ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 67 बुझ गई है राह से छाँव - भाग ०१ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! 'शनिवार विशेषांक' मे आज श्रद्धांजलि उस महान कलाकार को जिनका नाम असमीया गीत-संगीत का पर्याय बन गया है, जिन्होने असम और उत्तरपूर्व के लोक-संगीत को दुनियाभर में फैलाने का अद्वितीय कार्य किया, जिन्होंने हिन्दी फ़िल्म-संगीत में असम की पहाड़ियों, चाय बागानों और वादियों का विशिष्ट संगीत देकर फ़िल्म-संगीत को ख़ास आयाम दिया, जो न केवल एक गायक और संगीतकार थे, बल्कि एक लेखक और फ़िल्मकार भी थे। पिछले शनिवार, ४ नवंबर को ८५ वर्ष की आयु में हमें अलविदा कह कर हमेशा के लिए जब भूपेन हज़ारिका चले गए तो उनका रचा एक गीत मुझे बार बार याद आने लगा..... "समय ओ धीरे चलो, बुझ गई है राह से छाँव, दूर है पी का गाँव, धीरे चलो...." आइए आज के इस विशेषांक में भूपेन दा के जीवन सफ़र के कुछ महत्वपूर्ण पड़ावों पर नज़र डालें। भूपेन हज़ारिका का जन्म १ मार्च १९२६ को असम के नेफ़ा के पास सदिया नामक स्थान पर हुआ था। पिता संत शंकरदेव के भक्त थे और अपने उपदेश गायन