'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का फिर एक बार स्वागत है। दोस्तों, अभी परसों ही हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ५००-वें पड़ाव पर आ कर रुके हैं, और कल से यह सुरीला कारवाँ फिर से चल पड़ेगा अपने १०००-वें पड़ाव की तरफ़। इस उपलब्धि पर आप सब ने जिस तरह से हमें बधाई दी है, जिस तरह से हमारे प्रयास को स्वीकारा और सराहा है, हम अपनी व्यस्त ज़िंदगी से बहुत ही मुश्किल से समय निकाल कर इस स्तंभ को प्रस्तुत करते हैं, लेकिन आप सब के इतने प्यार और सराहना पाकर हमें वाक़ई ऐसा लगने लगा है कि हम अपनी मक़सद में कामयाब हुए हैं। और इंदु जी ने तो बिल्कुल सही कहा है कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की बदौलत हम जैसे एक परिवार में बंध गये हैं। हम एक दूसरे को जानने और पहचानने लगे हैं। और ये पुराने सुमधुर गानें ही जैसे एक डोर से हमें आपस में बांधे हुए हैं। तो दोस्तों, कल से इस सुरीले सफ़र पर फिर से चल निकलने से पहले क्यों ना आज हम पीछे मुड़ कर एक बार फिर से गुज़रें 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के पीछे छोड़ आये उन सुरीले गलियारों से। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के कई ऐसे श्रोता व पाठक हैं जो हम से इस स्तंभ के