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तू प्यार का सागर है....शैलेन्द्र की कलम सी निकली इस प्रार्थना में गहरी वेदना भी है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 281 "अ जीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरु कहाँ ख़तम, ये मंज़िलें हैं कौन सी, ना तुम समझ सके ना हम"। "दुनिया बनानेवाले, क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई?" "जीना यहाँ, मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ, जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं, हम थे जहाँ"। जीवन दर्शन और ज़िंदगी के फ़ल्सफ़ात लिए हुए इन जैसे अनेकों अमर गीतों को लिखने वाले बस एक ही गीतकार - शैलेन्द्र। वही शैलेन्द्र जो अपने ख़यालों और ज़िंदगी के तजुर्बात को अपने अमर गीतों का रूप देकर ज़माने भर के तरफ़ से माने गए। शैलेन्द्र एक ऐसे शायर, एक ऐसे कवि की हैसीयत रखते हैं जिनकी शायरी और गीतों के मज़बूत कंधों पर हिंदी फ़िल्म संगीत की इमारत आज तक खड़ी है। फ़िल्म जगत को १७ सालों में जो कालजयी गानें शैलेन्द्र साहब ने दिए हैं, वो इतने कम अरसे में शायद ही किसी और ने दिए हों। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु हो रही है नई शृंखला "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी", जिसके तहत आप शैलेन्द्र के लिखे ऐसे दस गीत सुनेंगे जिन्हे शैलेन्द्र जी ने आर. के. बैनर के बाहर बनी फ़िल्मो

सुनो कहानी: हरिशंकर परसाई का व्यंग्य "खेती

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " ह्त्या की राजनीति " का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं हरिशंकर परसाई का लघु व्यंग्य " खेती ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय मात्र 2 मिनट 24 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी हुज़ूर, हम किसानों को आप ज़मीन, पानी और बीज दिला दीजिये और अपने अफसरों से हमारी रक्षा कीजिये। ( हरिशंकर परसाई के व्यंग्य "खेती" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क

मेरा दिल जो मेरा होता....गीता जी की आवाज़ और गुलज़ार के शब्द, जैसे कविता में घुल जाए अमृत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 280 गी ता दत्त जी के गाए गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली' की अंतिम कड़ी पर। पराग सांकला जी के सहयोग से इस पूरे शृंखला में आप ने ना केवल गीता जी के गाए अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए हुए गीत सुनें, बल्कि उन अभिनेत्रियों और उन गीतों से संबंधित तमाम जानकारियों से भी अवगत हो सके। अब तक प्रसारित सभी गीत ५० के दशक के थे, लेकिन आज इस शृंखला का समापन हो रहा है ७० के दशक के उस फ़िल्म के गीत से जिसमें गीता जी की आवाज़ आख़िरी बार सुनाई दी थी। यह गीत है १९७१ की फ़िल्म 'अनुभव' का, "मेरा दिल जो मेरा होता"। और यह गीत फ़िल्माया गया था तनुजा पर। इस फ़िल्म के गीतों पर और चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आइए कुछ बातें तनुजा जी की हो जाए! तनुजा का जन्म बम्बई के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक कवि थे और माँ शोभना समर्थ ३० और ४० के दशकों की एक मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री। जहाँ शोभना जी ने अपनी बेटी नूतन को लौंच किया १९५० की फ़िल्म 'हमारी बेटी' में, ठीक वैसे ही उन्होने अपनी छोटी बेटी तनुजा को बतौर बाल क

मुझको तुम जो मिले ये जहान मिल गया...जिस अभिनेत्री को मिली गीता की सुरीली आवाज़, वो यही गाती नज़र आई

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 279 'गी तांजली' की नौवी कड़ी में आज गीता दत्त की आवाज़ सजने वाली है माला सिंहा पर। दोस्तों, हमने इस महफ़िल में माला सिंहा पर फ़िल्माए कई गीत सुनवा चुके हैं लेकिन कभी भी हमने उनकी चर्चा नहीं की। तो आज हो जाए? माला सिंहा का जन्म एक नेपाली इसाई परिवार में हुआ था। उनका नाम रखा गया आल्डा। लेकिन स्कूल में उनके सहपाठी उन्हे डाल्डा कहकर छेड़ने की वजह से उन्होने अपना नाम बदल कर माला रख लिया। कलकत्ते में कुछ बंगला फ़िल्मों में अभिनय करने के बाद माला सिंहा को किसी बंगला फ़िल्म की शूटिंग् के लिए बम्बई जाना पड़ा। वहाँ उनकी मुलाक़ात हुई थी गीता दत्त से। गीता दत्त को माला सिंहा बहुत पसंद आई और उन्होने उनकी किदार शर्मा से मुलाक़ात करवा दी। और शर्मा जी ने ही माला सिंहा को बतौर नायिका अपनी फ़िल्म 'रंगीन रातें' में कास्ट कर दी। लेकिन माला की पहली हिंदी फ़िल्म थी 'बादशाह' जिसमें उनके नायक थे प्रदीप कुमार। उसके बाद आई पौराणिक धार्मिक फ़िल्म 'एकादशी'। दोनों ही फ़िल्में फ़्लॊप रही और उसके बाद किशोर साहू की फ़िल्म 'हैमलेट' ने माला को दिलाई ख्यात

चंदा चांदनी में जब चमके...गीता दत्त और गीता बाली का अनूठा संगम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 278 प राग सांकला जी के चुने हुए गीता दत्त के गाए गानें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली' के अन्तर्गत। आज के अंक में गीता दत्त गा रहीं हैं गीता बाली के लिए। जी हाँ, वही गीता बाली जिनकी थिरकती हुई आँखें, जिनके चेहरे के अनगिनत भाव, जिनकी नैचरल अदाकारी के चर्चे आज भी लोग करते हैं। और इन सब से परे यह कि वो एक बहुत अच्छी इंसान थीं। गीता बाली का जन्म अविभाजित पंजाब में एक सिख परिवार में हुआ था। उनका असली नाम था हरकीर्तन कौर। देश के बँटवारे के बाद परिवार बम्बई चली आई और गरीबी ने उन्हे घेर लिया। तभी हरकीर्तन कौर बन गईं गीता बाली और अपने परिवार को आर्थिक संकट से उबारा एक के बाद एक फ़िल्म में अभिनय कर। बम्बई आने से पहले उन्होने पंजाब की कुछ फ़िल्मों में नृत्यांगना के छोटे मोटे रोल किए हुए थे। कहा जाता है कि जब किदार शर्मा, जिन्होने गीता बाली को पहला ब्रेक दिया, पहली बार जब वो उनसे मिले तो वो अपने परिवार के साथ किसी के बाथरूम में रहा करती थीं। किदार शर्मा ने पहली बार गीता बाली को मौका दिया १९४८ की फ़िल्म 'सुहाग रात&#

किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी...गीत दत्त के स्वरों में हेलन ने बिखेरा था अपना मदमस्त अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 277 इ न दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है गीता दत्त के गाए हुए गीतों की ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली', जिसके अन्तर्गत दस ऐसे गानें बजाए जा रहे हैं जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। आज जिस अभिनेत्री को हमने चुना है वो नायिका के रूप में भले ही कुछ ही फ़िल्मों में नज़र आईं हों, लेकिन उन्हे सब से ज़्यादा ख्याति मिली खलनायिका के किरदारों के लिए। सही सोचा आपने, हम हेलेन की ही बात कर रहे हैं। वैसे हेलेन पर ज़्यादातर मशहूर गानें आशा भोसले ने गाए हैं, लेकिन ५० के दशक में गीता दत्त ने हेलेन के लिए बहुत से गानें गाए। आज हमने जिस गीत को चुना है वह है १९५७ की फ़िल्म 'दुनिया रंग रंगीली' से "किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी, कि मेरा दिल तुझे पुकारा अरे अभी अभी"। राजेन्द्र कुमार, श्यामा, जॉनी वाकर, चाँद उस्मानी, जीवन व हेलेन अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे जान निसार अख़्तर ने और संगीत था ओ. पी. नय्यर साहब का। 'आर पार' की सफलता के बाद गीता दत्त को ही श्यामा के पार्श्वगायन के लिए चुना गया। इस फ़िल्म में श्यामा के नायक थे जॉनी

जब बादल लहराया...झूम झूम के गाया...अभिनेत्री श्यामा के लिए गीता दत्त ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 276 जि स तरह से गीता दत्त और हेलेन की जोड़ी को अमरत्व प्रदान करने में बस एक सुपरहिट गीत "मेरा नाम चिन चिन चू" ही काफ़ी था, जिसकी धुन बनाई थी रीदम किंग् ओ. पी. नय्यर साहब ने, ठीक वैसे ही गीता जी के साथ अभिनेत्री श्यामा का नाम भी 'आर पार' के गीतों और एक और सदाबहार गीत "ऐ दिल मुझे बता दे" के साथ जुड़ा जा सकता है। जी हाँ, आज 'गीतांजली' में ज़िक्र गीता दत्त और श्यामा का। श्यामा ने अपना करीयर शुरु किया श्यामा ज़ुत्शी के नाम से जब कि उनका असली नाम था बेबी ख़ुर्शीद। 'आर पार' में अपार कामयाबी हासिल करने से पहले श्यामा को एक लम्बा संघर्ष करना पड़ा था। उन्होने अपना सफ़र १९४८ में फ़िल्म 'जल्सा' से शुरु किया था। वो बहुत सारी कामयाब फ़िल्मों में सह-अभिनेत्री के किरदारों में नज़र आईं जैसे कि 'शायर' में सुरैय्या के साथ, 'शबनम' में कामिनी कौशल के साथ, 'नाच' में फिर एक बार सुरैय्या के साथ, 'जान पहचान' में नरगिस के साथ और 'तराना' में मधुबाला के साथ। अनुमान लगाया जाता है कि गीता रॉय की आवाज