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फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ६

स्वरगोष्ठी – ९५ में आज श्रृंगार रस से अभिसिंचित ठुमरी- ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ की कड़ियों में आप सुन रहे हैं, कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ, जिन्हें फिल्मों में पूरे आन, बान और शान के साथ शामिल किया गया। इस श्रृंखला में आप कुछ ऐसी ही पारम्परिक ठुमरियाँ उनके फिल्मी रूप के साथ सुन रहे हैं। आज के अंक में हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, भैरवी की एक बेहद लोकप्रिय ठुमरी- ‘बाजूबन्द खुल खुल जाय...’। आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करते हुए, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आरम्भ करता हूँ, ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला का नया अंक। ठु मरी भारतीय संगीत की वह रसपूर्ण शैली है, जिसमें स्वर और साहित्य का समान महत्त्व होता है। यह भावप्रधान और चपल चाल वाला गीत है। मुख्यतः यह श्रृंगार प्रधान गीत होता है; जिसमें लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का श्रृंगार उपस्थित होता है। इसीलिए ठुमरी में लोकगीत जैसी कोमल शब्दावली और अपेक्षाकृत हलके रागों का ही प्रयोग होता है। अधिकतर ठुमरियों क

नये खिलाड़ियों के लिए भी मौका है महाविजेता बनने का सिने पहेली में...

(3 नवम्बर, 2012) सिने-पहेली # 44 ' रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, आज सबसे पहले इस अंक में हम दो नये खिलाड़ियों का स्वागत करना चाहेंगे। पिछले सप्ताह इस प्रतियोगिता में जुड़े हैं बीकानेर के गणेश एस. पालीवाल और इस सप्ताह हमारे साथ जुड़े हैं जयपुर के पुनीत झा। वाकई आश्चर्य की बात है कि 'सिने पहेली' के लगभग 50% प्रतियोगी राजस्थान के रहने वाले हैं। बीकानेर, जयपुर, कोटा और चित्तौड़गढ़ को मिलाकर कुल 8 प्रतियोगी रंगीले राजस्थान से ताल्लुख रखते हैं। आप सब भी अपने मित्रों को इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कह कर अपने राज्य के प्रतियोगियों की संख्या को बढ़ा सकते हैं। क्या पता हम प्रतियोगिता के अंत में सर्वाधिक प्रतियोगी वाले राज्य के नाम भी कोई इनाम घोषित कर दें!!! ख़ैर, आइए आगे बढ़ते हैं हमारे नये खिलाड़ियों के आह्वान के साथ... नये प्रतियोगियों का आह्वान नये प्रतियोगी, जो इस मज़ेदार खेल से जुड़ना चाहते हैं, उनके लिए हम यह बता दें कि अभी भी देर नहीं हुई है। इस प्रतियोगिता के नियम क

स्मृतियों के झरोखे से : पहली महिला संगीतकार

भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आपके बीच उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज मास का पहला गुरुवार है और इस दिन हम आपके लिए मूक और सवाक फिल्मों की कुछ रोचक दास्तान लेकर आते हैं। तो आइए पलटते हैं, भारतीय फिल्म-इतिहास के कुछ सुनहरे पृष्ठों को। यादें मूक फिल्मों की : बम्बई, नासिक और मद्रास फिल्म निर्माण के शुरुआती केन्द्र बने    व र्ष 1913 में दादा फालके द्वारा निर्मित और प्रदर्शित मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का नाम भारत के पहले कथा फिल्म के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो ही चुका था, इसी वर्ष दादा फालके की दूसरी फिल्म ‘भष्मासुर मोहिनी’ का प्रदर्शन हुआ। अगले वर्ष, अर्थात 1914 में भी दादा फलके का ही वर्चस्व कायम रहा, जब उनकी तीसरी फिल्म ‘सावित्री सत्यवान’ का प्रदर्शन हुआ। इन दो वर्षों में कुल तीन फिल्मों का प्रदर्शन हुआ और ये तीनों फिल्म फालके ऐंड कम्पनी द्वारा निर्मित थी। पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ के निर्माण क

राग रंग - संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक ब्रोडकास्ट (१८)- राग रंग

भारतेंदु हरिश्चंद्र की अद्भुत संवाद - अनुराग शर्मा के स्वर में

बोलती कहानियाँ: भारतेंदु हरिश्चंद्र की अद्भुत संवाद 'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्राख्यात स्वाधीनता सेनानी अमर शहीद पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल की जीवनी से एक बहुचर्चित अंश " श्री अशफाक उल्ला खां – मैं मुसलमान तुम काफिर? " सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र की कहानी " अद्भुत संवाद ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 1 मिनट 19 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। ~ भारतेंदु हरिश्चंद्र (१८५०-१८८५) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी “कूदेगा! भला कूदेगा क्यों? लो संभालो।”

पैप्पी और कदम थिरकाता 'अजब गजब लव'

प्लेबैक वाणी - संगीत समीक्षा - अजब गजब लव  निर्माता वाशु भगनानी के बेटे जैकी भगनानी नए जोश खरोश के साथ लौटे रहे हैं तेलुगु हिट फिल्म के रिमेक के साथ. फिल्म का नाम है अजब गजब लव, अलबम में संगीत है साजिद वाजिद का, और गीतकारों में हैं प्रिया पांचाल, कौसर मुनीर, और सुखजीत थांडी. आईये नज़र डालें अल्बम में संकलित ४ गीतों पर. अल्बम की शुरुआत बहुत ही धमाकेदार तरीके से होती है. जबरदस्त रिदम के साथ उठता है गीत ‘ बूम बूम बूम ’ . मिका सिंह की दमदार आवाज़ खूब जमती है गीत पर. बीट्स थिरकने पर मजबूर करने वाले हैं. प्रिया के शब्द गीत के अनुरूप ही हैं. निश्चित ही एक चार्ट बस्टर साबित होगा ये गीत. पहले गीत में ही बढ़िया माहौल बनाने के बाद साजिद वाजिद अपने चिर परिचित रोमांटिक टोन में लौटते हैं गीत  “ तू ”  के साथ. मोहित चौहान की आवाज़ का पीछा करती  वोइलेन की स्वर लहरियाँ बहुत सुहाती है, धुन और आवाज़ की मधुरता के मुकाबले में शब्दों का चुनाव और बेहतर हो सकता था. गिटार के सुरीले सुरों के खुलता है गीत  “ सुन सोणिये ” , जिसे इरफ़ान और अंतरा मित्रा ने बहुत खूबसूरती से निभाया है. रियलिटी शो स

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ५

स्वरगोष्ठी – ९४ में आज ‘कौन गली गयो श्याम...’ : श्रृंगार और भक्ति का अनूठा समागम ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ की आज पाँचवीं कड़ी है। इस श्रृंखला में हम आपके लिए कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें फिल्मों में भी शामिल किया गया। ऐसी ठुमरियों का पारम्परिक और फिल्मी, दोनों रूप आप सुन रहे हैं। आज के अंक में हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, खमाज की एक बेहद लोकप्रिय ठुमरी- ‘कौन गली गयो श्याम...’। आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करते हुए, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आरम्भ करता हूँ, ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला का नया अंक। ह मारी आज की पारम्परिक ठुमरी राग खमाज की है, जिसके स्थायी के बोल हैं- ‘कौन गली गयो श्याम...’ । इस ठुमरी को कई गायक-गायिकाओं ने गाया है। इनमें से आज के अंक में हम विदुषी रसूलन बाई, डॉ. प्रभा अत्रे, पण्डित छन्नूलाल मिश्र और विदुषी परवीन सुलताना के स्वरों में यह ठुमरी प्रस्तुत करेंगे। पिछले अंक में भी हमने रसूलन बाई के स्वर में एक अन्य ठुमरी प्रस्तु