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सातवें प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी – 109 में आज राग और प्रहर – 7 दरबारी, अड़ाना, शाहाना और बसन्त बहार : ढलती रात के ऊर्जावान राग आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ संगीत-प्रेमियों की महफिल में उपस्थित हूँ। आपको याद ही होगा कि इन दिनों हम ‘राग और प्रहर’ विषय पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। इस श्रृंखला में अब तक सूर्योदय से लेकर छठें प्रहर तक के रागों की चर्चा हम कर चुके हैं। आज हम आपसे सातवें प्रहर के कुछ रागों पर चर्चा करेंगे। सातवाँ प्रहर अर्थात रात्रि का तीसरा प्रहर मध्यरात्रि से लेकर ढलती हुई रात्रि के लगभग 3 बजे तक के बीच की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में गाने-बजाने वाले राग ढलती रात में ऊर्जा का संचार करने में समर्थ होते हैं। प्रायः कान्हड़ा अंग के राग इस प्रहर के लिए अधिक उपयुक्त माने जाते हैं। आज हम आपको कान्हड़ा अंग के रागों- दरबारी, अड़ाना और शाहाना के अतिरिक्त ऋतु-प्रधान राग बसन्त बहार की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे।  म ध्यरात्रि के परिवेश को संवेदनशील बनाने और विनय

सिने-पहेली में आज : ऋतु के अनुकूल गीतों को पहचानिए

प्रसारण तिथि – फरवरी 23, 2013 सिने-पहेली – 60 में आज   ऋतु के अनुकूल गीतों को पहचानिए और सुलझाइये पहेलियाँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को आज कृष्णमोहन मिश्र का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, सुजॉय चटर्जी की व्यस्तता के कारण सिने-पहेली का यह अंक प्रस्तुत करने का दायित्व मुझ पर आ गया है। इन दिनों शीत ऋतु अपनी प्रभुता को समेटने लगा है और ग्रीष्म ऋतु आगमन की आहट देने लगा है। ऋतु परिवर्तन का यह काल बहुत सुहाना होता है। इसे ही बसन्त ॠतु कहा जाता है। इसी ऋतु को ऋतुराज के विशेषण से अलंकृत भी किया जाता है। आजकल परिवेश में मन्द-मन्द बयार, चारों ओर फूलों की छटा, पंछियों का कलरव व्याप्त है। आज की 'सिने-पहेली' को हमने ऐसे ही परिवेश को चित्रित करते कुछ गीतों से सुवासित करने का प्रयास किया है। आज की पहेली : ऋतु प्रधान गीतों को पहचानिए आज की पहेली में हम आपको निम्नलिखित दस फिल्मी गीतों के अंश सुनवाते हैं। प्रत्येक गीतांश के साथ क्रमशः गीत से सम्बन्धित प्रश्न पूछे गए हैं। आपको क्रमानुसार इन प्रश्नों के उत्तर देने हैं। आइए शुरू कर

'एक गीत सौ कहानियाँ' में आज : शमशाद बेगम का पहला गीत

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 36 एक गीत सौ कहानियाँ – 22 शमशाद बेगम की पहली हिन्दी फिल्म ‘खजांची’ का एक गीत : ‘सावन के नज़ारे हैं...’ आपके प्रिय स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी ने 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर गत वर्ष 'एक गीत सौ कहानियाँ' नामक स्तम्भ आरम्भ किया था, जिसके अन्तर्गत हर अंक में वे किसी फिल्मी या गैर-फिल्मी गीत की विशेषताओं और लोकप्रियता पर चर्चा करते थे। यह स्तम्भ 20 अंकों के बाद मई 2012 में स्थगित कर दिया गया था। गत माह से हमने इस स्तम्भ का प्रकाशन ‘भारतीय सिनेमा के सौ साल’ श्रृंखला के अन्तर्गत पुनः शुरू किया है। आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तम्भ की 22वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत कर रहे हैं, सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका शमशाद बेगम की पहली हिन्दी ‘खजांची’ में गाये उनके पहले गीत "सावन के नज़ारे हैं…" की चर्चा।   दो स्तों, आज ‘एक गीत सौ कहानियाँ’ का अंक समर्पित है फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की एक लाजवाब पार्श्वगायिका को। ये वो गायिका हैं दोस्तों जिनकी आवाज़ की तारीफ़ में संगीतकार नौशाद साहब नें कहा था कि इसमें

रमेश बत्तरा की लघुकथा "नौकरी"

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने   अर्चना चावजी ,  अनुभव प्रिय  और  सलिल वर्मा  की आवाज़ में  प्राख्यात अमेरिकी कथाकार  ओ हेनरी  की अंग्रेज़ी कहानी "A service of love" के हिन्दी अनुवाद " इबादत " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं रमेश बत्रा की लघुकथा " नौकरी ", जिसका वाचन किया है  अनुराग शर्मा  ने। इस लघुकथा का गद्य भारतीय साहित्य संग्रह पर उपलब्ध है। इसका कुल प्रसारण समय 2 मिनट 39 सेकंड है। आप भी सुनें और अपने मित्रों और परिचितों को भी सुनाएँ  और हमें यह भी बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। रमेश बत्तरा हिन्दी लघुकथा के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों में से एक हैं। हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी ‘‘बॉस अहमक है, गलतियाँ

मर्डर ३ में फिर ले आया दिल प्रीतम और सैयद को एक साथ.

प्लेबैक वाणी -34 - संगीत समीक्षा - मर्डर ३ भट्ट कैम्प की फिल्मों के बारे में हम पहले भी ये कह चुके हैं कि ये एक ऐसा बैनर है जो कहानी की जरुरत के हिसाब से एल्बम में गीतों को सजाता है, जबरदस्ती का कोई आईटम नहीं, कोई गैर जरूरी ताम झाम नहीं. ये एक ऐसा बैनर है जहाँ आज भी मेलोडी और शाब्दिक सौन्दर्य को ही तरजीह दी जाती है.  आईये इस बैनर की नई पेशकश ‘मर्डर ३’ के संगीत के बारे में जानें. ‘मर्डर’ के पहले दो संस्करणों का संगीत बेहद सफल और मधुर रहा हैं, विशेषकर अनु मालिक का रचे पहले संस्करण के गीतों को श्रोता अब तक नहीं भूले हैं. ‘मर्डर ३’ के संगीतकार हैं प्रीतम और गीतकार हैं सैयद कादरी. रोक्सेन बैंड के मुस्तफा जाहिद की आवाज़ में है “हम जी लेंगें”. मुस्तफा की आवाज़ अन्य रोक् गायकों से कुछ अलग नहीं है, पर शब्दों से सैयद ने गीत को दिलचस्प बनाये रखा है – ‘किसको मिला संग उम्र भर का यहाँ, वो हो रुलाये दिल चाहे जिसको सदा...’, गीत युवा दिलों को ख़ासा आकर्षित करेगा क्योंकि प्रेम और दिल टूटने के अनुभव से गुजर चुके सभी दिल इस गीत से खुद को जोड़ पायेंगें. ज

छठें प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी-108 में आज   राग और प्रहर – 6 ‘तेरे सुर और मेरे गीत...’ : रात्रि के अन्धकार को प्रकाशित करते राग   ‘स्वरगोष्ठी’ के 108वें अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का इस मंच पर हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इन दिनों ‘स्वरगोष्ठी’ में विभिन्न आठ प्रहरों के रागों पर चर्चा जारी है। पिछ ले अंक में हमने पाँचवें प्रहर के कुछ राग प्रस्तुत किये थे। आज हम आपके सम्मुख छठें प्रहर के कुछ आकर्षक राग लेकर उपस्थित हुए हैं। छठाँ प्रहर अर्थात रात्रि का दूसरा प्रहर, रात्रि 9 बजे से लेकर मध्यरात्रि तक की अवधि को माना जाता है। हमारे देश में अधिकतर संगीत सभाएँ पाँचवें और छठें प्रहर में आयोजित होती हैं, इसलिए इस प्रहर के राग संगीत-प्रेमियों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं। छठें प्रहर के रागों में आज हम आपके लिए राग बिहाग, गोरख कल्याण, बागेश्री और मालकौंस की कुछ चुनी हुई रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। छ ठाँ प्रहर अर्थात रात्रि के दूसरे प्रहर में निखरने वाला एक राग है, गोरख कल्याण। इस राग के गायन-वादन से कुछ ऐसी अनुभूति होने लगती है मानो श्रृंगार र