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जिसे तू कबूल कर ले वो अदा कहाँ से लाऊं....पूछा था चंद्रमुखी से देव बाबू से लता के स्वर में.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 94 न्यू थियटर्स के प्रमथेश चंद्र बरुवा ने सन् १९३५ में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के मशहूर उपन्यास 'देवदास' को पहली बार रुपहले परदे पर साकार किया था। यह फ़िल्म बंगला में बनायी गयी थी और बेहद कामयाब रही। देवदास की भूमिका में कुंदन लाल सहगल ने हर एक के दिल को छू लिया। बंगाल में इस फ़िल्म की अपार सफलता से प्रेरित होकर बरुवा साहब ने इस फ़िल्म को हिंदी में बना डाली उसी साल और पूरे देश भर में सहगल दर्द का पर्याय बन गए। जमुना, राजकुमारी (कलकत्ता) और पहाड़ी सान्याल ने कमश: पारो, चंद्रमुखी और चुन्नी बाबू की भूमिकायें निभायी। इसके बाद सन् १९५५ में लोगों ने देवदास को तीसरी बार के लिये परदे पर तब देखा (हिंदी में दूसरी बार) जब बिमल राय ने 'ट्रेजेडी किंग' दिलीप कुमार को देवदास की भूमिका में प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया। उस समय दिलीप कुमार के अलावा इस चरित्र के लिये किसी और का नाम सुझाना नामुमकिन था। दिलीप साहब हर एक की उम्मीदों पर खरे उतरे और उन्हे इस फ़िल्म के लिए उस साल का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार भी मिला। पारो और चंद्रमुखी की भूमिकायों में

मेरा दिल ये पुकारे आजा.....तड़पती नागिन की पुकार लता के स्वर में...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 82 क ल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप ने सुना हेमन्त कुमार के संगीत और आवाज़ से सजी फ़िल्म 'बीस साल बाद' का एक गीत। आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हेमन्तदा छाये रहेंगे क्यूंकि आज भी हम उन्ही का स्वरबद्ध गीत सुनवाने जा रहे हैं आपको। लेकिन यह बात ज़रूर है कि आज का गीत उनकी आवाज़ में नहीं बल्कि सुर कोकीला लता मंगेशकर की आवाज़ में है। जहाँ हेमन्तदा का मधुर संगीत और लताजी की मधुर आवाज़ एक साथ घुलमिल जाये तो इस संगम से कैसा मीठा रस उत्पन्न होगा इसका शायद आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं। आज हम आपको सुनवाने के लिए लाये हैं १९५४ की फ़िल्म 'नागिन' का एक गीत। यूँ तो फ़िल्म 'नागिन' का नाम आते ही लताजी का गाया "मन डोले मेरा तन डोले" गीत याद आता है और साथ ही याद आती है रवि और कल्याणजी द्वारा बजाये गये हारमोनियम और क्लेवियोलिन पर बीन की ध्वनि। लेकिन इसी फ़िल्म में लताजी ने बहुत सारे एक से एक मधुर एकल गीत गाये हैं जिनकी चर्चा इस गीत से थोडी कम होती है। तो इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना इन्ही में से एक गीत आज चुना जाए। अब देखना यह है कि क्या

जाओ रे जोगी तुम जाओ रे....आम्रपाली के स्वर में लता की सदा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 80 य ह कहानी है भारत के इतिहास के पन्नो से। इस कहानी की शुरुआत होती है वैशाली शहर में जहाँ एक रोज़ एक नारी का आविर्भाव होता है वहाँ के एक आम के बगीचे से। किसी को नहीं पता कि वह कौन है और कहाँ से आयी है। वह बहुत सुंदर थी और नृत्यकला में उसका कोई सानी नहीं था वहाँ पर। शहर में हर पुरुष उसका प्यार जीतना चाहता था। इसलिए उस लड़की ने यह ऐलान किया कि वह कभी किसी से शादी नहीं करेगी और वह पूरे शहर के लिए नृत्य करती रहेगी। दिन गुज़रने लगे, लोग उसे 'आम्रपाली' के नाम से पुकारने लगे क्योंकि वो आम के बगीचे से निकल कर पहली बार शहर में आयी थी। एक दिन अचानक मगध के राजा अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण कर दिया। शहर के सारे लोग, जो आम्रपाली के नृत्य में डूबे हुए थे, अब युद्ध के लिए तैयार हो रहे थे। यह देख आम्रपाली का हृदय दर्द से भर उठा। अजातशत्रु के सिपाही मगध की सेना से युद्ध में हारने लगते हैं, तो अजातशत्रु युद्धभूमी से भागकर मगध के सैनिक का भेस धारण कर वैशाली शहर में घुस जाते हैं और इत्तेफ़ाक से आ पहुँचते हैं नर्तकी आम्रपाली के घर। दोनो को एक दूसरे से प्यार हो जाता है, ले