ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 255 औ र दोस्तों, पूर्वी जी के पसंद के गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं उनकी पसंद के पाँचवे और फिलहाल अंतिम गीत पर। यह गीत भले ही बच्चों वाला गाना हो, लेकिन बहुत ही मर्मस्पर्शी है, जिसे सुनते हुए आँखें भर ही आते हैं। परदेस गए अपने पिता के इंतेज़ार में बच्चे किस तरह से आस लगाए बैठे रहते हैं, यही बात कही गई है इस गीत में। जी हाँ, "सात समुंदर पार से, गुड़ियों के बाज़ार से, अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना, पप्पा जल्दी आ जाना"। जहाँ एक तरफ़ मासूमियत और अपने पिता के जल्दी घर लौट आने की आस है, वहीं बच्चों की परिपक्वता भी दर्शाता है यह पंक्ति कि "गुड़िया चाहे ना लाना"। आप चाहे कुछ भी ना लाओ हमारे लिए, लेकिन बस आप जल्दी से आ जाओ। आनंद बक्शी के ये सीधे सरल बोल और उस पर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का सुरीला और दिल को छू लेने वाला संगीत, गीत को वही ट्रीटमेंट मिला जिसकी उसे ज़रूरत थी। और इस गीत के गायक कलाकारों के नामों का उल्लेख भी बेहद ज़रूरी है। लता जी की आवाज़ तो आप पहचान ही सकते हैं जो कि गीत की मुख्य गायिका हैं, लेकिन उनके अतिरिक्त इस गीत