेली' प्रतियोगिता को कुछ दिनों के लिए स्थगित करना पड़ रहा है, जिसका हमें बेहद अफ़सोस है। पर 6 अप्रैल से इस यात्रा को दोबारा शुरू किया जाएगा 61-वें अंक के साथ। आइए आज के इस अंक में आपको सबसे पहले बतायें पिछले अंक में पूछे गए सवालों के सही जवाब। पिछली पहेली का हल 1. जीतेन्द्र 2. राजकुमार 3. कैफी आज़मी 4. लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल 5. राग बहार 6. तीनताल और दादरा 7. शबाब 1954 8. सलिल चौधरी 9. पण्डित भीमसेन जोशी और मन्ना डे 10. पंडित इन्द्र पिछली पहेली का परिणाम इस बार 'सिने पहेली' में कुल 4 प्रतियोगियों ने भाग लिया। सबसे पहली 100% सही जवाब भेज कर इस बार 'सरताज प्रतियोगी'

इस तरह मोहम्मद रफी का पार्श्वगायन के क्षेत्र में प्रवेश हुआ

  भारतीय सिनेमा के सौ साल – 37 कारवाँ सिने-संगीत का   ‘एक बार उन्हें मिला दे, फिर मेरी तौबा मौला...’ भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और मा ह के दूसरे और चौथे गुरुवार को हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ स्तम्भ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। आज के अंक में हम भारतीय फिल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक मोहम्मद रफी के प्रारम्भिक दौर का ज़िक्र करेंगे।  1944 में रफ़ी ने बम्बई का रुख़ किया जहाँ श्यामसुन्दर ने ही उन्हें ‘विलेज गर्ल’ (उर्फ़ ‘गाँव की गोरी’) में गाने का मौका दिया। पर यह फ़िल्म १९४५ में प्रदर्शित हुई। इससे पहले १९४४ में ‘पहले आप’ प्रदर्शित हो गई जिसमें नौशाद ने रफ़ी से कुछ गीत गवाए थे। नौशाद से रफ़ी को मिलवाने का श्रेय हमीद भाई को जाता है। उन्होंने ही लखनऊ जाकर नौश

राग बहार- एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  राग बसंत बहार  स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

तपन शर्मा की लघुकथा शवयात्रा

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने   अनुराग शर्मा  की आवाज़ में रमेश बत्तरा की लघुकथा " नौकरी " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं तपन शर्मा की लघुकथा " शवयात्रा ", जिसका वाचन किया है  अनुराग शर्मा  ने। इस लघुकथा का गद्य कहानी कलश पर उपलब्ध है। इसका कुल प्रसारण समय 3 मिनट 24 सेकंड है। आप भी सुनें और अपने मित्रों और परिचितों को भी सुनाएँ  और हमें यह भी बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। युवा लेखक तपन शर्मा हिन्दी के उभरते हुए हस्ताक्षर हैं। उनकी रचनाएँ उनके ब्लॉग धूप छांव पर भी पढ़ी जा सकती हैं। हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "ओह। पर मैंने तो कोई खबर नहीं देखी। ब्रेकिंग न्यूज़ में इसका कोई जिक्र ही नहीं था" ( तप

दोस्ती के तागों में पिरोये नाज़ुक से ज़ज्बात -"काई पो छे"

प्लेबैक वाणी -35 - संगीत समीक्षा - काई पो छे रूठे ख्वाबों को मना लेंगें, कटी पतंगों को थामेगें, सुलझा लेंगें उलझे रिश्तों का मांजा... गिटार के पेचों से खुलता है ये गीत, सारंगी के मांजे में परवाज़ चढ़ाता है, और अमित के सुरों से जब उन्हीं के स्वर मिलते हैं तो एक सकारात्मक उर्जा का संचार होता है. स्वानंद के शब्दों में बात है रिश्तों की, दोस्ती की और जिंदगी को जीत की दहलीज तक पहुंचा देने वाले ज़ज्बे के. अमित त्रिवेदी ने दिया है श्रोताओं को एक बेशकीमती तोहफा इस गीत के माध्यम से, मुझे जो सबसे अधिक प्रभावित करती है वो है वाध्यों का उनका चुनाव, हर गीत को किन किन गहनों से सजाना है ये अमित बखूबी जानते हैं. मुझे यकीन है कि मेरी ही तरह बहुत से श्रोताओं को उनकी हर नई पेशकश का बेसब्री से इन्तेज़ार रहता है.  आज हम जिक्र कर रहे हैं  ‘ काई पो छे ’  के संगीत की. उलझे रिश्तों को सुलझाते हुए आईये आगे बढते हैं अमित के संगीतबद्ध इस एल्बम में सजे अगले गीत की तरफ. अगला गीत भी दोस्ती के इर्द गिर्द है, मिली नायर की आवाज़ में गजब की ताजगी है, जैसे शबनम के मोती हों सुनहरी धूप में लि

सातवें प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी – 109 में आज राग और प्रहर – 7 दरबारी, अड़ाना, शाहाना और बसन्त बहार : ढलती रात के ऊर्जावान राग आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ संगीत-प्रेमियों की महफिल में उपस्थित हूँ। आपको याद ही होगा कि इन दिनों हम ‘राग और प्रहर’ विषय पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। इस श्रृंखला में अब तक सूर्योदय से लेकर छठें प्रहर तक के रागों की चर्चा हम कर चुके हैं। आज हम आपसे सातवें प्रहर के कुछ रागों पर चर्चा करेंगे। सातवाँ प्रहर अर्थात रात्रि का तीसरा प्रहर मध्यरात्रि से लेकर ढलती हुई रात्रि के लगभग 3 बजे तक के बीच की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में गाने-बजाने वाले राग ढलती रात में ऊर्जा का संचार करने में समर्थ होते हैं। प्रायः कान्हड़ा अंग के राग इस प्रहर के लिए अधिक उपयुक्त माने जाते हैं। आज हम आपको कान्हड़ा अंग के रागों- दरबारी, अड़ाना और शाहाना के अतिरिक्त ऋतु-प्रधान राग बसन्त बहार की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे।  म ध्यरात्रि के परिवेश को संवेदनशील बनाने और विनय