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सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'आत्माराम'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'आत्माराम' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' 'नेकी' ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "आत्माराम" , जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 18 मिनट और 40 सेकंड। नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी

"अमृता - इमरोज़"- रंजना भाटिया की नज़र में

पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा (अंक २) अमृता इमरोज लेखिका – उमा त्रिलोक मूल्य – 120 प्रकाशक – पेंगुइन बुक्स इंडिया प्रा. लि. भारत आईएसबीएन नं. – 0-14-309993-0 उमा त्रिलोक की किताब को पढ़ना मुझे सिर्फ़ इस लिए अच्छा नही लगा कि यह मेरी सबसे मनपसंद और रुह में बसने वाली अमृता के बारे में लिखी हुई है ..बल्कि या मेरे इस लिए भी ख़ास है कि इसको इमरोज़ ने ख़ुद अपने हाथो से हस्ताक्षर करके मुझे दिया है ...उमा जी ने इस किताब में उन पलों को तो जीवंत किया ही है जो इमरोज़ और अमृता की जिंदगी से जुड़े हुए बहुत ख़ास लम्हे हैं साथ ही साथ उन्होंने इस में उन पलों को समेट लिया है जो अमृता जी की जीवन के आखरी लम्हे थे. और उन्होंने हर पल उस रूहानी मोहब्बत के जज्बे को अपनी कलम में समेट लिया है फ़िर सुबह सवेरे हम कागज के फटे हुए टुकडों की तरह मिले मैंने अपने हाथ में उसका हाथ लिया उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और फ़िर हम दोनों एक सेंसर की तरह हँसे और फ़िर कागज को एक ठंडी मेज पर रख कर उस सारी नज़्म पर लकीर फेर दी ! मैंने इस किताब को पढ़ते हुए इसके हर लफ्जे को रुह से महसूस किया एक तो मैं उनके घर हो कर आई थी यदि कोई न भी गया

कुछ यूँ दिये निदा फ़ाज़ली ने जवाब

निदा फ़ाज़ली की ही आवाज़ में सुनिए हिन्द-युग्म के पाठकों के सवालों के जवाब जवाब देते निदा फ़ाज़ली हिन्द-युग्म ने यह तय किया है कि जनवरी २००९ से प्रत्येक माह कला और साहित्य से जुड़ी किसी एक नामी हस्ती से आपकी मुलाक़ात कराया करेगा। आपसे से सवाल माँगेंगे जो आप उस विभूति से पूछना चाहते हैं और उसे आपकी ओर से आपके प्रिय कलाकार या साहित्यकार के सामने रखेंगे। सारा कार्रक्रम रिकॉर्ड करके हम आपको अपने आवाज़ मंच द्वारा सुनवायेंगे। हमने सोचा कि शुरूआत क्यों न किसी शायर से हो जाय। क्योंकि हिन्द-युग्म की शुरूआत भी कुछ रचनाकारों से ही हुई थी। ४ जनवरी २००९ को हमने आपसे मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली से पूछने के लिए सवाल माँगे। आपने भेजे और हम ६ जनवरी को पहुँच गये निदा के पास। मुलाक़ात से जुड़े निखिल आनंद गिरि के अनुभव आप बैठक पर पढ़ भी चुके हैं। आज हम लेकर आये हैं आपके सवालों के जवाब निदा फ़ाजली की ज़ुबाँ से। यह मुलाकात बहुत अनौपचारिक मुलाक़ात थी, इसलिए रिकॉर्डिंग की बातचीत भी वैसी है। आप भी सुनिए। निदा फ़ाज़ली से पाठकों की ओर से सवाल किया है निखिल आनंद गिरि और शैलेश भारतवासी ने। अंत में प्रेमचंद सहजवाला की निदा फ

एक धक्का दो....जोश की जमीन पे, विश्वास बीन के...

आवाज़ की टीम गर्व के साथ पेश कर रही है एक बेहद प्रताभाशाली गायिका तरन्नुम मालिक जैसा कि हमारे नियमित श्रोता जानते हैं कि आवाज़ पर नए संगीत का दूसरा सत्र बीते माह " जो शजर " गीत के साथ खत्म हो गया. इस सत्र में हमने कुल २७ गीत उतारे जिन्हें श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला, ये गीत आजकल समीक्षा के दूसरे चरण में हैं जिसके बाद हमें मिलेंगें हमारे टॉप १० गीत जिसमें से कोई एक गीत होगा हमारे दूसरे सत्र का सरताज गीत. पर सत्र खत्म होने का ये कतई अर्थ नही है कि हम नई प्रतिभाओं को इस मंच के माध्यम से दुनिया के सामने रखना बंद कर देंगें. ये प्रक्रिया बदस्तूर जारी रहेगी. २६ नवम्बर २००८ को जो कुछ मुंबई में हुआ, उससे हर संवेदनशील ह्रदय आहत हुआ. कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से आम आदमी के भीतर उबलते ज़ज्बातों को दुनिया के सामने रखा. रहमान ने शिवमणि के साथ मिलकर "जिया से जिया" गीत रच डाला. आदेश श्रीवास्तव ने उस्ताद रशीद खान और जोया अख्तर के साथ मिलकर एक नई एल्बम बनायी, वहीं सुनिधि चौहान ने वसुंधरा दास और श्रुति के साथ एक ऐसा गीत बनाया जिसमें इन आतंकवादी हमलों की कड़ी भर्त्सना की गई. शिबान

ताल से ताल मिला - रहमान के साथ

मोजार्ट ऑफ़ मद्रास को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाओं सहित - बात तब की है, जब रहमान "गुरू" फिल्म के गाने रिकार्ड कर रहे थे। "नुसरत" साहब के एक बहुत हीं सोफ्ट-से गाने "सजना तेरे बिना" ने उन्हें बेहद प्रभावित किया था। गौरतलब बात है कि "रहमान" की गिनती नुसरत साहब के बड़े फैन्स में की जाती है। रहमान भी "सजना तेरे बिना" जैसा हीं कोई सोफ्ट-सा गाना तैयार करना चाहते थे। "नुसरत" साहब का या फिर कहिये उनकी दुआओं का यह असर हुआ कि २५ मिनट का गाना बन कर तैयार हो गया। छ:-सात मुखरों से सजे इस गाने की एडिटिंग शुरू हुई और अंतत: गाने को इसकी मुकम्मल और संतुलित लंबाई मिल गई। मज़े की बात यह है कि इस गाने से पहले रहमान ने "ऎ हैरते आशिकी" गाना भी बना लिया था. "ऎ हैरते आशिकी" के पीछे का वाक्या भी बड़ा हीं मज़ेदार है। अमीर खुसरो के एक नज़्म "ये शरबती आशिकी" ने "रहमान" पर गहरा असर किया था। रहमान इसे धुनों में उतारना चाहते थे, लेकिन फारसी की बहुलता आड़े आ रही थी। तब खेवनहार के तौर पर आए "गुलज़ार साहब" जिन्होने &qu

लक्ष्य छोटे हों या बड़े, पूरे होने चाहिए- शैलेश भारतवासी

डैलास, अमेरिका के एफ॰एम॰ रेडियो चैनल 'रेडियो सलाम नमस्ते' को दिये गये अपने साक्षात्कार में हिन्द-युग्म के संस्थापक-नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने कहा कि किसी व्यक्ति या संस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह चाहे छोटे लक्ष्य बनायें या बड़े लक्ष्य बनाये, उसे पूरा करे। शैलेश रेडियो सलाम नमस्ते के हिन्दी कविता को समर्पित साप्ताहिक कार्यक्रम 'कवितांजलि' के २१ दिसम्बर के कार्यक्रम में टेलीफोनिक इंटरव्यू दे रहे थे। हमें वह रिकॉर्डिंग प्राप्त हो गई है। आप भी सुनें, शैलेश की बातें और उसके बाद रेडियो सलाम नमस्ते के श्रोताओं की बातें। आदित्य प्रकाश यह कार्यक्रम डैलास, अमेरिका में ही वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हिन्दी सेवी आदित्य प्रकाश सिंह द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। आदित्य प्रकाश की आवाज़ सुनकर हर एक हिन्दी प्रेमी को हिन्दी के लिए कुछ कर गुजरने की ऊर्जा मिलती है। आदित्य प्रकाश सिंह अपने खर्चे से दुनिया भर के हिन्दी कर्मियों को अपने कवितांजलि कार्यक्रम से जोड़ते हैं। यहाँ तक कि स्टूडियो तक आने-जाने का खर्च भी ये ही उठाते हैं। मूल रूप से भारत में बिहार के रहनेवाले आदित्य प्रकाश कवि

वो जिसने हिन्दी फ़िल्म संगीत की तस्वीर ही बदल दी...- ए आर रहमान.

बात १९९१ की है। तमिल फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन निर्देशक मणिरत्नम और बेहतरीन संगीतकार इल्लैया राजा की वर्षों पुरानी जोड़ी टूट चुकी थी। मणिरत्नम एक नए और फ्रेश संगीतकार की खोज में थे। हर साल की तरह उस साल भी मणिरत्नम का एक जानेमाने अवार्ड फंक्शन में जाना हुआ। समारोह शुरू होने से पहले वहाँ कुछ ऎड जिंगल्स (ad jingles) प्ले हो रहे थे। मणिरत्नम धुनों से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने उस संगीतकार के कुछ और गानों की फरमाईश की। धुनों का असर बढता गया। समारोह के बाद मणिरत्नम उस संगीतकार के म्युजिक रिकार्डिंग स्टुडियो भी गए। उस गुमनाम संगीतकार ने अपना एक पुराना गीत मणिरत्नम को सुनाया, जिसे उसने बरसों पहले "कावेरी विवाद" के सिलसिले में तैयार किया था। मणिरत्नम ने तनिक भी देर न करते हुए, अपनी नई फिल्म के लिए इस गीत की माँग कर दी और साथ हीं साथ इस नए-से संगीतकार को साईन भी कर लिया। वह मकबूल फिल्म थी "बालचंदर्स कवितालय" की "रोज़ा", वह गाना था " तमिज़ा तमिज़ा ", जो हिंदी में अनुवादित होकर हुआ "भारत हमको जान से प्यारा है" और वह अनजाना सा संगीत-दिग्दर्शक था