Skip to main content

Posts

४ अप्रेल- आज का गाना

गाना: रोज़ रोज़ डाली डाली क्या लिख जाये चित्रपट: अंगूर संगीतकार: राहुलदेव बर्मन गीतकार: गुलजार स्वर: आशा भोसले रोज़ रोज़ डाली डाली क्या लिख जाये भँवरा बावरा कलियों के नाम कोई लिखे पैग़ाम कोई बावरा भँवरा बावरा रोज़ रोज़ डाली डाली ... बीते हुए मौसम की कोई निशानी होगी प म प म ग म ग रे ग नि रे नि म ग रे प बीते हुए मौसम की कोई निशानी होगी ददर् पुराना कोई याद पुरानी होगी कोई तो दास्तान होगी ना रोज़ रोज़ डाली डाली ... होगा कोई वादा होगा वादा निभाता होगा शाखों पे लिख कर याद दिलाता होगा याद तो आती ही होगी ना रोज़ रोज़ डाली डाली ...

जानिये सीमा सिंघल की "सदा" में किन गीतों का निवास है -ब्लोग्गर्स चोयिस में आज

और ब्लॉगर सीमा सिंघल .....डरती हैं पसंद बताते.... :) पसंद तो अपनी ही होती है न. तो ये रही इनकी पसंद - " मेरी पसन्‍द बस ऐसे ही है...अकेलेपन को एक राह मिल जाती है सुनते हुए " रूक जाना नहीं तू कहीं हार के .... इस गीत के बोल हमेशा एक प्रेरणा देते से लगते हैं इसलिए ...   मधुबन खुश्‍बू देता है .... ये गीत इसलिए भाता है जब किसी के चेहरे पर आपकी वज़ह से खुशी होती है ... जिन्‍दगी हर कदम इक नई जंग है ... जीवन में जब भी कभी उलझन आती है तो बस इस गीत के बोल एक सूकून देते हैं ... तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई ...ये गीत बस अच्‍छा लगता है...कुछ ज्‍यादा नहीं कह सकती... ना मुंह छिपा के जिओ ... ये गीत सुनने में जितना मधुर है उतना ही एक ऊर्जा भी देता है ...

३ अप्रेल- आज का गाना

गाना: चाँदी की दीवार न तोड़ी चित्रपट: विश्वाश संगीतकार: कल्याण जी, आनन्द जी गीतकार: गुलशन बावरा स्वर: मुकेश चाँदी की दीवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन तोड़ दिया चाँदी की ... कल तक जिसने क़समें खाईं, दुख में साथ निभाने की आज वो अपने सुख की खातिर, हो गई इक बेगाने की शहनाइयों की गूंज में दबके, रह गई आह दीवाने की धनवानों ने दीवाने का, ग़म से रिश्ता जोड़ दिया इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन तोड़ दिया चाँदी की ... ये क्या समझे प्यार को जिनका, सब कुछ चाँदी सोना है धनवानों की इस दुनिया में, दिल तो एक खिलौना है सदियों से दिल टूटता आया, दिल का बस ये रोना है जब तक चाहा दिल से खेला, और जब चाहा तोड़ दिया इक धनवान की बेटी ने, निर्धन का दामन तोड़ दिया चाँदी की ...

सिने-पहेली में जीतिये 5000 रुपये के इनाम

 सिने-पहेली # 14 ( 2 अप्रैल , 2012 ) 'सि ने-पहेली' के एक नये अंक में मैं, कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। इस स्तम्भ के प्रस्तुतकर्ता और हम सबके प्रिय सुजॉय चटर्जी की अस्वस्थता के कारण आज यह अंक लेकर आपके सम्मुख मुझे उपस्थित होना पड़ा। पिछले अंक में हमने यह घोषणा की थी कि 'सिने पहेली' के 100 अंकों के बाद जो महाविजेता बनेगा, उन्हें हम इनाम स्वरूप 5000 रुपये की नकद राशि भेंट करेंगे। अर्थात् 10 सेगमेण्ट्स की लड़ाई में जो सर्वाधिक सेगमेण्ट का विजेता होगा, उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। अभी सिर्फ़ दूसरा ही सेगमेण्ट चल रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि कोई भी महाविजेता बन सकता है। आज के अंक से ही आप 'सिने पहेली' प्रतियोगिता में भाग लें और हमारे सवालों के जवाब cine.paheli@yahoo.com के पते पर लिख भेजें। तो आइए शुरु करते हैं 'सिने पहेली – 14' के सवालों का सिलसिला- ********************************************* सवाल-1: गोल्डन वॉयस गोल्डन वॉयस में आज हम आपको सुनवाने जा रहे हैं देश की आज़ादी के समय की एक फ़िल्म के गीत का

२ अप्रेल- आज का गाना

गाना: झूमती चली हवा, याद आ गया कोई चित्रपट: संगीत सम्राट तानसेन संगीतकार: एस. एन.त्रिपाठी गीतकार: शैलेन्द्र स्वर: मुकेश झूमती चली हवा, याद आ गया कोई बुझती बुझती आग को, फिर जला गया कोई झूमती चली हवा ... खो गई हैं मंज़िलें, मिट गये हैं रास्ते गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते अब हैं मेरे वास्ते और ऐसे में मुझे, फिर बुला गया कोई झूमती चली हवा ... चुप हैं चाँद चाँदनी, चुप ये आसमान है मीठी मीठी नींद में, सो रहा जहान है सो रहा जहान है आज आधी रात को, क्यों जगा गया कोई झूमती चली हवा ... एक हूक सी उठी, मैं सिहर के रह गया दिल को अपने थाम के आह भर के रह गया चाँदनी की ओट से मुस्कुरा गया कोई झूमती चली हवा ...

लोक रंग से अभिसिंचित चैता और घाटो

स्वरगोष्ठी – ६४ में आज ‘हे रामा असरा में भीजे आँखी के कजरवा...’ आप सभी पाठकों-श्रोताओं को रामनवमी के पावन पर्व पर शत-शत बधाई। मित्रों, पिछले दो अंकों में आप चैती गीतों के विविध प्रयोग और प्रकार पर की गई चर्चा के सहभागी थे। पिछले अंक में मैंने यह उल्लेख किया था कि इस ऋतु-प्रधान गीतों के तीन प्रकार- चैती, चैता और घाटो, गाये जाते हैं। आज के अंक में हम आपसे चैता और घाटो पर चर्चा करेंगे। ‘स्वर गोष्ठी’ पर जारी चैत्र मास के संगीत की हमारी श्रृंखला का यह तीसरा भाग है। अपने सभी पाठकों और श्रोताओं का आज रामनवमी के पावन पर्व के दिन आयोजित इस गोष्ठी में कृष्णमोहन मिश्र की ओर से हार्दिक स्वागत है। पिछले दो अंकों में हमने चैत्र मास में गायी जाने वाली संगीत विधा पर आपसे चर्चा की थी। चैती लोक संगीत की विधा होते हुए ठुमरी अंग में भी बेहद प्रचलित है। चैती के दो और भी प्रकार हैं, जिन्हें चैता और घाटो कहा जाता है। चैती गीतों का उपशास्त्रीय रूपान्तरण अत्यन्त आकर्षक होता है। परन्तु चैता और घाटो अपने मूल लोक-स्वरूप में ही लुभाते हैं। आज हम पहले आपको एक पारम्परिक चैता सुनवाएँगे। चैता और घाटो प्राय

१ अप्रैल- आज का गाना

गाना: एप्रिल फूल बनाया चित्रपट: एप्रिल फूल संगीतकार: शंकर जयकिशन गीतकार: हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र स्वर: रफी, सायरा बानो एप्रिल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया तो मेरा क्या क़सूर ज़माने का क़सूर जिसने दस्तूर बनाया ) -२ एप्रिल फूल बनाया ... दिलबर ओ जान-ए-जानाँ गुस्से के रूप में लगती हो और हसीन -२ तेरी क़ातिल अदा ने मार ही डाला कर लो तुम इसका यक़ीन -२ एप्रिल फूल बनाया ... दिल से दिल की पहचान हुई जागी मुहब्बत गाने लगी ज़िन्दगी -२ हमने दुनिया में आ कर वो रूप धरा ज़िन्दा हुई आशिक़ी -२ एप्रिल फूल बनाया ...