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प्लेबैक इंडिया वाणी (११) गैंग्स ऑफ वासेपुर-२, डार्क रूम और आपकी बात

संगीत समीक्षा - गेंगस ऑफ़ वासेपुर - २ दोस्तों जब हमने गैंग्स ऑफ वासेपुर के पहले भाग के संगीत की समीक्षा की थी और उसे ४.३ की रेटिंग दी थी, तो कुछ श्रोताओं ने पूछा था कि क्या वाकई ये अल्बम इस बड़ी रेटिंग की हकदार है? तो दोस्तों हम आपको बता दें कि हमारा मापदंड मुख्य रूप से इस तथ्य में रहता है कि संगीत में कितनी रचनात्मकता है और कितना नयापन है. क्योंकि इस कड़ी प्रतियोगिता के समय में अगर कोई कुछ नया करने की हिम्मत करता है तो उसे सराहना मिलनी चाहिए. तो इसी बात पर जिक्र करें गैंग्स ऑफ वासेपुर के द्रितीय भाग के संगीत की. संगीत यहाँ भी स्नेहा कंवलकर का है और गीत लिखे हैं वरुण ग्रोवर ने. एक बार फिर इस टीम ने कुछ ऐसा रचा है जो बेहद नया और ओरिजिनल है, लेकिन याद रखें अगर आप भी हमारी तरह नयेपन की तलाश में हैं तभी आपको ये अल्बम रास आ सकती है. १२ साल की दुर्गा, चलती रेल में गाकर अपनी रोज़ी कमाती थी, मगर स्नेहा ने उसकी कला को समझा और इस अल्बम के लिए उसे मायिक के पीछे ले आई. दुर्गा का गाया ‘छी छी लेदर” सुनने लायक है, दुर्गा की ठेठ और बिना तराशी आवाज़ का खिलंदड़पन गीत का सबसे बड़ा आकर्

वर्षा ऋतु के रंग : लोक-रस-रंग में भीगी कजरी के संग

स्वरगोष्ठी – ८३ में आज कजरी का लोक-रंग : ‘कैसे खेले जइबू सावन में कजरिया, बदरिया घेरि आइल ननदी...’ भा रतीय लोक-संगीत के समृद्ध भण्डार में कुछ ऐसी संगीत शैलियाँ हैं, जिनका विस्तार क्षेत्रीयता की सीमा से बाहर निकल कर, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी और मीरजापुर जनपद तथा उसके आसपास के पूरे पूर्वाञ्चल क्षेत्र में कजरी गीतों की बहुलता है। वर्षा ऋतु के परिवेश और इस मौसम में उपजने वाली मानवीय संवेदनाओं की अभियक्ति में कजरी गीत पूर्ण समर्थ लोक-शैली है। शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के कलासाधकों द्वारा इस लोक-शैली को अपना लिये जाने से कजरी गीत आज राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर सुशोभित है। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ और प्रस्तुत करता हूँ कजरी गीतों का लोक-स्वरूप। पिछले अंक में आपने कजरी के आभिजात्य स्वरूप का रस-पान किया था। आज के अंक में हम कजरी के लोक-स्वरूप पर चर्चा करेंगे। कजरी की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, यह कहना कठिन है, परन्तु यह तो निश्चित है कि मानव को जब स्वर और शब्

देश प्रेम के रंग से रंगी है आज की 'सिने पहेली', अगर आप भी देश-भक्त हैं तो भाग लीजिए...

सिने-पहेली # 32 (11 अगस्त, 2012)  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'सिने पहेली' स्तंभ में। इस स्तंभ को सोमवार से शनिवार करने पर हमारे नियमित प्रतियोगी कितने लाभांवित हुए होंगे यह तो हमें पता नहीं, पर अफ़सोस इस बात का ज़रूर है कि दिन बदलने पर भी कोई नया खिलाड़ी इससे नहीं जुड़ा है प्रतियोगिता के नए सेगमेण्ट में। चलिए कोई बात नहीं, जितने भी प्रतियोगी हैं, उन्हीं से खेल को आगे बढ़ाया जाए। 'सिने पहेली - 31' के जवाबों में दो नाम सलमान ख़ान और क्षिति तिवारी का भी है। मैंने इन दोनों के नाम ख़ास तौर पर यहाँ इसलिए लिए क्योंकि जवाबों के अतिरिक्त भी इन्होंने कुछ संदेश भेजा है। सलमान भाई के 'सिने पहेली - 30' में भाग न लेने पर ये प्रतियोगिता में काफ़ी पीछे रह गए थे जिसका हमें बहुत अफ़सोस हुआ था। इन्होंने हमें बताया कि अलीगढ़ से दुबई स्थानान्तरित होने की वजह से उस सप्ताह वो इस खेल में भाग नहीं ले सके, पर आगे से वो नियमित भाग लेंगे। सलमान भाई, बहुत अच्छा लगा आप से यह संदेश पा कर, इस सेगमेण

"स्कॉलर सा’ब" की देखी एक खास फिल्म - अनुपमा

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में पंकज मुकेश की देखी पहली फिल्म के संस्मरण के साझीदार रहे। आज का संस्मरण है वरिष्ठ कथाकार और शायर प्रेमचंद सहजवाला का.  यह भी प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्ठि है। ‘ ‘ अनुपमा ’ फिल्म और मेरी पिटाई ...’ बचपन से फिल्मों का शौक था. पांचवीं में पढ़ता था कि हर फिल्म देखने का शौक़ीन बन गया. ‘उड़न खटोला’ फिल्म देखने के लिये बहुत लंबी लाईन में खड़ा हुआ. स्कूल का एक बदमाश सा लड़का भी दिख गया. उस ने उस लंबी लाईन के अंत में से मुझे कॉलर पकड़ कर बाहर खींचा और खींचते खींचते आगे आगे दसवें पन्द्रहवें नंबर पर खड़ा कर गया. मुझे उसकी बदमाशी खूब पसंद आई. पर इस के बावजूद हुआ यह कि जब मैं चौथे नंबर तक पहुँच गया था तब तक खिड़की बंद हो गई और बुकिंग क्लर्क ने बोर्ड लगा दिया – हाऊस फुल! वे यादें बहुत रोचक हैं. माँ

रेशम की डोरी में छुपे अनगिनित एहसास शब्दों में गुंथे

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 10 शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -  1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल  यहाँ  है. 2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से  अनुराग शर्मा  जी अपने स

प्लेबैक इंडिया वाणी (10) जिस्म और '...और प्राण'

संगीत समीक्षा - जिस्म विशेष फिल्म्स या कहें भट्ट कैम्प की फिल्मों के संगीत से हमेशा ही मेलोडी की अपेक्षा रहती है. ये वाकई हिम्मत की बात है कि जहाँ दूसरे निर्माता निर्देशक चालू और आइटम गीतों से अपनी अल्बम्स को भरना चाहते हैं वहीँ भट्ट कैम्प ने कभी भी आइटम गीतों का सहारा नहीं लिया. एक अल्बम के लिए एक से अधिक संगीतकारों को नियुक्त करने की परंपरा को भी भट्ट कैम्प ने हमेशा बढ़ावा दिया है, आज हम भट्ट कैम्प की नयी फिल्म “ जिस्म २ ”   के संगीत की चर्चा करेंगें, इसमें भी ६ गीतों के लिए ४ संगीतकार जोड़े गए हैं. भारतीय मूल की विदेशी पोर्न स्टार सन्नी लियोनि को लेकर जब से इस फिल्म की घोषणा हुई है तब से फिल्म की हर बात सुर्ख़ियों में रही है. आईये नज़र दौडाएँ फिल्म के गीतों पर. पियानो और रिदम गिटार के सुन्दर प्रयोग से निखार पाता है के के की आवाज़ में महकता गीत   “ अभी अभी ” . के के की सुरीली और डूबी हुई आवाज़ में सरल सी धुन और मुखरित होकर खिल जाती है और इस रोमांटिक गीत में श्रोता डूब सा जाता है. शब्द भी अच्छे हैं, गीत का एक युगल संस्करण भी है जिसमें के के का साथ दिया है श्रेया घोषाल ने.

वर्षा ऋतु के रंग : उपशास्त्रीय रस-रंग में भीगी कजरी के संग

        स्वरगोष्ठी – ८२ में आज विदुषी प्रभा अत्रे ने गायी कजरी - ‘घिर के आई बदरिया राम, सइयाँ बिन सूनी नगरिया हमार...’ आज भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि है। इस दिन पूरे उत्तर भारत की महिलाएँ कजली तीज नामक पर्व मनातीं हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल और बिहार के तीन चौथाई हिस्से में यह इस पर्व के साथ कजरी गीतों का गायन भी जुड़ा हुआ है। वर्षा ऋतु में गायी जाने वाली लोक संगीत की यह शैली उपशास्त्रीय संगीत से जुड़ कर देश-विदेश में अत्यन्त लोकप्रिय हो चुकी है। पा वस ऋतु ने अनादि काल से ही जनजीवन को प्रभावित किया है। ग्रीष्म ऋतु के प्रकोप से तप्त और शुष्क मिट्टी पर जब वर्षा की रिमझिम फुहारें पड़ती हैं तो मानव-मन ही नहीं पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ भी लहलहा उठती है। विगत चार सप्ताह से हमने आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले मल्हार अंग के रागों पर चर्चा की है। आज ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक में हम आपसे मल्हार अंग के रागों पर नहीं, बल्कि वर्षा ऋतु के अत्यन्त लोकप्रिय लोक-संगीत- कजरी अथवा कजली पर चर्चा करेंगे। मूल रूप से कजरी लोक-संगीत की विधा है