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सुनो कहानी: मंटो की एक लघुकथा

मंटो की एक लघुकथा 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'बड़े घर की बेटी' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं मंटो की एक लघुकथा , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 2 मिनट। संचिका पर इस कहानी का टेक्स्ट उपलब्ध कराने के लिए हम लवली कुमारी जी के आभारी हैं यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पागलख़ाने में एक पागल ऐसा भी था जो ख़ुद को ख़ुदा कहता था. ~ सआदत हसन मंटो (१९१२-१९५५) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी लोग लुटा हुआ माल डर के मारे अँधेरे में बाहर फेंकने लगे. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने मौका पाकर अपना माल भी अपने से अलग कर दिया ताकि कानूनी गिरफ्त से बचे रहें. ( मंटो की लघुकथा से एक अंश ) नीचे के प्ले

कर ले प्यार कर ले के दिन हैं यही...आशा का जबरदस्त वोईस कंट्रोल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 42 हे लेन का अंदाज़ और आशा भोंसले की आवाज़. ऐसा लगता है जैसे आशाजी की आवाज़ हेलेन के अंदाज़ों की ही ज़ुबान है. इसमें कोई शक़ नहीं कि अपनी आवाज़ से अभिनय करनेवाली आशा भोंसले ने हेलेन के जलवों को पर्दे पर और भी ज़्यादा प्रभावशाली बनाया है. चाहे ओ पी नय्यर हो या एस डी बर्मन, या फिर कल्याणजी आनांदजी, हर संगीतकार ने समय समय पर इस आशा और हेलेन की जोडी को अपने दिलकश धुनों से बार बार सजीव किया है हमारे सामने. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में आशा भोंसले, हेलेन और एस डी बर्मन मचा रहे हैं धूम फिल्म "तलाश" के एक 'क्लब सॉंग' के ज़रिए. ऐसे गीतों के लिए उस ज़माने में आशा भोंसले के अलावा किसी और गायिका की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन आशाजी के लिए बर्मन दादा का यह गीत इस अंदाज़ का पहला गीत नहीं है. क्या आप को पता है कि आशाजी ने बर्मन दादा के लिए ही पहली बार एक 'कैबरे सॉंग' गाया था फिल्म टॅक्सी ड्राइवर (1953) में? इतना ही नहीं, आशाजी का गाया हुआ बर्मन दादा के लिए यह पहला गाना भी था. याद है ना आपको वो गीत? चलिए हम याद दिला देते हैं, वो गीत था टॅक्सी

जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम....खेल अधूरा छूटे न...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 41 क हते हैं कि "ज़िंदगी हर क़दम एक नयी जंग है, जीत जाएँगे हम तू अगर संग है". हमसफ़र का अगर साथ हो तो ज़िंदगी की कोई भी बाज़ी आसानी से जीती जा सकती है, ज़िंदगी का सफ़र बडे ही सुहाने ढंग से तय किया जा सकता है. चाहे दुनिया कितनी भी रुकावटें खडी करें, चाहे कितनी भी परेशानियाँ दीवार बनकर सामने आए, अगर कोई सच्चा साथी साथ में हो तो ज़िंदगी के हर खेल को पूरा खेला जा सकता है. कुछ इसी तरह की बात कही गयी है आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' में शामिल गीत में. मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर की आवाज़ों में "शोला और शबनम" फिल्म से आज हम लेकर आए हैं "जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम". शोला और शबनम रमेश सहगल की फिल्म थी जिसे उन्होने 1961 में बनाया था. अभी भट्टाचार्य और विजयलक्ष्मी अभिनीत इस फिल्म में ज़बरदस्त 'स्टारकास्ट' तो नहीं थी, लेकिन अच्छी कहानी, अच्छा अभिनय, बेहतरीन निर्देशन और मधुर गीत संगीत की वजह से इस फिल्म को लोगों ने सराहा और आज भी इस फिल्म के गाने बडे चाव से सुने जाते हैं, ख़ास कर ये गीत. फिल्म शोला और शबनम के संगीतकार थे ख़य्याम. 1949 म

रामराज्य बापू का सपना, इस धरती पर लाओ राम

रामनवमी पर सुनिए अमीर खुसरो, कबीर, तुलसी और राकू को वैष्णव हिन्दू हर वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अपने भगवान श्रीराम के जन्मदिवस का त्योहार मनाते हैं। वर्ष २००९ में यह तिथि ३ अप्रैल को आयी है, इस दिवस पर रामनवमी नाम का त्यौहार मनाया जाता है। पुराण-कथाओं के अनुसार श्री राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता हैं। मान्यता है कि तीनों लोकों में धर्म की स्थापना के लिए ब्रह्म, विष्णु और महेश (शिव) नामक तीन तंत्र हैं और इनके काउँटरपार्टों की भी संकल्पना की गई है। रामनवमी का त्योहार इस बात की याद दिलाता है कि मनुष्य को धर्म में आस्था कभी नहीं छोड़नी चाहिए। अधर्म कितना भी अपना अंधकार फैला ले, भगवान देर ही सही अभय प्रकाश लेकर ज़रूर अवतरित होते हैं। रामायण की कथा में महर्षि वाल्मिकी लिखते हैं कि अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्‍नियाँ होने के बावज़ूद उन्हें कोई पुत्र नहीं था। दशरथ को अपने राजवंश के खत्म होने का डर था। शंका से ग्रस्त राजा दशरथ को वशिष्ठ ऋषि ने आशा का छोर न छोड़ने की सलाह दी और पुत्र-प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का रास्ता दिखलाया। पुत्र-कामेष्टि यज्ञ के अनुष्ठान के फलस्वरूप

है इसी में प्यार की आबरू....लता की आवाज़ में कसक दर्द की

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 40 क हते हैं कि प्यार अंधा होता है. दिमाग़ कहता है कि वो बेवफा है, लेकिन दिल है कि उनसे वफ़ा पे वफ़ा किये जा रहा है. शायद इसलिए कि दिल यह नहीं चाहता कि उसका प्यार बदनाम हो, बे-आबरू हो. "वो मेरे यादों से जाते नहीं हैं, नींद भी अब एक पल को आती नहीं है, गम की बातों में बस डूबा है दिल, बात कोई और दिल को भाती नहीं है". दर्द में कोई मौसम प्यारा नहीं होता, दिल हो प्यासा तो पानी से गुज़ारा नहीं होता, कोई देखे तो हमारी बेबसी, हम सभी के हो जाते हैं, पर कोई हमारा नहीं होता. मुझे गम भी उनका अज़ीज़ है, यह उन्ही की दी हुई चीज़ है. दिल तो वफ़ा पे वफ़ा किये जा रहा है लेकिन वो वफ़ा भी अगर रिश्ते को बचा ना सके तो फिर दिल क्या करे! कुछ ऐसी ही बात कही गयी है हमारे आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' के गीत में. और इतनी खूबसूरत अंदाज़ में कहा गया है कि गीत एक सदाबहार नग्मा बनकर रह गया है. रजा मेहंदी अली खान, मदन मोहन, लता मंगेशकर, और एक फिल्मी ग़ज़ल, और क्या चाहिए दोस्तों, कमाल तो होना ही था! 1962 की फिल्म "अनपढ़" में ऐसे ही दो ग़ज़लें लताजी की थी जिन्हे पर्दे पर माला

अखियाँ नु चैन न आवें....नुसरत बाबा का रूहानी अंदाज़ महफ़िल-ए-ग़ज़ल में

महफ़िल-ए-ग़ज़ल # ०१ अ ब तो आ जा कि आँखें उदास बैठी हैं, भूलकर होश-औ-गुमां बदहवास बैठी हैं। इश्क की कशिश हीं ऎसी है कि साजन सामने हो तो भी कुछ न सूझे और दूर जाए तब भी कुछ न सूझे। इश्क की तड़प हीं ऎसी है कि साजन आँखों में हो तो दिल को सुकूं न मिले और दिल में हो तो आँखों में कुछ चुभता-सा लगे। रूह तब तक मोहब्बत के रंग में नहीं रंगता जब तक पोर-पोर में साजन की आमद न हो। लेकिन अगर दिल की रहबर "आँखें" हीं साजन के दरश को प्यासी हों तो बिन मौसम सावन न बरसे तो और क्या हो। यकीं मानिए सावन बारहा मज़े नहीं देता : आँखों से अम्ल बरसे जो दफ़-अतन कभी, छिल जाए गीली धरती,खुशियाँ जलें सभी। बाबा नुसरत ने कुछ ऎसे हीं भावों को अपने मखमली आवाज़ से सराबोर किया है। "बैंडिट क्वीन" से यह पंजाबी गीत आप सबके सामने पेशे खिदमत है। शाइर वो क्या जो न झांके खुद के अंदर में, क्या रखा है खल्क-खुल्द, माह-औ-मेहर में? साहिर ने प्यासा में कहा है: "ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है" । इस सुखन के हरेक हर्फ़ से कई मायने निकलते हैं,जो ज़िंदगी को सच्चाई का आईना दिखाते हैं । एक मायना यह भी निकलता ह

एक चतुर नार करके शृंगार - ऐसी मस्ती क्या कहने...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 39 आ ज तो 'ओल्ड इस गोल्ड' की महफ़िल में होने जा रहा है एक ज़बरदस्त हंगामा, क्योंकि आज हमने जो गीत चुना है उसमें होनेवाला है एक ज़बरदस्त मुक़ाबला. यह गीत ना केवल हंगामाखेज है बल्कि अपनी तरह का एकमात्र गीत है. इस गीत के बनने के बाद आज 40 साल गुज़र चुके हैं, लेकिन इस गीत को टक्कर दे सके, ऐसा कोई गीत अब तक ना बन पाया है और लगता नहीं भविष्य में भी कभी बन पाएगा. ज़्यादा भूमिका ना बढाते हुए आपको बता दें कि यह वही गीत है फिल्म "पड़ोसन" का जिसे आप कई कई बार सुन चुके होंगे, लेकिन जितनी बार भी आप सुने यह नया सा ही लगता है और दिल थाम कर गाना पूरा सुने बगैर रहा नहीं जाता. जी हाँ, आज का गीत है "एक चतुर नार करके शृंगार". 1968 में फिल्म पड़ोसन बनी थी जिसमें किशोर कुमार, सुनील दत्त, सायरा बानो और महमूद ने अभिनय किया था. अभिनय क्या किया था, इन कलाकारों ने तो जैसे कोई हास्य आंदोलन यानी कि 'लाफ रोइट्स' ही छेड दिया था. 'सिचुयेशन' यह थी कि सुनील दत्त अपनी पडोसन सायरा बानो पर मार मिटे थे लेकिन सायरा बानो उन्हे भाव भी नहीं दे रही थी. तो जब