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'सिने पहेली' के नए सेगमेण्ट की शुरुआत किशोर कुमार की याद के साथ...

सिने-पहेली # 31 (4 अगस्त, 2012)  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'सिने पहेली' स्तंभ में। प्रतियोगियों के अनुरोध पर आज से यह स्तंभ सोमवार के स्थान पर शनिवार को प्रकाशित हुआ करेगा। तीसरे सेगमेण्ट में कुल 26 खिलाड़ियों ने भाग लिया था, अब हम उम्मीद करेंगे कि चौथे सेगमेण्ट में यह संख्या बढ़ कर दुगुनी हो जाए! आप सब अपने सगे-संबंधियों, दोस्तों और सहयोगियों से इस प्रतियोगिता से जुड़ने का सुझाव दें। जितने ज़्यादा प्रतियोगी इसमें भाग लेंगे, खेल उतना ही ज़्यादा मज़ेदार व मनोरंजक बन पड़ेगा। आज से 'सिने पहेली' का चौथा सेगमेण्ट शुरू हो रहा है जो अगले दस सप्ताह तक चलेगा। आइए आज सबसे पहले आपको बता दें 'सिने पहेली' प्रतियोगिता के नियम। कैसे बना जाए 'सिने पहेली महाविजेता'? 1. सिने पहेली प्रतियोगिता में होंगे कुल 100 एपिसोड्स। इन 100 एपिसोड्स को 10 सेगमेण्ट्स में बाँटा गया है। अर्थात्, हर सेगमेण्ट में होंगे 10 एपिसोड्स। 2. प्रत्येक सेगमेण्ट में प्रत्येक खिलाड़ी के 10

कहानी पॉडकास्ट - वापसी - उषा प्रियंवदा - शेफाली गुप्ता

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शेफाली गुप्ता की आवाज़ में सुधा ओम ढींगरा की कथा " बिखरते रिश्ते " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार उषा प्रियंवदा की कहानी " वापसी ", जिसको स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ने। "वापसी" का पाठ्य हिन्दी साहित्य ब्लॉग पर उपलब्ध है। इस कहानी का कुल प्रसारण समय 22 मिनट 10 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। उषा प्रियंवदा आज हिंदी कहानी का एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। परिवार और समाज की विसंगतियों और विडंबनाओं को उन्होंने जितनी सूक्ष्मता से चित्रित किया है, उतनी ही व्यापकता में व्यक्ति के बाह्य और आंतरिक संसार के बीच के संबंध को भी उकेरा है। tu। हर शुक्रवार को &qu

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 8

भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सहयोगी स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी के साथ आपका स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में प्रत्येक मास के पहले और तीसरे गुरुवार को हम आपके लिए लेकर आते हैं, मूक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर के कुछ रोचक तथ्य और दूसरे हिस्से में सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर की कोई उल्लेखनीय संगीत रचना और रचनाकार का परिचय। आज के अंक में हम आपसे इस युग के कुछ रोचक तथ्य साझा करेंगे।   ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले : उत्कृष्ट वृत्त-चित्रों से आगे बढ़ा भारतीय फिल्मों का काफिला भा रतीय सिनेमा के शुरुआती दौर में भावी फिल्मों के लिए दिशा की खोज जारी थी। मुहावरे गढ़े जा रहे थे। 3मई, 1913 को भारत में निर्मित पहली कथा-फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ तक पहुँचने में भारतीय फ़िल्मकारों को 17वर्ष लगे। 1896 से 1913 तक की अवधि में भारतीय फ़िल्मकार दो अलग-अलग दिशाओं में सक्रिय रहे। एक वर्ग फिल्म के निर्माण में तो दूसरा वर्ग फिल्म के व्यावसायिक प्रदर्शन के क्षेत्र में सलग्न था। बीसवीं शताब्दी

बाल मन की कवितायेँ -चाक से बच्चों की जुबान पर

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 09 शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -  1. रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी ...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल  यहाँ  है. 2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से  अनुराग शर्मा  जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपन

प्लेबैक इंडिया वाणी (9) क्या सुपर कूल हैं हम और आपकी बात

संगीत समीक्षा - क्या सुपर कूल हैं हम छोटे परदे की बेहद सफल निर्मात्री एकता कपूर ने जब फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा तो वहाँ भी सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किये, बहुत ही अलग अलग अंदाज़ की फ़िल्में वो दर्शकों के लिए लेकर आयीं हैं, जिनमें हास्य, सस्पेंस, ड्रामा सभी तरह के जोनर शामिल हैं.  अपने भाई तुषार कपूर को लेकर उन्होंने “ क्या कूल हैं हम ” बनायीं थी जिसने दर्शकों को भरपूर हँसाया, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए वो लायीं है अब “ क्या सुपर कूल हैं हम ” जिसमें तुषार कपूर के साथ है रितेश देशमुख. फिल्म हंसी का पिटारा है या नहीं ये तो दर्शकों को फिल्म देखने के बाद ही पता लग पायेगा, पर आईये हम जान लेते हैं कि फिल्म का संगीत कैसा है. उभरते हुए संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर के टेक्नो रिदम से लहराके उठता है “ दिल गार्डन गार्डन ” गीत. मयूर पूरी के बे सर पैर सरीखे शब्द गीत को एक अलग ही तडका देते हैं. जहाँ रिदम गीत की जान है वहीँ विशाल ददलानी की उर्जात्मक आवाज़ जोश से भरपूर है. गीत को सुनते हुए न सिर्फ आपके कदम थिरकेंगें बल्कि शब्दों की उटपटांग हरकतें आपके चेहरे पर एक मुस्कान भी ले आएगी...अगर आपन

दस सप्ताह के घमासान के बाद क्षिति तिवारी और प्रकाश गोविंद बने हैं 'सिने पहेली' के तीसरे सेगमेण्ट के संयुक्त विजेता

सिने-पहेली # परिणाम विशेषांक (30 जुलाई, 2012)  नमस्कार दोस्तों! पिछले दस सप्ताहों से 'सिने पहेली' के तीसरे सेगमेण्ट का जो घमासान चल रहा था, वह अब अपने अंजाम तक पहुँच चुका है। गत सोमवार को 'सिने पहेली' की तीसवीं कड़ी में पूछे गए सवालों के जवाब और पूरे सेगमेण्ट के आँकड़ों के साथ मैं, आपका ई-दोस्त, सुजॉय चटर्जी, हाज़िर हूँ इस परिणाम विशेषांक के साथ। आज सबसे पहले मैं स्वागत करना चाहूँगा पिट्सबर्ग के डॉ. महेश बसंतनी का, जो इस सप्ताह 'सिने पहेली' से जुड़े हैं, और प्रतियोगिता में भाग लेते हुए 90 अंक भी बटोरे हैं। महेश जी पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के एन्डोक्राइनोलोजी विभाग में पोस्ट-डॉकटरल ऐसोसिएट के पद पर कार्य कर रहे हैं। दोस्तों, ब्लॉगर के आँकड़ों के हिसाब से 'रेडियो प्लेबैक इंडिया' के लगभग 50% पाठक/श्रोता भारत में स्थित हैं, जबकि बाकी के 50% विश्व के अलग-अलग देशों से ताल्लुख रखते हैं जिनमें अमरीका, इंगलैण्ड, रूस, संयुक्त अरब अमीरात, ब्राज़िल, पाकिस्तान, कनाडा, फ़्रान्स, नेदरलैण्ड्स, ताइवान, ट्यूनिशिया और जर्मनी मुख्य रूप से शामिल हैं। दुनिया के कोने-कोन

वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग- 4

स्वरगोष्ठी – ८१ में आज रामदासी और सूर मल्हार के स्वरों से भीगी रचनाएँ बा हर पावस की रिमझिम फुहार और आपकी ‘स्वरगोष्ठी’ में मल्हार अंग के रागों की स्वर-वर्षा जारी है। ऐसे ही सुहाने परिवेश में ‘वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करते हुए, आज प्रस्तुत कर रहा हूँ- मल्हार अंग के दो रागों- रामदासी और सूरदासी अथवा सूर मल्हार के स्वरों से अनुगूँजित कुछ चुनी हुई संगीत-रचनाएँ। दोनों रागों के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इनका नामकरण संगीत के मनीषियों के नामों पर हुआ है। पहले हम राग रामदासी मल्हार के बारे में आपसे चर्चा करेंगे। रामदासी मल्हार काफी ठाट के अन्तर्गत माना जाने वाला राग रामदासी मल्हार, दोनों गान्धार (शुद्ध और कोमल) तथा दोनों निषाद से युक्त होता है। इसकी जाति वक्र रूप से सम्पूर्ण होती है। अवरोह में दोनों गान्धार का प्रयोग वक्र रूप से करने पर राग का सौन्दर्य निखरता है। इसका वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह राग वर्षा ऋतु के परिवेश का सजीव चित्रण करने में समर्थ होता