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मिटटी के गीत ( २ ), लोक गीतों की अनमोल धरोहर संभाले हैं - ये संगीत युगल

लोक गीतों की बात चल रही है, और हम है आसाम की हरियाली वादियों में, जुबीन की मधुर आवाज़ में हम सुन चुके हैं ये भोरगीत , आसाम के लोकगीतों को मुख्यता दो प्रकारों में बांटा जा सकता है. कमरुपिया और गुवाल्पोरिया, आज हम आपको सुनाते हैं एक कमरुपिया लोक गीत, आवाजें हैं आसाम के बेहद मशहूर लोकगीत गायक दम्पति, रामेश्वर पाठक और धनादा पाठक की, This perfect couple continued making waves with their magnificent renderings of the folk tunes in never before styles. Dhanada Pathak originally comes from a culturally enlightened family of Barpeta who owned a Jatra party in their home called "The Rowly Opera". Her elder brothers were actively associated with the opera in many ways. They acted, sang, played instruments like the dotora, flute and others and initiated the functioning of the opera. So when she got married to Sri Rameshwar Pathak, their association nourished their individual dreams that had by the time taken an united shape. Today, for the masses, Rameshwar Pathak and Dhanada Pathak are a

मैं तो दीवाना...दीवाना...दीवाना...मुकेश, एक परिचय

इससे पहले आपने पढ़ा हृदय नाथ मंगेशकर द्वारा लिखित संस्मरण 'ओ जाने वाले हो सके तो॰॰॰' और सुने मुकेश के गाये ९ हिट गीत। संजय पटेल का आलेख 'दर्द को सुरीलेपन की पराकाष्ठा पर ले जाने वाले अमर गायक मुकेश' । अब जानिए मुकेश के बारे में तपन शर्मा से। मुकेश चंद्र माथुर का जन्म दिल्ली के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में जुलाई २२, १९२३ को हुआ। उन्हें अभिनय व गायन का बचपन से ही शौक था और वे के.एल. सहगल के प्रशंसक थे। मात्र दसवीं तक पढ़ने के बावजूद उन्हें लोक निर्माण कार्य में सहायक सर्वेक्षक विभाग में नौकरी मिल गई, जहाँ पर उन्होंने सात महीने तक काम किया। पर भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। दिल्ली में उन्होंने चुपके से कईं गैर-फिल्मी गानों की रिकार्डिंग करी। उसके बाद तो वे भाग कर मुम्बई में फिल्म-स्टार बनने के लिये जा पहुँचे। वे अपने रिश्तेदार व प्रसिद्ध कलाकार मोतीलाल के यहाँ ठहरने लगे। मोतीलाल की मदद से वे फिल्मों में काम करने लगे। एक गायक के तौर पर उनका पहला गीत "निर्दोष" में "दिल ही बुझा हुआ..." रहा, उसके बाद उनका पहला युगल गीत फिल्म "उस पार" में गायिका कुसुम क

दर्द को सुरीलेपन की पराकाष्ठा पर ले जाने वाले अमर गायक मुकेश

आज सुबह आपने पढ़ा हृदयनाथ मंगेशकर का संस्मरण ' वो जाने वाले हो सके तो॰॰॰॰ ' आज हम पूरे दिन मुकेश को याद कर रहे हैं, उनके गाये गीत सुनवाकर, उनसी जुड़ी यादें बाँटकर॰॰॰॰आगे पढ़िए तपन शर्मा 'चिंतक' की प्रस्तुति ' मैं तो दीवाना, दीवाना, दीवाना ' मुकेश के साथ कल्याण जी चित्र साभार- हमाराफोटोज वे परिश्रम से कभी गुरेज़ नहीं करते थे. कितनी ही बार री-टेक करो,उन्हें नाराज़ी नहीं होती.कितनी ही बार रिहर्सल के लिये कॉल करो वे तैयार..बस अभी आया.उन्हें अपने परफ़ॉरमेंस से जल्द सेटिसफ़ेक्शन नहीं होता था. बता रहे थे ख्यात संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के स्व.कल्याणजी भाई. नब्बे के दशक में जब वे लता पुरस्कार लेने इन्दौर आए तो दो दिन का डेरा था मेरे शहर. आयोजन का एंकर होने की वजह से हमेशा से कलाकारों का संगसाथ आसानी से मिलता रहा है सो कल्याणजी भाई से लम्बी बात करने का मौक़ा भी मिल ही गया. एक दिन उनके संगीत सफ़र की चर्चा होती रही, दूसरे दिन गायक-गायिकाओं पर. जब मुकेशजी पर बात आई तो कल्याणजी भाई भावुक हो उठे. मुकेशजी के घर में गुजराती परिवेश भी रहा क्योंकि पत्नी सरल गुजराती थीं (अभी

ओ जाने वाले हो सके तो ....

हृदयनाथ मंगेशकर द्वारा लिखित संस्मरण हजारों गाने गानेवाले मुकेश दा के आखिरी शब्‍द थे – ‘यह पट्टा खोल दो’ खुशमिज़ाज मुकेश तीस हजार फुट की ऊँचाई पर हमारा जहाज उड़ा जा रहा है। रूई के गुच्‍छों जैसे अनगिनत सफेद बादल चारों ओर छाए हुए हुए हैं। ऊपर फीके नीले रंग का आसमान है। इन बादलों और नीले आकाश से बनी गुलाबी क्षितिज रेखा दूर तक चली गई है। कभी-कभी कोई बड़ा सा बादल का टुकड़ा यों सामने आ जाता है, माने कोई मजबूत किला हो। हवाई जहाज की कर्कश आवाज को अपने कानों में झेलते हुए मैं उदास मन से भगवान की इस लीला को देख रहा हूँ। अभी कल-परसों ही जिस व्‍यक्ति के साथ ताश खेलते हुए और अपने अगले कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाते हुए हमने विमान में सफर किया था, उसी अपने अतिप्रिय, आदरणीय मुकश दा का निर्जीव, चेतनाहीन, जड़ शरीर विमान के निचले भाग में रखकर हम लौट रहे हैं। उनकी याद में भर-भर आनेवाली ऑंखों को छिपाकर हम उनके पुत्र नितिन मुकेश को धीरज देते हुए भारत की ओर बढ़ रहे हैं। आज 29 अगस्‍त है। आज से ठीक एक महीना एक दिन पहले मुकेश दा यात्री बनकर विमान में बैठे थे। आज उसी देश को, जिसमें पिछले 25 वर्षों का एक दिन, एक घ

हिंद युग्म ने मेरे सपनों को रंग और पंख दिये...

आवाज़ पर हमारे इस हफ्ते के सितारे हैं, शायरा शिवानी सिंह और संगीतकार / गायक रुपेश ऋषि. हिंद युग्म के पहला सुर एल्बम में इस जोड़ी ने मशहूर ग़ज़ल " ये जरूरी नही " का योगदान दिया था, नए सत्र में एक बार फ़िर इनकी ताज़ी ग़ज़ल " चले जाना " को श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला... शिवानी जी दिल्ली में रह कर सक्रिय लेखन करती है, साथ ही एक NGO, जो कैंसर पीडितों के लिए काम करती है, के लिए अपना समय निकाल कर योगदान देती है, युग्म से इनका रिश्ता बहुत पुराना है, चलिए पहले जानते हैं शिवानी जी से, कि कैसा रहा हिंद युग्म में उनका अब तक का सफर - शिवानी सिंह - नमस्कार, मेरा प्रसिद्द नाम शिखा शौकीन है, परन्तु काव्य जगत में, मैं शिवानी सिंह के नाम से जानी जाती हूँ ! अब तक मैं करीब ३७० कविताएं लिख चुकी हूँ ! मेरा ९० कविताओं का एक संग्रह `यादों के बगीचे से' नाम से छप चुका है और दूसरा `कुछ सपनो की खातिर' प्रकार्शनार्थ तैयार है ! मैंने बी.ए, एस.सी मिरांडा हाउस , दिल्ली विश्वविद्यालय से की है और बी.एड, हिन्दू कालेज सोनीपत से ! मेरी ग़ज़लों के संग्रह में से "चले जाना" मेरी पसंदीदा ग़ज़ल

वाह उस्ताद वाह ( १ ) - पंडित शिव कुमार शर्मा

संतूर को हम, बनारस घराने के पंडित बड़े रामदास जी की खोज कह सकते हैं, जिनके शिष्य रहे जम्मू कश्मीर के शास्त्रीय गायक पंडित उमा दत्त शर्मा को इस वाध्य में आपर संभावनाएं नज़र आयी. इससे पहले संतूर शत तंत्री वीणा यानी सौ तारों वाली वीणा के नाम से जाना जाता था, जिसके इस्तेमाल सूफियाना संगीत में अधिक होता था. उमा दत्त जी ने इस वाध्य पर बहुत काम किया, और अपने बाद अपने इकलौते बेटे को सौंप गए, संतूर को नयी उंचाईयों पर पहुँचने का मुश्किल काम. अब आप के लिए ये अंदाजा लगना बिल्कुल भी कठिन नही होगा की वो होनहार बेटा कौन है, जिसने न सिर्फ़ अपने पिता के सपने को साकार रूप दिया , बल्कि आज ख़ुद उनका नाम ही संतूर का पर्यावाची बन गया. जी हाँ हम बात कर रहे हैं, संतूर सम्राट पंडित शिव कुमार शर्मा जी की. पंडित जी ने १०० तारों में १६ तार और जोड़े, संतूर को शास्त्रीय संगीत की ताल पर लाने के लिए.अनेकों नए प्रयोग किया, अन्य बड़े नामी उस्तादों के साथ मंत्रमुग्ध कर देने वाली जुगलबंदियां की, और इस तरह कश्मीर की वादियों से निकलकर संतूर देश विदेश में बसे संगीत प्रेमियों के मन में बस गया. पंडित जी ने बांसुरी वादक हरि प्रस

नवलेखन पुरस्कार कहानी 'स्वेटर' का पॉडकास्ट

ऑनलाइन अभिनय द्वारा सजी कहानी 'स्वेटर' का प्रसारण आज से लगभग १५ दिन पहले हमने श्रोताओं को विमल चंद्र पाण्डेय की कहानी 'स्वेटर' में ऑनलाइन अभिनय करने का मौका दिया था। हमें ४ लोगों (नीलम मिश्रा, अभिनव वाजपेयी, शिवानी सिंह और शोभा महेन्द्रू) से रिकर्डिंग प्राप्त हुई। हमारी टीम ने सभी की रिकॉर्डिंग की समीक्षा की और निर्णय लिया कि शोभा महेन्द्रू और शिवानी सिंह की आवाज़ों को मिक्स करके 'स्वेटर' का पॉडकास्ट बनाना उचित होगा। तो उसी पॉडकास्ट के साथ आपके समक्ष उपस्थित हैं। गौरतलब है कि विमल की यह कहानी इस बार के नवलेखन पुरस्कार द्वारा पुरस्कृत कथा-संग्रह 'डर' का हिस्सा है। सभी प्रतिभागियों का बहुत-बहुत शुक्रिया। अब हम इस ऑनलाइन प्रयास में कितने सफल हुए हैं, ये तो आप ही बतायेंगे। कहानी- स्वेटर कहानीकार- विमल चंद्र पाण्डेय स्वर- शोभा महेन्द्रू एवं शिवानी सिंह नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) जिनके नेट की स्पीड 256kbps से ऊपर है, वे निम्न प्लेयर चलायें (ब्रॉडबैंड) जिनके नेट की स्पीड 128kb