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ए सखी राधिके बावरी हो गई...बर्मन दा के शास्त्रीय अंदाज़ को सलाम के साथ करें नव वर्ष का आगाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 301/2010/01 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों को हमारी तरफ़ से नववर्ष की एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएँ! नया साल २०१० आप सब के लिए मंगलमय हो यही ईश्वर से कामना करते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला ३०० कड़ियाँ पूरी कर चुका हैं, ७ दिनों के अंतराल के बाद, आज से हम फिर एक बार हाज़िर हैं इस शूंखला के साथ और फिर उसी तरह से हर रोज़ लेकर आएँगे गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा ख़ास आपके लिए। पहेली प्रतियोगिता का स्वरूप भी बदल रहा है आज से, तो जल्द जवाब देने से पहले शर्तों को ठीक तरह से समझ लीजिएगा! तो दोस्तों, नए साल में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत एक धमाकेदार तरीके से होनी चाहिए, क्यों है न? तो फिर हो जाइए तैयार क्योंकि आज से हम शुरु कर रहे हैं क्रांतिकारी संगीतकार राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध किए दस अलग अलग रंगों के गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला - पंचम के दस रंग । युं तो पंचम के दस नहीं बल्कि बेशुमार रंग हैं, लेकिन हम ने उनमें से चुन लिए लिए हैं दस रंगों को और इन दस रंगों से आपको अगले दस दिनों तक हम सराबोर करने जा रहे हैं। तो आइए आज इस नए साल की श

TST की सिकंदर बनी सीमा जी की पसंद के गीतों के संग उतरिये आज नव वर्ष के स्वागत जश्न में

सजीव : सुजॉय, आज साल का अंतिम दिन है और इस दशक का भी. पिछले कुछ दिनों से हम इस साल के संगीत की समीक्षा करते आ रहे हैं और आज इस 'सीरीस' की अंतिम कड़ी है. सुजॉय : बिल्कुल, और हमें पूरी उम्मीद है कि इन समीक्षाओं के ज़रिए हमारे वो पाठक जिन्होने बहुत ज़्यादा ध्यान से सन 2009 के फिल्मी गीतों को 'फॉलो' नहीं किया होगा, उन्हे भी एक अंदाज़ा हो गया होगा इस साल जारी हुए गीतों का सजीव : और आज इस अंतिम कड़ी में हम वो दस गाने सुनने जा रहे हैं जिनके लिए हमें फरमाइश लिख भेजी हैं 'ताज़ा सुर ताल' शृंखला के विजेता सीमा गुप्ता जी ने. सीमा जी को 'आवाज़' की तरफ से हार्दिक बधाई! सुजॉय : बधाई मेरी तरफ से भी. वाक़ई, सीमा जी ने शुरू से ही इस शृंखला में गहरी दिलचस्पी दिखाई है. हम उन्हे बधाई के साथ साथ धन्येवाद भी देते हैं. सजीव : सुजॉय, हम सीमा जी के पसंदीदा गीतों को सुनने के साथ साथ उनसे इन गीतों के बारे में उनकी राय भी जाँएंगे. तो सीमा जी, स्वागत है आप का इस साल की आखिरी महफ़िल में. सीमा : धन्येवाद आप सभी का सजीव : तो सीमा जी, बताइए किस गीत से शुरुआत की जाए इस सुहाने शाम की? सीमा

संगीत अवलोकन २००९, वार्षिक संगीत समीक्षा में फिल्म समीक्षक प्रशेन क्वायल लाये हैं अपना मत

२००९ हिंदी फिल्म संगीत के इतिहास में प्रायोगिकता के लिए मशहूर होगा. साल के शुरुआत में ही देव डी जैसे धमाकेदार प्रायोगिक फिल्म के म्यूजिक ने तहलका मचा दिया. बधाई हो फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप को जिन्होंने एक नए म्यूजिक डिरेक्टर को मौका देकर उन्हें पुरी स्वतंत्रता दी कि वो कुछ नया कर पाए. अंकित त्रिवेदी, जिन्होंने ये संगीत दिया है उन्होंने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए ऐसे चौके छक्के मारे है के शायद ही कोई और प्रस्थापित संगीतकार ये कर पाता. फिर आई दिल्ली ६ जिसमे संगीत के महारथी ए. आर. रहमान ने अपना लोहा फिर से मनवाया. प्रसून और रहमान का ये संगीत प्रयोग बेतहाशा सफल रहा और सारा भारत झूम के गाने लगा "मसकली मसकली". पर सबसे बड़ा प्रयोग था स्त्रियों के लोकसंगीत को जो आज तक उनके बीच सीमित था उसे हीप हॉप के साथ मिक्स कर के पेश करना. रहमान ने "गेंदा फूल" में वही किया और सभी गेंदा फूल बनकर पूछने लगे "अरे ये पहले क्यों नहीं हुआ. और ये नयी गायिका कौन है भाई ?" वह गायिका है "रेखा भारद्वाज"! विशाल भारद्वाज की धर्मपत्नी. ऐसे नहीं के रेखाजी के कोई गाने पहले नहीं

खुसरो कहै बातें ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब... शोभा गुर्टू ने फिर से ज़िंदा किया खुसरो को

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६४ पि छली ग्यारह कड़ियों से हम आपको आपकी हीं फ़रमाईश सुनवा रहे थे। सीमा जी की पसंद की पाँच गज़लें/नज़्में, शरद जी और शामिख जी की तीन-तीन पसंदीदा गज़लों/नज़्मों को सुनवाने के बाद हम वापस अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए हैं। तो हम आज जिस गज़ल को लेकर इस महफ़िल में हाज़िर हुए हैं, उसका अंदाज़ कुछ अलहदा है। अलहदा इसलिए है क्योंकि इसे लिखा हीं अलग तरीके से गया है और जिसने लिखा है उसकी तारीफ़ में कुछ कहना बड़े-बड़े ज्ञानियों को दुहराने जैसा हीं होगा। फिर भी हम कोशिश करेंगे कि उनके बारे में कुछ जानकारियाँ आपको दे दें..वैसे हम उम्मीद करते हैं कि आप सब उनसे ज़रूर वाकिफ़ होंगे। इस गज़ल के गज़लगो हीं नहीं बल्कि इस गज़ल की गायिका भी बड़ी हीं खास हैं। यह अलग बात है कि गज़लगो मध्य-युग से ताल्लुक रखते हैं तो गायिका बीसवीं शताब्दी से..फिर भी दोनों अपने-अपने क्षेत्र में बड़ा हीं ऊँचा मुकाम रखते हैं। हम गज़लगो के बारे में कुछ कहें उससे पहले क्यों न गायिका से अपना और आप सबका परिचय करा दिया जाए। इन्हें "ठुमरी क़्वीन" के नाम से जाना जाता रहा है। ८ फरवरी १९२५ को कर्नाटक के बेलगाम में ज

समीक्षा - २००९.... एक सफर सुकून का, वार्षिक संगीत समीक्षा में आज विश्व दीपक “तन्हा” की राय

कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो कभी बदलती नहीं। जिस तरह हमारी जीने की चाह कभी खत्म नहीं होती उसी तरह अच्छे गानों को परखने और सुनने की हमारी आरजू भी हमेशा बरकरार रहती है। कहते हैं कि संगीत हर बीमारी का इलाज है। आप अगर निराश बैठे हों तो बस अपने पसंद के किसी गाने को सुनना शुरू कर दें, क्षण भर में हीं आप अपने आप को किसी दूसरी दुनिया में पाएँगे जहाँ ग़म का कोई नाम-ओ-निशान नहीं होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी गाने की धुन में जो "बिट्स" होते हैं वो हमारे "हर्ट बीट" पर असर करते हैं और यही कारण है कि गानों को सुनकर हम सुकून का अनुभव करते हैं। अब जब हमें इतना मालूम है तो क्यों न अपने पसंद के गानों की एक फेहरिश्त बना ली जाए ताकि हर बार सारे गानों को खंगालना न पड़े। यूँ तो हर इंसान की पसंद अलग-अलग होती है,लेकिन कुछ गाने ऐसे होते हैं जो अमूमन सभी को पसंद आते हैं। "आवाज़" की तरफ़ से हमारी कोशिश यही है कि उन्हीं खासमखास गानों को चुनकर आपके सामने पेश किया जाए। २००९ में रीलिज हुए गानों की समीक्षा एक बहाना मात्र है, असल लक्ष्य तो सही गानों को गुनकर, चुनकर और सुनकर सुकून

संगीत २००९- एक मिला जुला अनुभव- वार्षिक संगीत चर्चा सजीव सारथी द्वारा

वर्ष २००९ संगीत के लिहाज से बहुत अधिक समृद्ध तो नहीं रहा फिर भी काफी सारे नए प्रयोग हुए, और श्रोताओं को रिझाने के लिए इंडस्ट्री के संगीतकारों, गीतकारों और गायक -गायिकाओं ने अपने तरफ से पूरी कोशिश की, कि संगीत में विविधता बनी रहे. बहरहाल मैं जिक्र करना चाहूँगा सबसे पहले उन अल्बम्स की जिन्होंने मुझे प्रभावित किया. वर्ष के शुरुआत में आई एक बहुत सुरीली अल्बम "दिल्ली ६".इस अल्बम के अधिकतर गीत ऐसे थे जो आपकी सुर-प्यास को संतुष्ट करते हैं. मसकली में मोहित चौहान एक अलग अंदाज़ में दिखे, इस गीत का फिल्मांकन भी बहुत बढ़िया रहा, ये एक ऐसा गीत है जिसे यदि साल दो साल बाद भी सुनेंगें तो ताज़ा लगेगा, गीत में एक कबूतर को संबोधित कर नायक नायिका को अपने सपनों की खातिर पंख खोलने के लिए प्रेरित कर रहा है और प्रसून ने कमाल के शब्दों से इस भाव को गढ़ा है, " तड़ी से मुड, अदा से मुड... " जैसी पंक्तियाँ गुदगुदा जाती हैं, संगीतकार रहमान ने इस फिल्म में और भी बहुत से खूबसूरत गीत जड़े हैं, "जय हो" की जबरदस्त कमियाबी की बाद ये रहमान की पहली प्रदर्शित फिल्म थी और उन्होंने निराश नहीं किय

मिर्ज़ा ग़ालिब की 212वीं जयंती पर ख़ास

आज से 212 वर्ष पहले एक महाकवि का जन्म हुआ जिसकी शायरी को समझने में लोग कई दशक गुजार देते हैं, लेकिन मर्म समझ नहीं पाते। आज रश्मि प्रभा उर्दू कविता के उसी महाउस्ताद को याद कर रही हैं अपने खूबसूरत अंदाज़ में। आवाज़ ने मिर्ज़ा ग़ालिब के ऊपर कई प्रस्तुतियाँ देकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया है। शिशिर पारखी जो खुद पुणे से हैं, ने उर्दू कविता के 7 उस्ताद शायरों के क़लामों का एक एल्बम एहतराम निकाला था,जिसे आवाज़ ने रीलिज किया था। इसकी छठवीं कड़ी मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़ल 'तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले' को समर्पित थी। आवाज़ के स्थई स्तम्भकार संजय पटेल ने लता मंगेशकर की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़लों की चर्चा दो खण्डों ( पहला और दूसरा ) में की थी। संगीत की दुनिया पर अपना कलम चलाने वाली अनिता कुमार ने भी बेग़म अख़्तर की आवाज़ में मिर्जा ग़ालिब की एक रचना 'जिक्र उस परीवश का और फ़िर बयां अपना...' हमें सुनवाया था। लेकिन आज रश्मि प्रभा बिलकुल नये अंदाज़ में अपना श्रद्धासुमन अर्पित कर रही हैं। सुनिए और बताइए-