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समाँ है सुहाना सुहाना नशे में जहाँ है....जहाँ किशोर की आवाज़ गूंजे वहां ऐसा क्यों न हो

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 165 पि छ्ले तीन दिनों से आप किशोर दा की आवाज़ में सुन रहे हैं जीवन के कुछ ज़रूरी और थोड़े संजीदे किस्म के विषयों पर आधारित गानें। आज माहौल को थोड़ा सा हल्का बनाते हैं और आज चुनते हैं ज़िंदगी का एक ऐसा रूप जिसमें है मस्ती, रोमांस और नशा। ऐसे गीतों में भी किशोर दा की आवाज़ ने वो अदाकारी दिखायी है कि ये गानें हर प्रेमी के दिल की आवाज़ बन कर रह गये हैं। आनंद बक्शी का लिखा और कल्याणजी-आनंदजी का स्वरबद्ध किया एक ऐसा ही गीत आज पेश है फ़िल्म 'घर घर की कहानी' से। जी हाँ, "समा है सुहाना, नशे में जहाँ है, किसी को किसी की ख़बर ही कहाँ है, हर दिल में देखो मोहब्बत जवाँ है"। कभी जवाँ दिलों की धड़कन बन कर गूँजा करता था यह नग़मा। इसमें कोई शक़ नहीं कि यह गीत समा को सुहाना बना देता है, इसकी मंद मंद रीदम से मन नशे में डूबता सा चला जाता है, और हर दिल में मोहब्बत की लौ जगा देती है। १९७० की फ़िल्म 'घर घर की कहानी' के मुख्य कलाकार थे राकेश रोशन और भारती। यह एक लो बजट फ़िल्म थी जिसकी बाकी सभी चीज़ों को लोग क्रमश: भूलने लगे हैं सिवाय एक चीज़ के, और वह है फ़िल्

भीष्म साहनी के जन्मदिन पर विशेष "चीफ़ की दावत"

सुनो कहानी: भीष्म साहनी की "चीफ़ की दावत" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द की कहानी झाँकी का पॉडकास्ट सुना था। आज आठ अगस्त को प्रसिद्ध लेखक, नाट्यकर्मी और अभिनेता श्री भीष्म साहनी का जन्मदिन है. इस अवसर पर आवाज़ की और से प्रस्तुत है उनकी एक कहानी। मैं तब से उनका प्रशंसक हूँ जब पहली बार स्कूल में उनकी कहानी "अहम् ब्रह्मास्मि" पढी थी। मेरी इच्छा आज सुनो कहानी में वही कहानी पढने की थी परन्तु यहाँ उपलब्ध न होने के कारण आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं उनकी एक और प्रसिद्ध कहानी "चीफ की दावत" जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। आशा है आपको पसंद आयेगी। कहानी का कुल प्रसारण समय 20 मिनट 9 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के ल

रुक जाना नहीं तू कहीं हार के...चिर प्रेरणा का स्त्रोत रहा है, दादा का गाया ये नायाब गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 164 क ल हमने बात की थी सपनों की। दोस्तों, सपने तभी सच होते हैं जब उनको सच करने के लिए हम निरंतर प्रयास भी करें। लेकिन सफलता हमेशा हाथ लगे ऐसा जरूरी नहीं है. कई पहाड़ों, जंगलों, खाइयों से गुज़रने के बाद ही नदी का मिलन सागर से होता है। कहने का आशय यह है कि एक बार की असफलता से इंसान को घबरा कर अपनी कोशिशें बंद नहीं कर देनी चाहिए। काँटों पर चलकर ही बहारों के साये नसीब होते हैं। जी हाँ, 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' के अंतर्गत आज हमारा विषय है 'प्रेरणा', जो दे रहे हैं किशोर कुमार किसी राह चलते राही को। यह राही ज़िंदगी का राही है, यानी कि हर एक आम आदमी, जो ज़िंदगी की राह पर निरंतर चलता चला जाता है। किशोर कुमार ने बहुत सारे इस तरह के राही और सफ़र से संबंधित जीवन दर्शन के गीत गाये हैं, उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'तपस्या' का गीत "जो राह चुनी तूने उसी राह पे राही चलते जाना रे", फ़िल्म 'नमकीन' का गीत "राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं, ख़ुश रहो अहल-ए-वतन, हो हम तो सफ़र करते हैं", फ़िल्म 'आप की कसम' का गीत &qu

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई..... महफ़िल-ए-बेइख्तियार और "गुलज़ार"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #३६ दि शा जी की नाराज़गी को दूर करने के लिए लीजिए हम लेकर हाज़िर हैं उनकी पसंद की पहली गज़ल। इस गज़ल की खासियत यह है कि जहाँ एक तरह इसे आवाज़ दिया है गज़लों के उस्ताद "गज़लजीत" जगजीत सिंह जी ने तो वहीं इसे लिखा है कोमल भावनाओं को अपने कोमल लफ़्जों में लपेटने वाले शायर "गुलज़ार" ने। जगजीत सिंह जी की गज़लों और नज़्मों को लेकर न जाने कितनी बार हम इस महफ़िल में हाज़िर हो चुके हैं और यकीन है कि इसी तरह आगे भी उनकी आवाज़ से हमारी यह बज़्म रौशन होती रहेगी। अब चूँकि जगजीत सिंह जी हमारी इस महफ़िल के नियमित फ़नकार हैं इसलिए हर बार उनका परिचय देना गैर-ज़रूरी मालूम होता है। वैसे भी जगजीत सिंह और गुलज़ार ऐसे दो शख्स हैं जिनकी ज़िंदगी के पन्ने अकेले हीं खुलने चाहिए, उस दौरान किसी और की आमद बने बनाए माहौल को बिगाड़ सकती है। इसलिए हमने यह फ़ैसला किया है कि आज की महफ़िल को "गुलज़ार" की शायरी की पुरकशिश अदाओं के हवाले करते हैं। जगजीत सिंह जी तो हमारे साथ हीं हैं, उनकी बातें अगली बार कभी कर लेंगे। "गुलज़ार" की बात अगर शुरू करनी हो तो इस काम के लिए अम

छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में....सपनों को पंख देती किशोर कुमार की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 163 प्रो फ़. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने कहा है कि "Dream is not something that we see in sleep; Dream is something that does not allow us to sleep"| इस एक लाइन में उन्होने कितनी बड़ी बात कही हैं। सच ही तो है, सपने तभी सच होते हैं जब उसको पूरा करने के लिए हम प्रयास भी करें। केवल स्वप्न देखने से ही वह पूरा नहीं हो जाता। ख़ैर, आप भी सोच रहे होंगे कि मैं किस बात को लेकर बैठ गया। दरअसल इन दिनों आप सुन रहे हैं किशोर कुमार के गीतों से सजी लघु शृंखला 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़', जिसके तहत हम किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये ज़िंदगी के दस अलग अलग पहलुओं पर रोशनी डाल रहे हैं, और आजका पहलू है 'सपना'। जी हाँ, वही सपना जो हर इंसान देखता है, कोई सोते हुए देखता है तो कोई जागते हुए। किसी को ज़िंदगी में बड़ा नाम कमाने का सपना होता है, तो किसी को अर्थ कमाने का। आप यूं भी कह सकते हैं कि यह दुनिया सपनों की ही दुनिया है। आज किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये हम जो सपना देखने जा रहे हैं वह मेरे ख़याल से हर आम आदमी का सपना है। हर आदमी अपने परिवार को सुखी देखना चाहता

गाइए लता का गीत और बनिए आवाज़ का नया सुर-तारा - नया आग़ाज़

कैरिऑकि ट्रैक पर अपना हुनर दिखाने का सुनहर मौका हममें से ऐसे बहुत होंगे जिनको बचपन से ही गाने का शौक रहा होगा। घूमते वक़्त- नहाते वक़्त या कहीं यात्रा करते वक़्त अपने सुकूँ के क्षणों में फिल्मी गीतों की पंक्तियाँ हम सभी की ज़ुबान पर ज़रूर तैरी होंगी। बहुत से लोगों ने अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों में संगीत के साथ यानी कैरिऑके ट्रैक पर अपनी गायक-कला का लोहा भी ज़रुर मनवाया होगा। हम ऐसे ही गायकों को इससे भी आगे एक और मंच दे रहे हैं। हिन्द-युग्म आज से एक नई प्रतियोगिता 'आवाज़ सुर-तारा' का आग़ाज़ कर रहा है, जिसके माध्यम से शौकिया तौर पर गाने वालों को भी एक मंच मिलेगा। यह आयोजन प्रतिमाह किया जायेगा और नग़द इनाम भी दिया जायेगा। इस आयोजन में हम किसी चर्चित हिन्दी फिल्मी गीत के कैरिऑकि (Kara-oke) ट्रैक पर गायकों से गाने को कहेंगे, सबसे बढ़िया प्रविष्टि को माह का 'आवाज़ सुर-तारा' घोषित किया जायेगा और रु 1000 का नग़द इनाम दिया जायेगा। गौरतलब है कि आवाज़ के इसी मंच पर मई माह से प्रत्येक माह महान कवियों की कविताओं को संगीतबद्ध करने की प्रतियोगिता 'गीतकास्ट' का आयोजन किया ज

एक हजारों में मेरी बहना है...रक्षा बंधन पर शायद हर भाई यही कहता होगा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 162 "क भी भ‍इया ये बहना न पास होगी, कहीं परदेस बैठी उदास होगी, मिलने की आस होगी, जाने कौन बिछड़ जाये कब भाई बहना, राखी बंधवा ले मेरे वीर"। रक्षाबंधन के पवित्र पर्व के उपलक्ष्य पर हिंद युग्म की तरफ़ से हम आप सभी को दे रहे हैं हार्दिक शुभकामनायें। भाई बहन के पवित्र रिश्ते की डोर को और ज़्यादा मज़बूत करता है यह त्यौहार। राखी उस धागे का नाम है जिस धागे में बसा हुआ है भाई बहन का अटूट स्नेह, भाई का अपनी बहन को हर विपदा से बचाने का प्रण, और बहन का भाई के लिए मंगलकामना। इस त्यौहार को हमारे फ़िल्मकारों ने भी ख़ूब उतारा है सेल्युलायड के परदे पर। गानें भी एक से बढ़कर एक बनें हैं इस पर्व पर। क्योंकि इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर चल रहा है किशोर कुमार के गीतों से सजी लघु शृंखला 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़', जिसके तहत हम जीवन के अलग अलग पहलुओं को किशोर दा की आवाज़ के ज़रिये महसूस कर रहे हैं, तो आज महसूस कीजिए भाई बहन के नाज़ुक-ओ-तरीन रिश्ते को किशोर दा के एक बहुत ही मशहूर गीत के माध्यम से। यह एक ऐसा सदाबहार गीत है भाई बहन के रिश्ते पर, जिस पर वक्त