Skip to main content

Posts

क्या गजब करते हो जी, प्यार से डरते हो जी....मगर जनाब हँसना कभी नहीं छोडना रोने के डर से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 659/2011/99 'गा न और मुस्कान' शृंखला में अब तक आपने आठ गीत सुनें जिनके भाव अलग अलग थे, लेकिन जो एक बात उनमें समान थी, वह यह कि हर गीत में किसी न किसी बात पर गायक की हँसी सुनाई दी। आज के अंक के लिए हमने जिस गीत को चुना है, उसमें भी हँसी तो है ही, लेकिन यह हँसी थोड़ी मादकता लिये हुए है। एक सेनशुअस नंबर, एक सिड्युसिंग् नंबर, और इस तरह के गीतों को आशा जी किस तरह का अंजाम देती हैं, इससे आप भली-भाँति वाकिफ़ होंगे। जी हाँ, आज आशा भोसले की मादक आवाज़ में सुनिए १९८१ की फ़िल्म 'लव स्टोरी' से "क्या ग़ज़ब करते हो जी, प्यार से डरते हो जी, डर के तुम और हसीन लगते हो जी"। युं तो फ़िल्म के नायक-नायिका हैं कुमार गौरव और विजेता पंडित, लेकिन यह गीत फ़िल्माया गया है अरुणा इरानी पर, जो नायक कुमार गौरव को अपनी तरफ़ आकर्षित करना चाह रही है, लेकिन नायक साहब कुछ ज़्यादा इंटरेस्टेड नहीं लगते। उस पर नायिका विजेता भी तो पर्दे के पीछे से यह सब कुछ देख रही है, और कुमार गौरव भी उसे देखते हुए देखता है, लेकिन अरुणा इरानी इससे बेख़बर है। इस गीत में आशा जी की शरारती हँसी

मेरे जीवन साथी, प्यार किये जा.....एक अनूठा गीत जिसे लिखना वाकई बेहद मुश्किल रहा होगा आनंद बख्शी साहब के लिए भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 658/2011/98 लि फ़्ट के अंदर का सीन है। नायक और नायिका अंदर हैं। बीच राह पर ही नायक लिफ़्ट की बटन दबा कर लिफ़्ट रोक देता है। नायिका कहती है कि उसे हिंदी की कक्षा में जाना है, हिंदी की क्लास है। लेकिन नायक कहता है कि हिंदी की क्लास वो ख़ुद लेगा और वो ही उसे हिंदी सिखायेगा। लेकिन मज़े की बात तो यह है कि नायक दक्षिण भारतीय है जिसे हिंदी बिल्कुल भी नहीं आती। तो साहब यह था सीन और इसमे एक गीत लिखना था गीतकार आनंद बख्शी साहब को। अब आप ही बताइए कि इस सिचुएशन पर किस तरह का गीत लिखे कोई? नायक को हिंदी नही आती और उसे हिंदी में ही गीत गाना है। इस मज़ेदार सिचुएशन पर बख्शी साहब नें एक कमाल का गाना लिखा है जिसे सुनते हुए आप भी मुस्कुरा उठेंगे, और गीत में नायिका तो हँस हँस कर लोट पोट हो रही हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, आज 'गान और मुस्कान' की आठवीं कड़ी में प्रस्तुत है कमाल हासन और रति अग्निहोत्री पर फ़िल्माये १९८१ की फ़िल्म 'एक दूजे के लिए' से एस. पी. बालसुब्रह्मण्यम और अनुराधा पौडवाल का गाया "मेरे जीवन साथी प्यार किये जा"। जी हाँ, बक्शी साहब नें केव

सजीव सारथी के काव्य संग्रह "एक पल की उम्र लेकर" का ऑनलाइन विमोचन और लघु फिल्म "नौ महीने" का प्रीमियर

सजीव सारथी हिंद युग्म से २००७ में जुड़े थे बतौर कवि. युग्म की स्थायी सदस्यता मिलने के बाद वो लगातार १ साल तक निरंतर कविताओं के माध्यम से पाठकों से जुड़े रहे. २००७ के अंतिम महीनों में अल्बम "पहला सुर" पर उन्होंने काम शुरू किया जो इन्टरनेट पर संगीत को नए सिरे से प्रस्तुत करने की दिशा में एक अहम कदम साबित हुआ. २००८ में रीलिस हुई अल्बम "पहला सुर" संगीत के एक नए युग की शुरुआत लेकर आया. बहुत से नए संगीत कर्मियों ने हिंद युग्म से जुड़ने की इच्छा जाहिर की और यहीं जरुरत महसूस हुई एक नए घटक "आवाज़" के शुभारंभ की. जुलाई २००८ में शुरू हुए आवाज़ ने कुछ ऐसे काम कर दिखाए जिन्हें बड़ी बड़ी संगीत कम्पनियाँ भी अपने बैनर पर करते हिचकते हैं. सजीव ने सुजॉय, अनुराग शर्मा, विश्व दीपक तन्हा, सुमित और रश्मि प्रभा जैसे कार्यकर्ताओं के दम पर आवाज़ का एक बड़ा कुनबा तैयार किया. इसी बीच सजीव का रचना कर्म भी निरंतर जारी रहा. एक गीतकार के रूप में भी और कविता के माध्यम से भी. उनके रेडियो साक्षात्कारों को सुनने के बाद केरल के एक प्रकाशक ने उनकी कविताओं का संग्रह निकालने की पेशकश की. २०११ अ

अलबेला मौसम कहता है स्वागतम....ताकि आप रहें खुश और तंदरुस्त

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 657/2011/97 फ़ि ल्म संगीत में हँसी मज़ाक की बात हो, और किशोर कुमार का नाम ही न आये, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। इन दिनों इसमें जारी है शृंखला 'गान और मुस्कान' और जैसा कि आपको पता है इसमें हम ऐसे गानें शामिल कर रहे हैं जिनमें गायक गायिका की हँसी सुनाई देती है। किशोर कुमार नें बेहिसाब मज़ाइया और हास्य रस के गीत गाये हैं। उनके गाये हास्य गीतों को सुनते हुए कई बार हम हँसते हँसते पेट पकड़ लेते हैं। लेकिन अगर आपसे यह पूछें कि उनकी हँसी किस गीत में सुनाई पड़ी है, तो शायद आपको कुछ समय लग जाये याद करने में। सबसे पहले जो गीत ज़हन में आता है वह है फ़िल्म 'पड़ोसन' का " एक चतुर नार ", जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भी बजा चुके हैं। आज के अंक के लिए हमने किशोर दा का जो गीत चुना है, वह कोई हास्य गीत नहीं है, बल्कि यह एक फ़मिली सॉंग् है, एक पारिवारिक गीत। एक आदर्श छोटा परिवार, जिसमें है माँ-बाप और एक छोटा सा प्यारा सा बच्चा। कुछ इसी पार्श्व पर ८० के दशक का एक गीत है किशोर

आ बदल डाले रस्में सभी इसी बात पे.....कुछ तो बात है अमित त्रिवेदी के "आई एम्" में

Taaza Sur Taal (TST) - 12/2011 - I AM आज सोमवार की इस सुबह मुझे यानी सजीव सारथी को यहाँ देख कर हैरान न होईये, दरअसल कई कारणों से पिछले कुछ दिनों से हम ताज़ा सुर ताल नहीं पेश कर पाए और इस बीच बहुत सा संगीत ऐसा आ गया जिस पर चर्चा जरूरी थी, तो कुछ बैक लोग निकालने के इरादे से मैं आज यहाँ हूँ, आज हम बात करेंगें ओनिर की नयी फिल्म "आई ऍम" के संगीत की. दरअसल फिल्म संगीत में एक जबरदस्त बदलाव आया है. अब फिल्मों में अधिक वास्तविकता आ गयी है, तो संगीत का इस्तेमाल आम तौर पर पार्श्व संगीत के रूप में हो रहा है. यानी लिपसिंग अब लगभग खतम सी हो गयी है. और एक ट्रेंड चल पड़ा है रोक् शैली का. व्यक्तिगत तौर पर मुझे रोक् जेनर बेहद पसंद है पर अति सबकी बुरी है. खैर आई ऍम का संगीत भी यही उपरोक्त दोनों गुण मौजूद हैं. पहला गाना "बांगुर", बेहद सुन्दर विचार, समाज के बदलते आयामों का चित्रण है, एक तुलनात्मक अध्ययन है बोलों में इस गीत के और इस कारुण अवस्था से बाहर आने की दुआ भी है. आवाजें है मामे खान और कविता सेठ की. अमित त्रिवेदी के चिर परिचित अंदाज़ का है गीत जिसे सुनते हुए भीड़ भाड भरे शहर उलझनो

बोलिए सुरीली बोलियाँ...और पिरोते रहिये हँसी की लड़ियाँ हर पल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 656/2011/96 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज रविवार, यानी छुट्टी का दिन, आप सभी नें अपने अपने परिवार के साथ हँसी-ख़ुशी बिताया होगा। हँसी-ख़ुशी से याद आया कि इन दिनों इस स्तंभ में जारी है लघु शृंखला 'गान और मुस्कान', जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गायक/गायिका की हँसी सुनाई देती है। आज आप सुनेंगे गायिका-अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित की हँसी। सिंगिंग् सुपरस्टार्स की श्रेणी में सुलक्षणा पंडित और सलमा आग़ा दो ऐसे नाम हैं जिनके बाद इस श्रेणी को पूर्णविराम सा लग गया है। ख़ैर, आज जिस गीत को लेकर हम उपस्थित हुए हैं वह है फ़िल्म 'गृहप्रवेश' का - "बोलिये सुरीली बोलियाँ"। भूपेन्द्र और सुलक्षणा पंडित की आवाज़ों में यह शास्त्रीय संगीत पर आधारित रचना है राग बिहाग पर आधारित, लेकिन इसमें हास्य का भी पुट है। अब जिस गीत के मुखड़े के ही बोल हैं "नमकीन आँखों की रसीली गोलियाँ", उसमें हास्य तो होगा ही न! और "नमकीन आँखों की रसीली गोलियाँ" कहने वाले गीतकार गुलज़ार साहब के अलावा भला और कौन हो सकता है! बासु भट्टाचार्य नि

'सुर संगम' में आज - 'तूती' की शोर में गुम हुआ 'नक्कारा'

सुर संगम - 20 - संकट में है ये शुद्ध भारतीय वाध्य प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख 'दुन्दुभी' नाम से किया गया है| देवालयों में इस घन वाद्य का अन्य वाद्यों- शंख, घण्टा, घड़ियाल आदि के बीच प्रमुख स्थान रहा है| परन्तु मंदिरों में नक्कारा की भूमिका ताल वाद्य के रूप में नहीं, बल्कि प्रातःकाल मन्दिर के कपाट दर्शनार्थ खुलने की अथवा आरती आदि की सूचना भक्तों अथवा दर्शनार्थियों को देने के रूप में ही रही है| 'सु र संगम' के साप्ताहिक स्तम्भ में आज मैं कृष्णमोहन मिश्र, सभी संगीतप्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ| आज के अंक में हम आपके साथ एक ऐसे लोक ताल वाद्य के बारे में चर्चा करेंगे जो भारतीय ताल वाद्यों में सबसे प्राचीन है, किन्तु आज इस वाद्य के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं| "नक्कारखाने में तूती की आवाज़"; दोस्तों, यह मुहावरा हम बचपन से सुनते आ रहे हैं और समय-समय पर इसका प्रयोग भी करते रहते हैं| ऐसे माहौल में जहाँ अपनी कोई सुनवाई न हो या बहुत अधिक शोर-गुल में अपनी आवाज़ दब जाए, वहाँ हम इसी मुहावरे का प्रयोग करते हैं| परन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आने वाल