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१० मार्च- आज का गाना

गाना: जीना यहाँ मरना यहाँ चित्रपट: मेरा नाम जोकर संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: शैलन्द्र स्वर: मुकेश जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ जी चाहे जब हमको आवाज़ दो हम हैं वहीं हम थे जहाँ जीना यहाँ मरना यहाँ ... कल खेल में हम हों न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा भूलोगे तुम, भूलेंगे वो पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा होंगे यहीं अपने निशाँ इसके सिवा जाना कहाँ जीना यहाँ मरना यहाँ ... ये मेरा गीत जीवन संगीत कल भी कोई दोहरायेगा जग को हँसाने बहरूपिया रूप बदल फिर आयेगा स्वर्ग यहीं नर्क यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ जीना यहाँ मरना यहाँ ...

बोलती कहानियाँ - असमर्थ दाता - नागार्जुन

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्राख्यात ब्लॉगर अर्चना चावजी की आवाज़ में उन्हीं की मार्मिक कहानी " मुनिया का बचपन का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अमर साहित्यकार बाबा नागार्जुन द्वारा 1935 में लिखी हृदयस्पर्शी कहानी " असमर्थ दाता , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने।  कहानी का कुल प्रसारण समय 11 मिनट 26 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झन्डा पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा। ~  वैद्यनाथ मिश्र "नागार्जुन" (३० जून १९११ - ५ नवंबर १९९८) हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी एक नौ-दस साल की मैली-कुचैली लड़की मेरे कुर्ते का पिछला पल्ला पकड़कर गिड़गिड़ा रही थी, "बाबू

९ मार्च- आज का गाना

गाना: लो आ गयी उनकी याद् चित्रपट: दो बदन संगीतकार: रवी गीतकार: शकिल बदायुनी स्वर: लता मंगेशकर लो आ गयी उनकी याद्, वो नहीं आए दिल उनको ढूंढता है, गम का सिंगार कर के आंखे भी रक गयी है, अब इंतजार कर के एक आस रह गयी है, वो भी ना टूट जाए रोती हैं आज हम पर, तनहाईयां हमारी वो भी ना पाए शायद्, परछाईयां हमारी बढते ही जा रहे है, मायूसीयों के साये लौ थरथरा रही है, अब शम-ए-जिंद्गी की उजडी हुयी मोहब्बत, मेहमां हैं दो घडी के मर कर ही अब मिलेंगे, जी कर तो मिल ना

८ मार्च - आज का गाना

गाना:  होली आयी रे कन्हाई, होली आयी रे चित्रपट: मदर इंडिया संगीतकार: नौशाद अली गीतकार: शकील बदायूंनी गायिका: शमशाद बेगम और साथी श : होली आयी रे कन्हाई, होली आयी रे       होली आयी रे कन्हाई       रंग छलके सुना दे ज़रा बांसरी को (स्त्री) : होली आयी रे कन्हाई              रंग छलके सुना दे ज़रा बांसरी को (पु) : होली आयी रे, आयी रे, होली आयी रे श : बरसे गुलाल रंग मोरे आंगनवा       अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवा को (पु) : हो देखो नाचे मोरा मनवा को (स्त्री) : बरसे गुलाल रंग मोरे आंगनवा, जी मोरे आंगनवा              अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवा श : तोरे कारन घरसे आई, तोरे कारन हो       तोरे कारन घरसे आई       हूँ निकलके सुना दे ज़रा बांसरी को (स्त्री) : होली आयी रे कन्हाई              रंग छलके सुना दे ज़रा बांसरी को (पु) : होली आयी रे, आयी रे, होली आयी रे श : छुटे ना रंग ऐसी रंग दे चुनरिया       धोबन ये धोये चाहे सारी उमरिया को (पु) : हो मन को रंग देगा साँवरिया को (स्त्री) : छुटे ना रंग ऐसी रंग दे चुनरिया, जी              रंग दे चुनरिया            

"नीले गगन के तले धरती का प्यार पले" - कैसे न बनती साहिर और रवि की सुरीली जोड़ी जब दोनों की राशी एक है!!

मशहूर गीतकार - संगीतकार जोड़ियों में साहिर लुधियानवी और रवि की जोड़ी ने भी फ़िल्म-संगीत के ख़ज़ाने को बेशकीमती रत्नों से समृद्ध किया है। कैसे न बनती यह अनमोल जोड़ी जब दोनों की जन्मतिथि लगभग साथ-साथ हैं? ३ मार्च को रवि और ८ मार्च को साहिर के जन्मदिवस को ध्यान में रखते हुए आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की दसवीं कड़ी में चर्चा इस जोड़ी की एक कलजयी रचना की, सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 10 फ़िल्म जगत में गीतकार-संगीतकार की जोड़ियाँ शुरुआती दौर से ही बनती चली आई हैं। उस ज़माने में भले स्टुडियो कॉनसेप्ट की वजह से यह परम्परा शुरु हुई हो, पर स्टुडियो सिस्टम समाप्त होने के बाद भी यह परम्परा जारी रही और शक़ील-नौशाद, शलेन्द्र-हसरत-शंकर-जयकिशन, मजरूह-नय्यर, मजरूह-सचिन देव बर्मन, साहिर-सचिन देव बर्मन, साहिर-रवि, गुलज़ार-पंचम, समीर-नदीन-श्रवण, स्वानन्द-शान्तनु जैसी कामयाब गीतकार-संगीतकार जोड़ियाँ हमें मिली। इस लेख में आज चर्चा साहिर-रवि के जोड़ी की। कहा जाता है कि जिन लोगों की राशी एक होती हैं, उनके स्वभाव में, चरित्र में, कई समानतायें पायी जाती हैं और एक राशी के दो लोगों मे

७ मार्च- आज का गाना

गाना: आये हैं दूर से, मिलने हज़ूर से चित्रपट: तुमसा नहीं देखा संगीतकार: ओ. पी. नय्यर गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: रफ़ी, आशा आशा: आए हैं दूर से, मिलने हज़ूर से ऐसे भी चुप न रहिये, कहिये जी कुछ तो कहिये दिन है के रात है रफ़ी: हाय ... तुमसे मेहमान क्या, मुझपे अहसान क्या लाखों ही ज़ुल्फ़ों वाले, आती हैं घेरा डाले मेरी क्या बात है आशा: आये हैं दूर से ... उठ के तो देखिये, कैसी फ़िज़ा है शरमाना छोड़िये, ये क्या अदा है रफ़ी: तौबा ये क्या फ़रमाया मैं तो यूँ ही शरमाया मेरी क्या बात है आशा: आये हैं दूर से ... रफ़ी: ओ ओ ओ ... तुमसे मेहमान का ... दिखती है रोज़ ही, ऐसी फ़िज़ाएं मुखड़े के सामने, काली घटाएं आशा: कोई चल जाए जादू, फिर हम पूछेंगे बाबू दिन है के रात है ... रफ़ी: ओ ओ ओ ... तुमसे मेहमान का ... आशा: आ आ आ ... आये हैं दूर से ...

मिलिए सागर से जिन्हें लायीं है रश्मि जी ब्लोग्गेर्स चोईस में

सागर को जानना हो तो उसकी लहरों से पूछो, हिम्मत हो तो उसकी गहराई में जाओ - असली सीप असली मोती वहीँ मिलते हैं. चलिए यह जब होगा तब होगा ..... मैंने सागर से उसकी पसंद के ५ गाने मांगे.... सागर ने ४ दिए और कहा - एक पसंद आपकी शामिल हो तो एक सीप और पूर्ण हो.' क्योंकि सागर को ऐतबार है मेरी पसंद पर ('जी' लगाने से सागर की लहरें खो जातीं तो सागर ही लिखा है) तो ४ गाने सागर के, यह कहते हुए कि - 'सुनो और जानो इसमें क्या है !', और साथ में एक गीत मेरी पसंद का. तो सुना जाए - १. दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन - दिल्ली में मशीन बना रहता हूँ, सर पर सलीब लटकती रहती है और ख्यालों को खेत में छोड़ आया हूँ इसलिए... २. तेरे खुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे - गंगा, पुल, प्रेम और कोहरे में स्पष्ट दीखता धुंधला सा चेहरा... ३. माई री मैं का से कहूँ पीर अपने जिया की - इसके कुछ शब्द बेहद मौलिक और आत्मीय लगते हैं. ४. वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ - एस. डी. बर्मन की भटियाली आवाज़... जैसे खाई में कूद जाने का मन होता है. ५. अंत में एक जो आपको सबसे ज्यादा पसंद ह