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दो हाथ - इस्मत चुगताई

सुनो कहानी: दो हाथ 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में उन्हीं की हिंदी कहानी " माय नेम इज खान " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं इस्मत चुगताई की एक सुन्दर, मार्मिक कथा " दो हाथ ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 6 मिनट 42 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। चौथी के जोडे क़ा शगुन बडा नाजुक़ होता है। ~ इस्मत चुगताई (1911-1991) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी बिलकुल बेवकूफ है तू। ( इस्मत चुगताई की "दो हाथ" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से ड

महान फनकारों के सुरों से सुर मिलते आज हम आ पहुंचे हैं रिवाईवल की अंतिम कड़ी में ये कहते हुए - तू भी मेरे सुर में सुर मिला दे...

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४५ पि छले ४५ दिनों से, यानी डेढ़ महीनों से आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं रिवाइवल सुनहरे दौर के सदाबहार नग़मों का, जिन्हे हमारे कुछ जाने पहचाने साथियों की आवाजों में। आज हम आ पहुँचे हैं इस विशेष शृंखला की अंतिम कड़ी पर। इस शृंखला में जिन जिन गायक गायिकाओं ने हमारे सुर में सुर मिला कर इस शृंखला को इस सुरीले अंजाम तक पहुँचाया है, हम उन सभी कलाकारों का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करते हैं, और साथ ही साथ हम आप सभी सुधी श्रोताओं का भी आभार व्यक्त करते हैं जिन्होने इन गीतों को सुन कर अपनी राय और तारीफ़ें लिख भेजी। तो आइए आज इस सुरीली शृंखला को एक सुरीला अंजाम प्रदान करते हैं और सुनते हैं फ़िल्म 'चितचोर' से "तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले, संग गा ले, तो ज़िंदगी हो जाए सफल"। आपको बता दें कि इस गीत के लिए हेमलता को उस साल का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिला था। इससे पहले कि आप यह गीत सुनें, इस गीत की रिकार्डिंग् की कहानी सुनिए ख़ुद हेमलता से जो उन्होने विविध भारती के एक इंटरव्यू में कहे थे। "इस गीत की रिकार्डिंग् के दिन मैं स्टुडियो लेट पहुँची। क

गीत कभी बूढ़े नहीं होते, उनके चेहरों पर कभी झुर्रियाँ नहीं पड़ती...सच ही तो कहा था गुलज़ार साहब ने

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४४ गु लज़ार, राहुल देव बर्मन, आशा भोसले। ७० के दशक के आख़िर से लेकर ८० के दशक के मध्य भाग तक इस तिकड़ी ने फ़िल्म सम्गीत को एक से एक यादगार गीत दिए हैं। लेकिन इनमें जिस फ़िल्म के गानें सब से ज़्यादा सुने और पसंद किए गए, वह फ़िल्म थी 'इजाज़त'। इस फ़िल्म में आशा जी का गाया हर एक गीत कालजयी साबित हुआ। ख़ास कर "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है"। गुलज़ार साहब ने शब्दों के ऐसे ऐसे जाल बुने हैं इस गीत में कि ये बस वो ही कर सकते हैं। चाहे ख़त में लिपटी रात हो या एक अकेली छतरी में आधे आधे भीगना, या युं कहें कि मन का आधा आधा भीगना, सूखे वाले हिस्से का घर ले आना और गिले मन को बिस्तर के पास छोड़ आना, इस तरह के ऒब्ज़र्वेशन और कल्पना गुलज़ार साहब के अलावा कोई दूसरा आज तक नहीं कर पाया है। विविध भारती में गुलज़ार साहब एक बार 'जयमाला' कार्यक्रम में यह गीत बजाया था। तो उन्होने अपने ही शायराना अंदाज़ में इस गीत को पेश करने से पहले कुछ इस तरह से कहे थे - "दिल में ऐसे संभलते हैं ग़म जैसे कोई ज़ेवर संभालता है। टूट गए, नाराज़ हो गए, अंगूठी उतारी, वा

दो युवा प्रेमियों के प्रेम तो कभी प्रेम त्रिकोण को आधार बना कर लिखी गयी बहुत सी फ़िल्में, और अनेकों गीत भी

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४३ रा ज कपूर कैम्प की एक मज़बूत स्तम्भ रहीं हैं लता मंगेशकर। दो एक फ़िल्मों को छोड़कर राज साहब की सभी फ़िल्मों की नायिका की आवाज़ बनीं लताजी। राज कपूर और लताजी के संबंध भी बहुत अच्छे थे। इसी सफल फ़िल्मकार-गायिका जोड़ी के नाम आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह शाम! दोस्तों, २ जुन १९८८ को राज कपूर इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ गये थे। इसके कुछ ही दिन पहले लताजी का एक कॊन्‍सर्ट लंदन मे आयोजित हुआ था जिसका नाम था 'लता - लाइव इन इंगलैंड'। इस कॊन्‍सर्ट की रिकार्डिंग् मेरे पास उपलब्ध है दोस्तों, और उसी मे लताजी ने राज कपूर की दीर्घायु कामना करते हुए जनता से क्या कहा था वो मैं आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ - "भाइयों और बहनों, हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री के प्रोड्युसर, डायरेक्टर, हीरो, और किसी हद तक मैं कहूँगी म्युज़िक डायरेक्टर भी, राज कपूर साहब बहुत बीमार हैं दिल्ली में, मैं आप लोगों से यह प्रार्थना करूँगी कि आप लोग उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना करें कि उनकी तबीयत ठीक हो जायें। हम लोगों ने कम से कम ४० साल एक साथ काम किया है, और हमारा मन वही है, रोज़ ही

बेदर्द मैंने तुझको भुलाया नहीं हनोज़... कुछ इस तरह जोश की जिंदादिली को स्वर दिया मेहदी हसन ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८६ दै निक जीवन में आपका ऐसे इंसानों से ज़रूर पाला पड़ा होगा जिनके बारे में लोग दो तरह के ख्यालात रखते हैं, मतलब कि कुछ लोग उन्हें नितांत हीं शरीफ़ और वफ़ादार मानते हैं तो वहीं दूसरे लोगों की नज़र में उनसे बड़ा अवसरवादी कोई नहीं। हमारे आज के शायर की हालत भी कुछ ऐसी हीं है। कहीं कुछ लोग उन्हें राष्ट्रवादी मानते हैं तो कुछ उन्हें "छिपकली की तरह रंग बदलने वाला" छद्म-राष्ट्रवादी। उनका चरित्र-चित्रण करने के लिए जहाँ एक और "अली सरदार जाफरी" का "कहकशां"(धारावाहिक) है तो वहीं "प्रकाश पंडित" की "जोश और उनकी शायरी"(पुस्तक)। जी हाँ हम जोश की हीं बात कर रहे हैं। जोश अकेले ऐसे शायर हैं जिनकी अच्छाईयाँ और बुराईयाँ बराबर-मात्रा में अंतर्जाल पर उपलब्ध है, इसलिए समझ नहीं आ रहा कि मैं किसका पक्ष लूँ। अगर "कहकशां" देखकर कोई धारणा निर्धारित करनी हो तब तो जोश ने जो भी किया वह समय की माँग थी। उनके "पाकिस्तान-पलायन" के पीछे उनकी मजबूरी के अलावा कुछ और न था। जान से प्यारा "देश" उन्हें बस इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि उन

क्या लता जी की आवाज़ से भी अधिक दिव्य और मधुर कुछ हो सकता है कानों के लिए

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४२ 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज हम जिस गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न लेकर आए हैं, वह है सन् १९९१ में बनी फ़िल्म 'लेकिन' से। हृदयनाथ मंगेशकर द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को लता जी ने गाया था। ९० के दशक के शुरु शुरु में आई इस फ़िल्म के गीतों के माध्यम से लता जी ने यह एक बार फिर से साबित किया था कि इस नए दशक में भी अगर वो चाहें तो राज कर सकती हैं। लता जी ने सन् १९८३ में विविध भारती पर जयमाला कार्यक्रम प्रस्तुत किया था जिसमें उन्होने कुल ९ गीतों में से ५ गानें उन्होने अपने भाई हृदयनाथ के चुने। इनमें से एक गीत तो मराठी में था, बाक़ी के गानें थे "मुझे तुम याद करना और मुझको याद आना तुम" (मशाल), "तुम आशा विश्वास हमारे" (सुबह), "फ़ुटपाथों के हम रहनेवाले" (मशाल) तथा "ये आँखें देख कर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं" (धनवान)। उसी कार्यक्रम में लता जी ने हृदयनाथ जी के बारे में यह कहा था - "मुझे कुछ ऐसा लग रहा है कि हृदयनाथ पर एक ठप्पा लग गया है ग़ैर फ़िल्मी गीत कॊम्पोज़ करने का, या फिर उनके गानों में क्लासिकल म्युज़िक की प्रच

बस प्यार का नाम न लेना, आइ हेट लव स्टोरीज़, यही गुनगुनाते आ पहुँचे हैं विशाल, शेखर, कुमार और अन्विता

ताज़ा सुर ताल २०/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' के आज के अंक में आप सब का स्वागत है। विश्व दीपक जी, पिछले हफ़्ते फ़िल्म 'काईट्स' प्रदर्शित हुई, लेकिन आश्चर्य की बात रही कि फ़िल्म को वो लोकप्रियता हासिल नहीं हो सकी जिसकी उम्मीदें की गईं थी। ऐसा सुनने में आया है कि जिन लोगों को अंग्रेज़ी फ़िल्में देखने का शौक है, उन्हे यह फ़िल्म पसंद आई, लेकिन बॊलीवुड मसाला फ़िल्मों के दर्शकों को यह फ़िल्म ज़्यादा हज़म नहीं हुई। आपके क्या विचार हैं 'काइट्स' को लेकर? विश्व दीपक - सुजॊय जी, मैंने अभी तक काईट्स देखी नहीं है, इसलिए कुछ भी कहने की हालत में नहीं हूँ। इस शनिवार देखने का विचार है, उसी के बाद अपने विचार जाहिर करूँगा। हाँ, लेकिन यह तो है कि ज्यादातर दर्शकों को फिल्म की कहानी में कुछ भी नया नज़र नहीं आया है, उन सब का कहना है कि ऋतिक रोशन का इस फिल्म के लिए ढाई साल का ब्रेक लेना हजम नहीं होता। वहीं मुझे एकाध ऐसे भी लोग मिले हैं जिन्हें यह फिल्म "फिल्मांकन" (सिनेमाटोग्राफी) के कारण पसंद आई है तो दो-चार ऐसे भी हैं जिन्हें बारबारा मोरी के अभिनय ने प्रभावित किया है। कुल म