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सुनो कहानी: एक गधे की वापसी - कृश्न चन्दर - भाग 2/3

सुनो कहानी: एक गधे की वापसी - कृश्न चन्दर - भाग 2/3 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में प्रेमचंद की अमर कहानी "मंत्र" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं कृश्न चन्दर की कहानी "एक गधे की वापसी" , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। एक गधे की वापसी का प्रथम भाग पढने के लिये कृपया यहाँ क्लिक करें कहानी के इस अंश का कुल प्रसारण समय 18 मिनट 27 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। यह तो कोमलांगियों की मजबूरी है कि वे सदा सुन्दर गधों पर मुग्ध होती हैं ~ पद्म भूषण कृश्न चन्दर (1914-1977) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी मैं महज़ एक गधा आवारा हूँ। ( "एक गधे की वापसी" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक

बस करना है खुद पे यकीं....शारीरिक विकलांगता से जूझते लोगों के लिए बिस्वजीत, ऋषि और सजीव ने दिया एक नया मन्त्र

Season 3 of new Music, Song # 14 विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है, न ये आपके पूर्वजन्मों के पापों की सजा है न आपके परिवार को मिला कोई श्राप. वास्तविकता यह है कि इस दुनिया में कोई भी परिपूर्ण नहीं है, कोई न कोई कमी हर इंसान में मौजूद होती है, कुछ नज़र आ जाती है तो कुछ छुपी रहती है. इसी तरह हर इंसान में कुछ न कुछ अलग काबिलियत भी होती है. अपनी कमियों को समझकर उस पर विजय पाना ही हर जिंदगी का लक्ष्य है. इंसान वही है जो अपनी खूबियों का पलड़ा भारी कर अपनी कमियों को पछाड़ देता है, और दिए हुए संदर्भों में खुद को मुक्कम्मल साबित करता है. पर ये भी सच है कि सामजिक धारणाओं और संकुचित सोच के चलते शारीरिक विकलांगता के शिकार लोगों को समाज में अपनी खुद की समस्याओं के आलावा भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आवाज़ महोस्त्सव के चौदहवें गीत में आज हम इन्हीं हालातों से झूझ रहे लोगों के लिए ये सन्देश लेकर आये हैं हिम्मत और खुद पे विश्वास कर अगर वो चलें तो कुछ भी मुश्किल नहीं है. सजीव सारथी के झुझारू बोलों को सुरों में पिरोया है ऋषि एस ने और आपनी आवाज़ से इस गीत में एक नया जोश भरा है बिश्वजीत नंदा ने.

रिमझिम के गीत सावन गाये....एल पी के संगीत में जब सुर मिले रफ़ी साहब और लता जी के तो सावन का मज़ा दूना हो गया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 439/2010/139 रि मझिम के तरानों पर सवार होकर हम आज पहुंचे हैं इस भीगी भीगी शृंखला की अंतिम कड़ी पर। 'रिमझिम के तराने' में आज प्रस्तुत है संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की एक बेहतरीन रचना की। एल.पी ने सावन के कई हिट गीत हमें दिए हैं, जैसे कि "आया सावन झूम के", "कुछ कहता है यह सावन", "झिलमिल सितारों का आँगन होगा", और आज का प्रस्तुत गीत "रिमझिम के गीत सावन गाए हाए भीगी भीगी रातों में"। यह १९६९ की फ़िल्म 'अनजाना' का गीत है। बताना ज़रूरी है कि यह वही साल था जिस साल 'आराधना' में "रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना" जैसा सेन्सुअस गीत आया था जो एक नया प्रयोग था। उसके बाद से तो जैसे एक ट्रेण्ड सा ही बन गया कि बारिश से बचने के लिए हीरो और हीरोइन किसी सुनसान और खाली पड़े मकान में शरण लेते हैं, और वहाँ पर बारिश को सलाम करते हुए एक रोमांटिक गीत गाते हैं। तो एक तरह से इसे "रूप तेरा मस्ताना" जौनर भी कह सकते हैं। लता-रफ़ी की आवाज़ में फ़िल्म 'अनजाना' का यह गीत बेहद ख़ूबसूरत है हर लि

सावन के महीने में.....जब याद आये मदन मोहन साहब तो दिल गा उठता है...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 438/2010/138 ती न दशक बीत चुके हैं, लेकिन जब भी जुलाई का यह महीना आता है तो कलेण्डर का पन्ना इशारा करती है १४ जुलाई के दिन की तरफ़ जिस दिन एक महान संगीतकार हम से बिछड़े थे। ये वो संगीतकार हैं जो जाते वक़्त हमसे कह गए थे कि "मेरे लिए ना अश्क़ बहा मैं नहीं तो क्या, है तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्या"। कितनी सच बात है कि उनके गानें हमारे साथ वफ़ा ही तो करती आई है आज तक। कुछ ऐसा जादू है उनके गीतों में कि हम चाह कर भी उन्हे नहीं अपने दिल से मिटा सकते। दोस्तों, जुलाई और सावन का जब जब यह महीना आता है, संगीतकार मदन मोहन की सुरीली यादें भी जैसे छम छम बरसने लग पड़ती हैं। ऐसे में जब हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सावन के फुहारों की इन दिनों बातें कर रहे हैं तो आज के दिन मदन मोहन साहब के संगीत से आपको कैसे वंचित रख सकते हैं! आज हम इस कड़ी में सुनने जा रहे हैं मदन साहब की धुनों से सजी एक रिमझिम फुहारों भरा गीत। वैसे तो "रिमझिम" के साथ अगर मदन मोहन को जोड़ा जाए तो सब से पहले फ़िल्म 'वो कौन थी' का वही मशहूर गीत "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम, पिय

बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की.. नारी-मन में मचलते दर्द को दिल से उभारा है परवीन और मेहदी हसन ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #९२ "ना री-मन की व्यथा को अपनी मर्मस्पर्शी शैली के माध्यम से अभिव्यक्त करने वाली पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर उर्दू-काव्य की अमूल्य निधि हैं।" - यह कहना है सुरेश कुमार का, जिन्होंने "परवीन शाकिर" पर "खुली आँखों में सपना" नाम की पुस्तक लिखी है। सुरेश कुमार आगे लिखते हैं: बीसवीं सदी के आठवें दशक में प्रकाशित परवीन शाकिर के मजमुआ-ए-कलाम ‘खुशबू’ की खुशबू पाकिस्तान की सरहदों को पार करती हुई, न सिर्फ़ भारत पहुँची, बल्कि दुनिया भर के उर्दू-हिन्दी काव्य-प्रेमियों के मन-मस्तिष्क को सुगंधित कर गयी। सरस्वती की इस बेटी को भारतीय काव्य-प्रेमियों ने सर-आँखों पर बिठाया। उसकी शायरी में भारतीय परिवेश और संस्कृति की खुशबू को महसूस किया: ये हवा कैसे उड़ा ले गयी आँचल मेरा यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी परवीन शाकिर की शायरी, खुशबू के सफ़र की शायरी है। प्रेम की उत्कट चाह में भटकती हुई, वह तमाम नाकामियों से गुज़रती है, फिर भी जीवन के प्रति उसकी आस्था समाप्त नहीं होती। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए, वह अपने धैर्य का परीक्षण भी करती है। कमाल-ए-ज

बरसे फुहार....गुलज़ार साहब के ट्रेड मार्क शब्द और खय्याम साहब का सुहाना संगीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 437/2010/137 'रि मझिम के तराने' शृंखला की आज है आठवीं कड़ी। दोस्तों, हमने इस बात का ज़िक्र तो नहीं किया था, लेकिन हो सकता है कि शायद आप ने ध्यान दिया हो, कि इस शृंखला में हम बारिश के १० गीत सुनवा रहे हैं जिन्हे १० अलग अलग संगीतकारों ने स्वरबद्ध किए हैं। अब तक हमने जिन संगीतकारों को शामिल किया, वो हैं कमल दासगुप्ता, वसंत देसाई, शंकर जयकिशन, हेमन्त कुमार, सचिन देव बर्मन, रवीन्द्र जैन, और राहुल देव बर्मन। आज जिस संगीतकार की बारी है, वह एक बेहद सुरीले और गुणी संगीतकार हैं, जिनकी धुनें हमें एक अजीब सी शांति और सुकून प्रदान करती हैं। एक सुकून दायक ठहराव है जिनके संगीत में। उनके गीतों में ना अनर्थक साज़ों की भीड़ है, और ना ही बोलों में कोई सस्तापन। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं ख़य्याम साहब की। आज की कड़ी में सुनिए आशा भोसले की आवाज़ में सन्‍ १९८० की फ़िल्म 'थोड़ी सी बेवफ़ाई' का रिमझिम बरसता गीत "बरसे फुहार, कांच की जैसी बूंदें बरसे जैसे, बरसे फुहार"। गुलज़ार साहब का लिखा हुआ गीत है। इस फ़िल्म के दूसरे गानें भी काफ़ी मशहूर हुए थे, मसलन लता-किशोर

पाँव की बेड़ियों से आज़ादी लेकर संगीत के नाव के सहारे एक लंबी "उड़ान" भरी है अमित और अमिताभ ने

ताज़ा सुर ताल २६/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' मे सभी श्रोताओं व पाठकों को मेरा नमस्कार, और विश्व दीपक जी आपको भी। विश्व दीपक - सभी को मेरा भी नमस्कार, और सुजॊय जी आपको भी। सुजॊय - फ़िल्मी गीत फ़िल्म की कहानी, किरदार, और सिचुएशन के मुताबिक ही बनाने पड़ते हैं। यानी कि फ़िल्मी गीतों के कलाकारों को एक दायरे में बंधकर ही अपने कला के जोहर दिखाने पड़ते हैं। और अगर फ़िल्म की कहानी ऐसी हो कि जो फ़ॊरमुला फ़िल्मों की कहानी से बिल्कुल हट के हो, अगर उसमें हीरो-हीरोइन वा्ला कॊनसेप्ट ही ना हो, और फ़िल्म के निर्देशक और संगीतकार प्रयोगधर्मी हों, तब ऐसे फ़िल्म के संगीत से हम कुछ ग़ैर पारम्परिक उम्मीदें ही कर सकते हैं। है ना विश्व दीपक जी? विश्व दीपक - सही कहा, और आज हम ऐसी ही एक लीक से बाहर की फ़िल्म 'उड़ान' के गीतों को लेकर उपस्थित हुए हैं। यह फ़िल्म अनुराग कश्यप की है, जिसे निर्देशित किया है विक्रमादित्य मोटवाणी ने। ये वही विक्रमादित्य हैं जिन्होंने "देव-डी" की कहानी लिखी थी। अनुराग की पिछली फ़िल्मों की तरफ़ अगर एक नज़र दौड़ा ली जाए तो 'देव-डी', 'ब्लैक फ़्राइडे&#