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एक ऑडियो-वीडियो पुस्तक अमृता-इमरोज़ के नाम

रश्मि प्रभा अमृता-इमरोज़ के प्रेम-सम्बन्धों को अमृता की कविताओं और इमरोज़ की पेंटिंगों के माध्यम से देखने वालों ने जितना महसूसा है, वह उन्हें भावातिरेक से उपजी यूटोपिया पर पहुँचा देता है, जहाँ जिस्मानी आकर्षण का ज़ादू भी आध्यात्मिक प्यार की डगर की तरह दिखता है। अमृता की कविताओं के रसज्ञ कविताओं को पढ़कर न तो अपनी बेचैनी ज़ाहिर कर पाते हैं और न किसी तरह का सुकूँन महसूस कर पाते हैं। उन्हें लगता है कि घर की दीवारें, हवा, पानी मौसम, दिन-रात सब तरफ अमृता-इमरोज़ के किस्सों के साये हैं। प्यार के रुहानी सफर की प्रसंशक यदि कोई महिला हो और वह भी कवि हृदयी, तो यह लगभग तयशुदा बात है कि अमृता की नज्मों में वह खुद को उतारने लगती है। अमृता-इमरोज के सम्बंधों में उसे हर तरह के आदर्श प्रेम संबंधों की छाया दिखती है। अमृता की हर अभिव्यक्ति उसे अपनी कहानी लगती है और इमरोज़ की पेंटिंगों से भी कोई न कोई आत्मिक सम्बंध जोड़ लेती है। इसी तरह की एक अति सम्वेदनशील कवयित्री रश्मि प्रभा की आडियो-पुस्तक का विमोचन आज हम अपने श्रोताओं के हाथों करा रहे हैं। रश्मि प्रभा की कविताओं के इस संग्रह ( कुछ उनके नाम ) की ख़ास

ज्योति - प्रेमचंद

सुनो कहानी: प्रेमचंद की "ज्योति" दीपावली शुभ हो! आपका जीवन ज्योतिर्मय हो! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में हिंदी साहित्यकार इस्मत चुगताई की मार्मिक कहानी "चौथी का जोड़ा" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं मुंशी प्रेमचंद की कहानी " ज्योति ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 22 मिनट 34 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी रुपिया उसके सिरहाने आकर बोली-सो गए क्या मोहन? घड़ी-भर से तुम्हारी राह देख रही हूँ। आये क्यों नहीं? ( प्रेमचंद की "ज्योति"

अंधे जहाँ के अंधे रास्ते, जाए तो जाए कहाँ... शैलेन्द्र ने पेश किया अर्थपूर्ण काव्यात्मक अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 234 क ल शंकर साहब के जन्मदिवस के अवसर पर हमने सुना था फ़िल्म 'असली नक़ली' का युगल गीत । शंकर जयकिशन और देव आनंद के कॊम्बिनेशन का वह एक सदाबहार गीत रहा है। आइए आज भी शंकर जयकिशन और देव आनंद का ही एक और गीत सुनें। कल हमने आपको यह भी बताया था कि शुरु शुरु में जब शंकर जयकिशन देव साहब के लिए गानें बना रहे थे तो पार्श्वगायन के लिए तलत महमूद और हेमन्त कुमार की आवाज़ें ले रहे थे, बाद में रफ़ी साहब बने देव आनंद की आवाज़। तो आज ऐसी एक फ़िल्म जिसमें देव साहब का प्लेबैक किया था तलत साहब और हेमन्त दा ने। यह फ़िल्म है 'पतिता'। इस फ़िल्म में कम से कम तीन एकल गीत हैं तलत महमूद की आवाज़ में और शैलेन्द्र के लिखे हुए जिन्हे बेहद शोहरत हासिल हुई, और एक युगल गीत लता जी और हेमन्त दा का गाया हुआ और हसरत जयपुरी का लिखा हुआ ऐसा था जिसका शुमार आज इस जोड़ी के सदाबहार युगल गीतों में होता है। याद है ना वह युगल गीत "याद किया दिल ने कहाँ हो तुम, झूमती बहार है कहाँ हो तुम"! लेकिन आज हम सुनेंगे तलत महमूद का गाया और शैलेन्द्र का लिखा "अंधे जहाँ के अंधे रास्ते जाऊँ

आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है...."सुरेश" की आवाज़ में पूछ रहे हैं "शहरयार"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #५४ आ की महफ़िल में हम हाज़िर हैं सीमा जी की पसंद की दूसरी गज़ल लेकर। आज की गज़ल जिस फ़िल्म से(हाँ, यह फ़िल्मी-गज़ल है) ली गई है, उस फ़िल्म की चर्चा महफ़िल-ए-गज़ल में न जाने कितनी बार हो चुकी है। चाहे छाया गांगुली की "आपकी याद आती रही रात भर" हो, हरिहरण का "अजीब सानेहा मुझपे गुजर गया" हो या फिर आज की ही गज़ल हो, हर बार किसी न किसी बहाने से यह फ़िल्म महफ़िल-ए-गज़ल का हिस्सा बनती आई है। १९७९ में "मुज़फ़्फ़र अली" साहब ने इस चलचित्र का निर्माण करके न सिर्फ़ हमें नए-नए फ़नकार (गायक और गायिका) दिये, बल्कि "नाना पाटेकर" जैसे संजीदा अभिनेता को भी दर्शकों के सामने पेश किया। यह फ़िल्म व्यावसायिक तौर पर कितनी सफ़ल हुई या फिर कितनी असफ़ल इसकी जानकारी हमें नहीं है, लेकिन इस फ़िल्म ने लोगों के दिलों में अपना स्थान ज़रूर पक्का कर लिया। तो चलिए हम बढते हैं आज की गज़ल की ओर। आज की गज़ल को संगीत से सजाया है "जयदेव" साहब ने जिनके बारे में ओल्ड इज़ गोल्ड और महफ़िल-ए-गज़ल में बहुत सारी बातें हो चुकी हैं। यही बात इस गज़ल के गायक यानि की सुरेश

तुझे जीवन की डोर से बाँध लिया है....संगीतकार शंकर को याद किया जा रहा है आज ओल्ड इस गोल्ड पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 233 आ ज है १५ अक्तुबर, सदाबहार संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन के शंकर साहब का जन्म दिवस। आज वो इस दुनिया में मौजूद तो नहीं हैं कि हम उन्हे जनमदिन की शुभकामनाएँ दे सके, लेकिन उनके रचे सदाबहार नग़मों के ज़रिए हम उनकी सुरीली यादों को ताज़ा ज़रूर कर सकते हैं। तो क्यों ना आज से अगले तीन दिनों तक सुना जाए शंकर जयकिशन की जोड़ी के तीन हिट गीत! शुरुआत करते हैं लता जी और रफ़ी साहब के गाए फ़िल्म 'असली नक़ली' के एक युगल गीत से। गीत फ़िल्माया गया था देव आनंद और साधना पर। आइए आज एक साथ बात करें शंकर जयकिशन और देव आनंद की। जब देव आनंद फ़िल्म जगत में आए थे, तब अपने पारिवारिक बैनर नवकेतन के तले बनी फ़िल्मों में सचिन देव बर्मन का संगीत हुआ करता था। देव आनंद, बर्मन दादा, मजरूह साहब, रफ़ी साहब, किशोर दा, हेमन्त दा और तलत साहब की टीम दिलीप कुमार, नौशाद, शक़ील, और तलत की टीम से बहुत अलग थी, और राज कपूर, शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र-हसरत, मुकेश की टीम से भी जुदा थी। जब देव आनंद और शंकर जयकिशन एक साथ आए 'पतिता' जैसी फ़िल्म में, उसमें हेमन्त कुमार और तलत महमूद ने देव साहब के लिए

दाता सुन ले- "बावरे फकीरा" के नेट लॉन्च के साथ नमन करते हैं शिरडीह साईं बाबा को, साथ ही जानिए कि कैसा है लता की दिव्य आवाज़ में नए दौर का "जेल" भजन

ताजा सुर ताल TST (30) दोस्तों, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर के एपिसोडों से लगभग अगले 20 एपिसोडों तक, जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर" TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक- पिछले एपिसोड में आये एक नए प्रतिभागी महिलाओं को चुनौती देने. चलिए हमारे कहने का असर हुआ, और विश्व दीपक तन्हा जी भी मैदान में कूद पड़े, पर 3 में से 2 जवाब सही दिए, एक जगह चूक कर गए. और उनकी भूल का

किस्मत के खेल निराले मेरे भैया...गायक संगीतकार और गीतकार रवि साहब की जिंदगी को छूती रचना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 232 क हते हैं कि क़िस्मत में जो रहता है, वही होता है। शुरु से ही इस बात पर बहस चलती आ रही है कि क़िस्मत बड़ी है या मेहनत। यक़ीनन इस दुनिया में मेहनत का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन इस बात को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि क़िस्मत का भी एक बड़ा हाथ होता है हर किसी की ज़िंदगी में। ख़ैर, यह मंच सही जगह नहीं है इस बहस में जाने का, लेकिन आज का जो गीत हम आपके लिए लेकर आए हैं वह क़िस्मत के खेल की ही बात कहता है। संगीतकार रवि फ़िल्मी दुनिया में आए थे एक गायक बनने के लिए, लेकिन बन गए संगीतकार। शायद यह भी उनके क़िस्मत में ही लिखा था। इसमें कोई दोराय नहीं कि बतौर संगीतकार उन्होने हमें एक से एक बेहतरीन गीत दिए हैं ५० से लेकर ८० के दशक तक। लेकिन शुरुआत में उनकी दिली तमन्ना थी कि वो एक गायक बनें। ख़ुद संगीतकार बन जाने के बाद ना तो उनके फ़िल्मों के निर्माताओं ने उन्हे कभी गाने का मौका दिया और ना ही किसी दूसरे संगीतकार ने उनसे गवाया। हालाँकि उनकी आवाज़ हिंदी फ़िल्मों के टिपिकल हीरो जैसी नहीं थी, लेकिन एक अजीब सी कशिश उनकी आवाज़ में महसूस की जा सकती है जो सुननेवाले को अपनी ओर आक