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Go Green- दुनिया और पर्यावरण बचाने की अपील- आवाज़ का एक अंतरराष्ट्रीय गीत

हिन्द-युग्म ने इंटरनेट की दुनिया में शुक्रवार की एक नई परम्परा विकसित की है, जिसके अंतर्गत शुक्रवार के दिन इंटरनेटीय जुगलबंदी से रचे गये संगीतबद्ध गीत का विश्वव्यापी प्रदर्शन होता है। हिन्द-युग्म ने संगीत की इस नई और अनूठी परम्परा को देश से निकालकर विदेश में भी स्थापित किया है। वर्ष 2009 में आवाज़ ने भारत में स्थित रूसी दूतावास के लिए भारत-रूस मित्रता के लिए एक गीत 'द्रुज्बा' बनाया था। वह हमारा पहला प्रोजेक्ट था जिसमें हमने एक से अधिक देश की संवेदनाओं को सुरबद्ध किया था। आज हम एक ऐसा गीत लेकर आये हैं, जिसमें अंतर्निहित संवेदनाएँ, चिंताएँ और सम्भावनाएँ वैश्विक हैं। पूरी दुनिया हरियाली के भविष्य को लेकर चिंतित है। यह चिंता पर्यावरणवादियों को खाये जा रही है कि बहुत जल्द पुरी दुनिया फेफड़े भर हवा के लिए मरेगी-कटेगी। हम सब की यह जिम्मेदारी है कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को हम कम से कम एक ऐसी दुनिया दे जिसमें हवा-पानी की लड़ाई न हो। शायद इसीलए जो थोड़ा भी संजीदा है, वे 'गो ग्रीन' के साथ है। हमने इस बार फ्यूजन के माध्यम से इसी संदेश को ताज़ा किया है। शास्त्रीय संगीत और पश्विमी

तुम्हारे बिन गुजारे हैं कई दिन अब न गुजरेंगें....विश्वेश्वर शर्मा का लिखा एक गंभीर गीत लता रफ़ी के युगल स्वरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 530/2010/230 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी संगीत रसिकों का बहुत बहुत स्वागत है इस ५३०-वीं कड़ी में। दोस्तों, पिछले दो हफ़्तों से इस स्तंभ में हम सुनते चले आ रहे हैं एक से एक नायाब गीत जिन्हें जादूई शब्दों से संवारे हैं हिंदी के कुछ बेहद नामचीन साहित्यकार और कवियों ने। 'दिल की कलम से' लघु शृंखला में अब तक हमने जिन साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाएँ आपको सुनवाईं हैं, वो हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा, वीरेन्द्र मिश्र, गोपालसिंह नेपाली, बालकवि बैरागी, गोपालदास नीरज, अमृता प्रीतम, कवि प्रदीप, महादेवी वर्मा, और डॊ. हरिवंशराय बच्चन। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी के लिए हम चुन लाये हैं एक ऐसे साहित्यकार को जिनका शुमार बेहतरीन हास्यकवियों में होता है। हास्यकवि, यानी कि जो हास्य व्यंग के रस से ओत-प्रोत रचनाएँ लिखते हैं। उनकी लेखनी या काव्य के एक विशेषता होती है उनकी उपस्थित बुद्धि और सेन्स ऒफ़ ह्युमर। हिंदी के कुछ जाने माने हास्यकवियों के नाम हैं ओम प्रकाश आदित्य, अशकरण अटल, शैलेश लोधा, राहत इंदोरी, सुरेन्द्र शर्मा, डॊ. विष्णु सक्सेना, श्याम ज्वालामुखी, जगदिश सोलंकी, महेन्

कोई गाता मैं सो जाता....जब हरिवंश राय बच्चन के नाज़ुक बोलों को मिला येसुदास का स्वर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 529/2010/229 इ लाहाबाद के पास स्थित प्रतापगढ़ ज़िले के रानीगंज के बाबूपट्टी में एक कायस्थ परिवार में जन्म हुआ था प्रताप नारायण श्रिवास्तव और सरस्वती देवी के पुत्र का। घर पर प्यार से उन्हें 'बच्चन' कह कर पुकारते थे, जिसका अर्थ है "बच्चे जैसा"। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है 'दिल की कलम से' शृंखला की इस कड़ी में। पहली लाइन को पढ़कर आप समझ चुके होंगे कि आज जिस साहित्यकार की चर्चा हम कर रहे हैं, वो और कोई नहीं डॊ. हरिवंशराय बच्चन हैं। हरिवंशराय की शिक्षा एक स्थानीय म्युनिसिपल स्कूल में हुई और अपने पारिवारिक परम्परा को बनाये रखते हुए कायस्थ पाठशाला में उर्दू सीखने लगे। बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू युनिवर्सिटी से भी शिक्षा अर्जित की। इसी दौरान वो स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गये, महात्मा गांधी के नेतृत्व में। उन्हें यह अहसास हुआ कि यह राह वो राह नहीं जिस पर उन्हें आगे चलना है। इसलिए वो विश्वविद्यालय वापस चले गए। १९४१ से १९५२ तक वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाते रहे, और उसके बाद द

हौले हौले रस घोले....महान महदेवी वर्मा के शब्द और जयदेव का मधुर संगीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 528/2010/228 हिं दी साहित्य छायावादी विचारधारा के लिए जाना जाता है। छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक स्तंभ का नाम है महादेवी वर्मा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है हिंदी साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाओं पर आधारित लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की आठवीं कड़ी में। महादेवी वर्मा ना केवल हिंदी की एक असाधारण कवयित्री थीं, बल्कि वो एक स्वाधीनता संग्रामी, नारीमुक्ति कार्यकर्ता और एक उत्कृष्ट शिक्षाविद भी थीं। महादेवी वर्मा का जन्म २६ मार्च १९०७ को फ़र्रुख़ाबाद में हुआ था। उनकी शिक्षा मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुआ था। उनके पिता गिविंदप्रसाद और माता हेमरानी की वो वरिष्ठ संतान थीं। उनके दो भाई और एक बहन थीं श्यामा। महादेवी जी का विवाह उनके ९ वर्ष की आयु में इंदौर के डॊ. स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ, लेकिन नाबालिक होने की वजह से वो अपने माता पिता के साथ ही रहने लगीं और पढ़ाई लिखाई में मन लगाया। उनके पति लखनऊ में अपनी पढ़ाई पूरी। महादेवी जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और १९२९ में बी.ए की डिग्री लेकर १९३३ में सम्स्कृ

जी जान से खेले सोहेल सेन आशुतोष के लिए इस बार और साथ मिला जावेद साहब की अनुभवी कलम का

ताज़ा सुर ताल 45/2010 सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' के सभी श्रोताओं व पाठकों को मेरा नमस्कार और सजीव जी, आपको भी। सजीव - आप सभी को मेरा भी नमस्कार और सुजॊय, तुम्हे भी। आज हम एक पीरियड फ़िल्म के गानें सुनने जा रहे हैं। आशुतोष गोवारिकर एक ऐसे फ़िल्मकार हैं जो पीरियड फ़िल्मों के निर्माण के लिए जाने जाते हैं। 'लगान' और 'जोधा अकबर' इस जौनर में आते हैं। और 'स्वदेस' में उन्होंने बहुत अच्छा संदेश पहुँचाया था इस देश के युवाओं को। और अब वो लेकर आ रहे हैं 'खेलें हम जी जान से'। आज इसी फ़िल्म और इसके गीत संगीत का ज़िक्र। सुजॊय - मैंने सुना है कि इस फ़िल्म का पार्श्व बंगाल की सरज़मीन है और यह कहानी है आज़ादी के पहले की, आज़ादी के लड़ाई की। 'खेलें हम जी जान से' में मुख्य कलाकार हैं अभिषेक बच्चन, दीपिका पादुकोण, सिकंदर खेर, विशाखा सिंह, सम्राट मुखर्जी, मनिंदर सिंह, फ़ीरोज़ वाहिद ख़ान, श्रेयस पण्डित, अमीन ग़ाज़ी, आदि। जावेद अख़्तर के लिखे गीतों को धुनों में इस बार ए. आर. रहमान ने नहीं, बल्कि सोहैल सेन ने पिरोया है। जी हाँ, वही सोहैल सेन, जिन्होंने आशुतोष की

हम लाये हैं तूफानों के किश्ती निकाल के.....कवि प्रदीप का ये सन्देश जो आज भी मन से राष्ट्र प्रेम जगा जाता है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 527/2010/227 दो स्तों कल था १४ नवंबर, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का जन्मदिवस। नेहरु जी का बच्चों के प्रति अत्यधिक लगाव हुआ करता था। बच्चों के लिए उन्होंने बहुत सारा कार्य भी किया। इसी वजह से आज का यह दिन देश भर में 'बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार। 'दिल की कलम से', इस शुंखला में आज हम लेकर आए हैं एक ऐसे कवि की बातें जो एक कवि होने साथ साथ एक उत्कृष्ट गीतकार और गायक भी थे, जिनकी लेखनी और गायकी में झलकता है उनका अपने देश के प्रति प्रेम और देशवासियों में जागरुक्ता लाने की शक्ति। जी हाँ, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में ज़िक्र कवि प्रदीप का। कवि प्रदीप का जन्म १९१५ में मध्य प्रदेश के उज्जैन के बाधनगर में हुआ था। उनका पूरा नाम था रामचन्द्र नारायणजी द्विवेदी। उनकी शिक्षा अलाहाबाद में हुई और वहीं उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरु की। गर्मियों की छुट्टियों मे वे मित्रों के घर जाया करते थे। ऐसी ही एक छुट्टी में वे बम्बई आये और उनकी मुलाक़ात हो गई बॊम्बे टॊकीज़ के हिमांशु राय से। उनकी लेखनी से प

अम्बर की एक पाक सुराही....अमृता प्रीतम की कलम का जादू और आशा के स्वरों की खुशबू

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 526/2010/226 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! आज रविवार की शाम, यानी कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई सप्ताह का शुभारंभ। पिछले हफ़्ते हमने शुरु की थी लघु शृंखला 'दिल की कलम से', जिसके तहत हिंदी साहित्यकारों द्वारा लिखे फ़िल्मी गीत हम आपको सुनवा रहे हैं। अब तक हमने इस शृंखला में जिन साहित्यकारों को शामिल किया है, वो हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा, वीरेन्द्र मिश्र, गोपालसिंह नेपाली, बालकवि बैरागी, और गोपालदास नीरज। आज हम जिस साहित्यकार की बात करने जा रहे हैं, वो हैं मशहूर लेखिका व कवयित्री अमृता प्रीतम। मानव मन की जो अभिव्यक्ति होती है, उन्हें वर्णन करना बड़ा मुश्किल होता है। लेकिन अमृता प्रीतम द्वारा लिखे साहित्य को अगर हम ध्यान से पढ़ें तो पायेंगे कि किस सहजता से उन्होंने बड़ी से बड़ी बात कह डाली है, जिन्हें हम केवल महसूस ही कर सकते हैं। उनकी लेखनी तो जैसे फूल पर ठहरी हुई ओस की बूंदें हैं। ३१ अगस्त १९१९ को जन्मीं अमृता प्रीतम पंजाब की पहली मशहूर कवयित्री और लेखिका हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वो पहली महिला हैं और राष्ट्रपति