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साल 2010 की पहली गीतों भरी कहानी

गुनगुनाते लम्हे- 4 आज जनवरी महीना का पहला मंगलवार है। पहला मंगलवार मतलब गुनगुनाते लम्हे का दिन। वैसे देखा जाये तो आज का दिन साल 2010 का भी पहला मंगलवार है। तो चलिए आज के दिन को गीतों भरी कहानी से रुमानी बनाते हैं। अपराजिता की दिकलश आवाज़ में गुनते हैं रश्मि प्रभा की कहानी। 'गुनगुनाते लम्हे' टीम आवाज़/एंकरिंग कहानी तकनीक अपराजिता कल्याणी रश्मि प्रभा खुश्बू आप भी चाहें तो भेज सकते हैं कहानी लिखकर गीतों के साथ, जिसे दूंगी मैं अपनी आवाज़! जिस कहानी पर मिलेगी शाबाशी (टिप्पणी) सबसे ज्यादा उनको मिलेगा पुरस्कार हर माह के अंत में 500 / नगद राशि। हाँ यदि आप चाहें खुद अपनी आवाज़ में कहानी सुनाना तो आपका स्वागत है.... 1) कहानी मौलिक हो। 2) कहानी के साथ अपना फोटो भी ईमेल करें। 3) कहानी के शब्द और गीत जोड़कर समय 35-40 मिनट से अधिक न हो, गीतों की संख्या 7 से अधिक न हो।। 4) आप गीतों की सूची और साथ में उनका mp3 भी भेजें। 5) ऊपर्युक्त सामग्री podcast.hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें।

चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे...मन्ना डे और लता ने ऐसा समां बाँधा को होश उड़ जाए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 304/2010/04 'हिं द युग्म' और 'आवाज़' की तरफ़ से, और हम अपनी तरफ़ से आज राहुल देव बर्मन यानी कि हमारे चहेते पंचम दा को उनकी पुण्यतिथि पर अर्पित कर रहे हैं अपनी श्रद्धांजली। जैसा कि इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं उन्ही के स्वरब्द्ध किए अलग अलग रंग के, अलग अलग जौनर के गानें। पहली कड़ी में आप ने मन्ना डे और लता मंगेशकर का गाया हुआ एक बड़ा ही मीठा सा शास्त्रीय रंग वाला गाना सुना था फ़िल्म 'जुर्माना' का। आज बारी है लोक रंग की, लेकिन एक बार फिर से वही दो आवाज़ें, यानी कि लता जी और मन्ना दा के। लेकिन यह गाना बिल्कुल अलग है। जहाँ उस गाने में गायकी पर ज़ोर था क्योंकि एक संगीत शिक्षक और एक प्रतिभाशाली गायिका के चरित्रों को निभाना था, वहीं दूसरी तरफ़ आज के गाने में है भरपूर मस्ती, डांस, और छेड़-छाड़, जिसे सुनते हुए आप भी मचलने लग पड़ेंगे। संगीत, बोल और गायकी के द्वारा गाँव का पूरा का पूरा नज़ारा सामने आ जाता है इस गीत में। ग़ज़ब की मस्ती है इस गीत में। यह गीत है नासिर हुसैन की फ़िल्म 'बहारो के सपने' का "चुनरी संभाल

दूल्हा मिल गया...शाहरुख़ के कधों पर ललित पंडित के गीतों की डोली...

ताज़ा सुर ताल ०१/ २०१० सजीव - गुड्‍ मॊर्निंग् सुजॊय! और बताओ न्यू ईयर कैसा रहा? ख़ूब जम के मस्ती की होगी तुमने? सुजॊय - गुड्‍ मॊर्निंग् सजीव! न्यू ईयर तो अच्छा रहा और इन दिनों कड़ाके की ठंड जो पड़ रही है उत्तर भारत में, तो मैं भी उसी की चपेट में हूँ, इसलिए घर में ही रहा और रेडियो व टेलीविज़न के तमाम कार्यक्रमों, जिनमें २००९ के फ़िल्मों और उनके संगीत की समीक्षात्मक तरीके से प्रस्तुतिकरण हुआ, उन्ही का मज़ा ले रहा था। सजीव - ठीक कहा, पिछले कुछ दिनों में हमने २००९ की काफ़ी आलोचना, समालोचना कर ली, अब आओ कमर कस लें २०१० के फ़िल्म संगीत को सुनने और उनके बारे में चर्चा करने के लिए। सुजॊय - मैं समझ रहा हूँ सजीव कि आपका इशारा किस तरफ़ है। 'ताज़ा सुर ताल', यानी कि TST की आज इस साल की पहली कड़ी है, और इस साल के शुरु से ही हम इस सीरीज़ में इस साल रिलीज़ होने वाले संगीत को रप्त करते जाएँगे। सजीव - हाँ, और हमारी अपने पाठकों और श्रोताओं से यह ख़ास ग़ुज़ारिश है कि अब की बार आप इसमें सक्रीय भूमिका निभाएँ। केवल यह कहकर नए संगीत से मुंह ना मोड़ लें कि आपको नया संगीत पसंद नहीं। बल्कि एक विश्लेषण

ओ मेरे दिल के चैन....किशोर का अद्भुत रूमानी अंदाज़ और मजरूह-पंचम का कमाल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 303/2010/03 शा स्त्रीय और पाश्चात्य रंगों के बाद 'पंचम के दस रंग' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज बारी है रुमानीयत की। यानी कि रोमांटिक गाने की। युं तो आर. डी. बर्मन के संगीत में एक से एक रोमांटिक गानें बने हैं समय समय पर, लेकिन जिस गीत को हमने चुना है वह एक अलग ही मुकाम रखती है इस जौनर में। और वह गीत है १९७२ की फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' का, "ओ मेरे दिल के चैन, चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए"। ७० का दशक वह दशक था जब पंचम ज़्यादातर तेज़ रफ़्तार वाले और जोशिले गानें लेकर आ रहे थे। लेकिन जब भी सिचुयशन ने डिमाण्ड की किसी सॊफ़्ट एण्ड सेन्सिटिव गाने की, उसमें भी पंचम अपना जादू दिखा गए। फ़िल्म 'मेरे जीवन साथी' में राजेश खन्ना के लिए एक से एक सुपर डुपर हिट गानें बनें जो किशोर दा की आवाज़ पा कर अमर हो गए। वैसे भी राजेश खन्ना की फ़िल्मों की यही खासियत हुआ करती थी कि फ़िल्म चाहे चले ना चले, उनके गानें ज़रूर कामयाब हो जाते थे। इसी फ़िल्म को अगर लें तो प्रस्तुत गीत के अलावा किशोर दा ने जो गानें इसमें गाए वो हैं "दीवाना लेके आया दिल का तराना&qu

ओ हसीना जुल्फों वाली....जब पंचम ने रचा इतिहास तो थिरके कदम खुद-ब-खुद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 302/2010/02 'पं चम के दस रंग' शृंखला की दूसरी कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं दोस्तों। कल आपने पहली कड़ी में सुनें थे पंचम के गीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की मधुरता। आज इसके बिल्कुल विपरीत दिशा में जाते हुए आप के लिए हम लेकर आए हैं एक धमाकेदार पाश्चात्य धुनों पर आधारित गीत। फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' राहुल देव बर्मन की पहली सुपरहिट फ़िल्म मानी जाती है, जिसमें कोई संशय नहीं है। इसी फ़िल्म में वो अपने नए अंदाज़ में नज़र आए और जिसकी वजह से उन्हे पाँच क्रांतिकारी संगीतकारों में जगह मिली। (बाक़ी के चार संगीतकार हैं मास्टर ग़ुलाम हैदर, सी. रामचंद्र, ओ. पी. नय्यर, और ए. आर. रहमान)। इन नामों को पढ़कर आप ने यह ज़रूर अंदाज़ा लगा लिया होगा कि इन्हे क्रांतिकारी क्यों कहा गया है। तो फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' पंचम की कामयाबी की पहली मंज़िल थी। इस फ़िल्म से फ़िल्म संगीत जगत में उन्होने जो हंगामा शुरु किया था, वह हंगामा जारी रखा अपने अंतिम समय तक। रफ़ी साहब पर केन्द्रित शृंखला के अन्तर्गत इस फ़िल्म से " दीवाना मुझसा नहीं " गीत हमने सुनवाया था और फ़िल्म की

हरिशंकर परसाई की कहानी "नया साल"

आवाज़ के सभी श्रोताओं को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने पंडित सुदर्शन की कालजयी रचना " हार की जीत " का पॉडकास्ट शरद तैलंग की आवाज़ में सुना था। नववर्ष के शुभागमन पर आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं हरिशंकर परसाई लिखित व्यंग्य " नया साल ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "नया साल" का कुल प्रसारण समय मात्र 4 मिनट 40 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी साधो, मेरी कामना अक्सर उल्टी हो जाती है। ( हरिशंकर परसाई के व्यंग्य "नया साल" से

ए सखी राधिके बावरी हो गई...बर्मन दा के शास्त्रीय अंदाज़ को सलाम के साथ करें नव वर्ष का आगाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 301/2010/01 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों को हमारी तरफ़ से नववर्ष की एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएँ! नया साल २०१० आप सब के लिए मंगलमय हो यही ईश्वर से कामना करते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला ३०० कड़ियाँ पूरी कर चुका हैं, ७ दिनों के अंतराल के बाद, आज से हम फिर एक बार हाज़िर हैं इस शूंखला के साथ और फिर उसी तरह से हर रोज़ लेकर आएँगे गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा ख़ास आपके लिए। पहेली प्रतियोगिता का स्वरूप भी बदल रहा है आज से, तो जल्द जवाब देने से पहले शर्तों को ठीक तरह से समझ लीजिएगा! तो दोस्तों, नए साल में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत एक धमाकेदार तरीके से होनी चाहिए, क्यों है न? तो फिर हो जाइए तैयार क्योंकि आज से हम शुरु कर रहे हैं क्रांतिकारी संगीतकार राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध किए दस अलग अलग रंगों के गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला - पंचम के दस रंग । युं तो पंचम के दस नहीं बल्कि बेशुमार रंग हैं, लेकिन हम ने उनमें से चुन लिए लिए हैं दस रंगों को और इन दस रंगों से आपको अगले दस दिनों तक हम सराबोर करने जा रहे हैं। तो आइए आज इस नए साल की श