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'स्वरगोष्ठी' में ठुमरी : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’

स्वरगोष्ठी-९९ में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – १० विरहिणी नायिका की व्यथा : ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के ९९वें अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, शास्त्रीय, उप-शास्त्रीय और लोक संगीत पर केन्द्रित आपका यह प्रिय स्तम्भ दो सप्ताह बाद दो वर्ष पूरे करने जा रहा है। आगामी २३ और ३० दिसम्बर को हम आपके लिए दो विशेष अंक प्रस्तुत करेंगे। वर्ष के अन्तिम रविवार के अंक में हम इस वर्ष की पहेली के विजेताओं के नामों की घोषणा भी करेंगे। आपके लिए कुछ और सूचनाएँ है, जिन्हें हम समय-समय पर आपको देते रहेंगे। आइए, अब आरम्भ करते हैं, आज का अंक। आपको स्मरण ही होगा कि इन दिनों हमारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ जारी है। इस श्रृंखला की दसवीं कड़ी में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं राग भैरवी अथवा सिन्धु भैरवी की विख्यात ठुमरी- ‘का करूँ सजनी आए न बालम...’ के विविध प्रयोगों पर एक चर्चा।  ‘स्व रगोष्ठी’ के ९९वें अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों क

आज की 'सिने पहेली' में ट्रैक सुन कर पहचानिये गीतों को

8 दिसम्बर, 2012 सिने-पहेली - 49  में आज   ट्रैक सुन कर पहचानिये गीतों को     'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब फ़िल्मी गीतों की लाइव रेकॉर्डिंग हुआ करती थी। संगीतकार, संयोजक, गायक, वाद्यवृन्द, रेकॉर्डिस्ट, सभी एक साथ स्टुडियो में इकट्ठा होकर गीत रेकॉर्ड किया करते। फिर तकनीकी विकास के साथ-साथ ऐसे विकल्प खुल गए कि लाइव रेकॉर्डिंग ट्रैक रेकॉर्डिंग में बदल गई। क्या आपको पता है लता मंगेशकर का गाया वह कौन सा पहला गीत है जो ट्रैक पर रेकॉर्ड हुआ था? वह गीत है हेमन्त कुमार के संगीत निर्देशन में फ़िल्म 'दुर्गेश नन्दिनी' का, "कहाँ ले चले हो बता दो मुसाफ़िर..." । यह लता जी ने खुद मुझे ट्विटर पर बताया था। ख़ैर, आप सोच रहे होंगे कि आज मैं ट्रैक रेकॉर्डिंग् की बात लेकर क्यों बैठ गया! दरअसल बात ऐसी है कि आज की पहेली भी इसी से सम्बन्धित है। तो चलिए, हो जाइए तैयार, आज की पहेली को सुलझाने के लिए।  आज की पहेली : गान पहचान नीचे 9 ऑडियो प्लेयर के लिंक दिये गये हैं। हर प्लेयर पर आप

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल-26

भूली-बिसरी यादें  भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष श्रृंखला, ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आपके बीच उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज मास का पहला गुरुवार है और इस दिन हम आपके लिए मूक और सवाक फिल्मों की कुछ रोचक दास्तान लेकर आते हैं। आज के अंक में हम आपसे 1918 में बनी कुछ मूक फिल्मों तथा सवाक फिल्मों के अन्तर्गत 1943 में बनी फिल्म 'हमारी बात' पर चर्चा करेंगे।  यादें मूक फिल्मों की : चार भागों में बनी फिल्म ‘श्रीराम वनवास’   फिल्म 'श्रीकृष्ण जन्म' का दृश्य इ स श्रृंखला के पिछले अंक में हम आपसे मूक फिल्मों से जुड़े 1970 तक के कुछ प्रमुख प्रसंगों का जिक्र कर चुके हैं। आज हम उससे आगे के कुछ प्रसंगों पर चर्चा करेंगे। 1917 में जहाँ पाँच मूक फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन हुआ था वहीं 1918 में आठ फिल्में प्रदर्शित की गई। इन आठ फिल्मों में से ‘दाता कर्ण’, ‘प्रोफेसर राममूर्ति ऑन स्क्रीन’ और ‘नल दमयन्ती’ का निर्माण तत्क

राग गारा - एक संगीतमय चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट 22

बोलती कहानियाँ: आसक्ति की मृगतृष्णा

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में प्राख्यात अमेरिकी कथाकार ओ हेनरी की अंग्रेज़ी कहानी "द लास्ट लीफ" का हिन्दी अनुवाद " "अनोखी कलाकृति" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं हिन्दी कवि, लेखक, ब्लॉगर और विचारक श्री हंसराज “सुज्ञ” की लघुकथा " आसक्ति की मृगतृष्णा ", अनुराग शर्मा की आवाज़ में। आज श्री हंसराज सुज्ञ जी का जन्मदिन भी है। रेडियो प्लेबैक इंडिया परिवार की ओर से उन्हें हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएँ! प्रस्तुत कहानी "आसक्ति की मृगतृष्णा" का पाठ हिन्दी ब्लॉग श्रुत-सुज्ञ पर पढ़ा जा सकता है। कहानी का कुल प्रसारण समय ३ मिनट १३ सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। “सामान्य

सलमान खान की दबंग -२ का दबंग संगीत

प्लेबैक वाणी -27 -संगीत समीक्षा -  दबंग - २ दबंग का द्रितीय संस्करण सलमान खान की एक बहुप्रतीक्षित फिल्म है और शायद वर्ष २०१२ की अंतिम बड़ी फिल्म भी. पिछले संस्करण की तरह इस फिल्म से भी रिकॉर्ड तोड़ सफलता की उम्मीद की जा रही है. इस बार फिल्म के निर्देशन का जिम्मा संभाला है अरबाज़ खान ने. संगीत है पहले संस्करण के ही साजिद वाजिद का और गीतकार हैं समीर.   लगता है जब फिल्म का संगीत सोचा गया तो बेहद प्रमुखता से इस बात का ख्याल रखा गया कि अल्बम के गीतों की संख्या, उनकी ध्वनि और यहाँ तक कि गायक गायिका का चुनाव भी उसी सफल पैमाने को ध्यान में रखकर तय किया गया होगा. अब पहले ही गीत को लें. ‘दगाबाज़ रे’ में फिर एक बार राहत फ़तेह अली खान और श्रेया की आवाजें महकी है और इस गीत की ध्वनि भी ‘तेरे मस्त मस्त दो नैन’ जैसी ही है. मगर फिर भी गीत बेहद मधुर है. सुरीली आवाजों और नशीली धुन के साथ साथ दो बातें और हैं जो इस गीत को पहले गीत की तरह से कमियाबी दे सकता है. एक तो समीर के शब्द सुन्दर और मिटटी से जुड़े हुए हैं और दूसरा साजिद वाजिद का संगीत संयोजन कमाल का है. पहले और दूसरे अंतरे के दरमियाँ

स्वरगोष्ठी में आज : ठुमरी- ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’

'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की पहली वर्षगाँठ पर सभी पाठकों-श्रोताओं का हार्दिक अभिनन्दन     स्वरगोष्ठी-९८  में आज   फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी –९  श्रृंगार रस से परिपूर्ण ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ फिल्मों में शामिल की गई पारम्परिक ठुमरियों पर केन्द्रित ‘स्वरगोष्ठी’ की लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, आज का यह अंक जारी श्रृंखला की ९वीं कड़ी है और आज की इस कड़ी में हम आपको पहले राग पीलू की ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन, काजर बिन कारे... ’ का पारम्परिक स्वरूप, और फिर इसी ठुमरी का फिल्मी स्वरूप प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा इस अंक में एकल तथा युगल ठुमरी गायन की परम्परा के बारे में आपके साथ चर्चा करेंगे।  आ ज पीलू की यह ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ हम आपको सबसे पहले गायिका इकबाल बानो की आवाज़ में सुनवाते हैं। इकबाल बनो का जन्म १९३५ में दिल्ली के एक सामान्य परिवार में हुआ था। बचपन में ही उनकी प्रतिभा क