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कोई ग़ज़ल सुनाकर क्या करना....कहा रफीक शेख ने

एक अनाम शायर की मशहूर गज़ल को सुरों में ढालकर पेश कर रहे हैं रफीक शेख. सुनिए इस ताज़ा प्रस्तुति को - कोई गज़ल सुनाकर क्या करना, यूँ बात बढ़ाकर क्या करना तुम मेरे थे, तुम मेरे हो, दुनिया को बता कर क्या करना दिन याद से अच्छा गुजरेगा, फिर तुम को भुला कर क्या करना....

१८ फरवरी - आज का गाना

गाना:  ओह रे ताल मिले नदी के जल में चित्रपट: अनोखी रात संगीतकार: रोशन गीतकार: इंदीवर गायक: मुकेश ओह रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना ओह रे ताल मिले नदी के जल में ... अन्जाने होंठों पर ये (पहचाने गीत हैं - २) कल तक जो बेगाने थे जनमों के मीत हैं ओ मितवा रे ए ए ए कल तक ... क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना ओह रे ताल मिले नदी के जल में ... सूरज को धरती तरसे (धरती को चंद्रमा - २) पानी में सीप जैसे प्यासी हर आतमा ओ मितवा रे ए ए ए ए पानी में ... बूंद छुपी किस बादल में कोई जाने ना ओह रे ताल मिले नदी के जल में ...

बोलती कहानियाँ: एक रात (रेडियो ड्रामा)

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुभव प्रिय की आवाज़ में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की कहानी "शत्रु" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध कथाकार पंकज सुबीर की कहानी " एक रात ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।  कहानी "एक रात" का कुल प्रसारण समय 11 मिनट 6 सेकंड है। इस बार हमने इस प्रसारण  में कुछ नये प्रयोग किये हैं। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। वो गंजा गंजा सा फलाना आदमी, जो अब तक खुद को जिंदा समझता था, कल रात सचमुच में मर गया।  ~ पंकज सुबीर हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी बरसात इतनी तेज़ रफ़्तार से हो रही है कि वाइपर की फुल स्पीड के बाद भी विंडस्क्रीन साफ़ नहीं

१७ फरवरी - आज का गाना

गाना:  ज्योति कलश छलके  चित्रपट: भाभी की चूड़ियाँ संगीतकार: सुधीर फड़के गीतकार: पंडित नरेंद्र शर्मा गायिका: लता ज्योति कलश छलके \- ४ हुए गुलाबी, लाल सुनहरे रंग दल बादल के ज्योति कलश छलके घर आंगन वन उपवन उपवन करती ज्योति अमृत के सींचन मंगल घट ढल के \- २ ज्योति कलश छलके पात पात बिरवा हरियाला धरती का मुख हुआ उजाला सच सपने कल के \- २ ज्योति कलश छलके ऊषा ने आँचल फैलाया फैली सुख की शीतल छाया नीचे आँचल के \- २ ज्योति कलश छलके ज्योति यशोदा धरती मैय्या नील गगन गोपाल कन्हैय्या श्यामल छवि झलके \- २ ज्योति कलश छलके अम्बर कुमकुम कण बरसाये फूल पँखुड़ियों पर मुस्काये बिन्दु तुहिन जल के \- २ ज्योति कलश छलके

१६ फरवरी - आज का गाना

गाना:  पांच रुपैया बारा आना चित्रपट: चलती का नाम गाड़ी संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी गायक: किशोर कुमार मैं सितारों का तराना, मैं बहारों का फ़साना लेके इक अंगड़ाई मुझ पे, डाल नज़र बन जा दीवाना रूप का तुम हो खज़ाना, तुम हो मेरी जाँ ये माना लेकिन पहले दे दो मेरा, पांच रुपैया बारा आना पाँच रुपैया, बारा आना\-आआ ... मारेगा भैया, ना ना ना ना\-आआ ... माल ज़र, भूलकर, दिल जिगर हमसे निशानी माँगो ना दिलरुबा, क्या कहा, दिल जिगर क्या है जवानी माँगो ना तेरे लिये मजनू बन सकता हूँ लैला लैला कर सकता हूँ चाहे नमूना देख लो \-\- हाय खून\-ए\-दिल पीने को और लक़्त\-ए\-जिगर खाने को ये गिज़ा मिलती है लैला \- (२) तेरे दीवाने को \- (२) ओ हो हो जोश\-ए\-उल्फ़त का ज़माना, लागे है कैसा सुहाना लेके इक अंगड़ाई मुझ पे, डाल नज़र बन जा दीवाना मानता हूँ है सुहाना, जोश\-ए\-उल्फ़त का ज़माना लेकिन पहले दे दो मेरा, पाँच रुपैया बारा आना ग़म भुला, साज उठा, राग मेरे रूप के तू गाये जा ऐ दिलरुबा, होय दिलरुबा, हाँ इसी अंदाज़ से फ़रमाये जा गीत सुना सकता हूँ दादरा गिनकर

"फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया"- और याद आए ग़ालिब उनकी १४४-वीं पुण्यतिथि पर

१५ फ़रवरी १८६९ को मिर्ज़ा ग़ालिब का ७२ साल की उम्र में इन्तकाल हुआ था। करीब १५० साल गुज़र जाने के बाद भी ग़ालिब की ग़ज़लें आज उतनी ही लोकप्रिय और सार्थक हैं जितनी उस ज़माने में हुआ करती थीं। ग़ालिब पर बनी फ़िल्मों और टीवी प्रोग्रामों की चर्चा तथा उनकी एक ग़ज़ल लेकर सुजॉय चटर्जी आज आए हैं 'एक गीत सौ कहानियाँ' की सातवीं कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 7 अतीत के अदबी शायरों की बात चले तो जो नाम सबसे ज़्यादा चर्चित हुआ है, वह नाम है मिर्ज़ा ग़ालिब का। ग़ालिब की ग़ज़लें केवल ग़ज़लों की महफ़िलों और ग़ैर-फ़िल्मी रेकॉर्डों तक ही सीमित नहीं रही, फ़िल्मों में भी ग़ालिब की ग़ज़लें सर चढ़ कर बोलती रहीं। 'अनंग सेना' (१९३१), 'ज़हर-ए-इश्क़' (१९३३), 'यहूदी की लड़की' (१९३३), 'ख़ाक का पुतला' (१९३४), 'अनारकली' (१९३५), 'जजमेण्ट ऑफ़ अल्लाह' (१९३५), 'हृदय मंथन' (१९३६), 'क़ैदी' (१९४०), 'मासूम' (१९४१), 'एक रात' (१९४२), 'चौरंगी' (१९४२), 'हण्टरवाली की बेटी' (१९४३), 'अपना देश' (१९४९), 'मिर

१५ फरवरी - आज का गाना

गाना:  पितु मातु सहायक स्वामी सखा संगीतकार: नरेश भट्टाचार्य गायक: मुकेश पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुम ही एक नाथ हमारे हो जिन के कछु उर आधार नहीं उन के तुम ही रखवारे हो पितु मातु सहायक स्वामी सखा ... सब भाँति सदा सुख दयक हो दुःख दुर्दम नाशन हारे हो प्रतिपाल करो सगरे जग को अतिशय करुणा गुण धारे हो पितु मातु सहायक स्वामी सखा ... शुभ शाँति निकेतन प्रेम निकेत मन मंदिर के उजियारे हो इस जीवन के तुम जीवन हो इन प्राणन के तुम प्यारे हो तुम तो प्रभु पाये प्रतप हरि कहिये के अब और सहारे हो पितु मातु सहायक स्वामी सखा ...