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चित्रकथा - 44: फ़िल्म-संगीत में मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लें

अंक - 44 फ़िल्म-संगीत में मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लें "आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक..."  रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आ रहे हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के पहले अंक म

चित्रकथा - 43: पुत्र ॠतुराज सिसोदिया की यादों में पिता बसन्त प्रकाश और ताऊ खेमचन्द प्रकाश

अंक - 43 पुत्र ॠतुराज सिसोदिया की यादों में पिता बसन्त प्रकाश और ताऊ खेमचन्द प्रकाश "रफ़्ता-रफ़्ता आप मेरे दिल के मेहमाँ हो गए..."  फ़िल्म संगीत के सुनहरे युग में जहाँ एक तरफ़ कुछ संगीतकार लोकप्रियता की बुलंदियों तक पहुँचे, वहीं दूसरी तरफ़ बहुत से संगीतकार ऐसे भी हुए जो बावजूद प्रतिभा सम्पन्न होने के बहुत अधिक दूर तक नहीं बढ़ सके। आज जब सुनहरे दौर के संगीतकारों की बात चलती है तब अनिल बिस्वास, नौशाद, सी. रामचन्द्र, रोशन, सचिन देव बर्मन, ओ.पी. नय्यर, मदन मोहन, रवि, हेमन्त कुमार, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन जैसे नाम सब से पहले लिए जाते हैं। इन चमकीले नामों की चमक के सामने बहुत से नाम इस चकाचौंध में नज़रंदाज़ हो जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है संगीतकार बसंत प्रकाश का। जी हाँ, वही बसंत प्रकाश जो 40 के दशक के सुप्रसिद्ध संगीतकार खेमचंद प्रकाश के छोटे भाई थे। खेमचंद जी की तरह बसंत प्रकाश इतने मशहूर तो नहीं हुए, पर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने को समृद्ध करने में अपना अमूल्य योगदान दिया। आज बसंत प्रकाश जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन यह हमारा सौभाग्य है कि

चित्रकथा - 41: भाई-दूज विशेष: फ़िल्म-संगीत जगत में भाई-बहन की जोड़ियाँ

अंक - 41 भाई-दूज विशेष: फ़िल्म-संगीत जगत में भाई-बहन की जोड़ियाँ "एक हज़ारों में मेरी बहना है..."  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! प्रस्तुत है फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत के विभिन्न पहलुओं से जुड़े विषयों पर आधारित शोधालेखों का स्तंभ ’चित्रशाला’। आज रक्षाबंधन है, इस पावन अवसर पर हम अपने सभी पाठकों का हार्दिक अभिनन्दन करते हैं। दोस्तों, हिन्दी सिने संगीत जगत में कई भाई-बहन की जोड़ियों ने काम किया है। आज रक्षाबंधन के अवसर पर आइए ’चित्रशाला’ के ज़रिए याद करें कुछ ऐसे भाई-बहनों को जिन्होंने फ़िल्म संगीत को समृद्ध किया है। तो आइए क्यों ना आज ’चित्रकथा’ के इस अंक में हम याद करें कुछ ऐसी ही भाई-बहन की जोड़ियों को जिन्होंने फ़िल्म-संगीत जगत में अपनी पहचान बनाई हैं, अपनी छाप छोड़ी है। ए क ही परिवार के दो भाई या दो बहनों के फ़िल्म संगीत जगत में काम करने के उदाहरण तो हमें बहुत से मिल जायेंगे, पर एक ही परिवार से एक भाई और एक बहन की जोड़ियों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। फ़िल्म संगीत के

चित्रकथा - 36: हाल के फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय संगीत की छाया

अंक - 36 हाल के फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय संगीत की छाया "साजन आयो रे, सावन लायो रे..."  एक ज़माना था जब हिन्दी फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय रागों का समावेश होता था। राग आधारित रचनाओं ने उन फ़िल्मों के ऐल्बमों के स्तर को ही केवल उपर नहीं उठाया बल्कि सुनने वालों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। फिर धीरे धीरे बदलते समय के साथ-साथ फ़िल्मी गीतों का चदल बदला; पाश्चात्य संगीत उस पर हावी होने लगा और 80 के दशक के आते-आते जैसे शास्त्रीय संगीत फ़िल्मी गीतों से पूरी तरह से ग़ायब ही हो गया। फिर भी समय-समय पर फ़िल्म की कहानी, चरित्र और ज़रूरत के हिसाब से भारतीय शास्त्रीय संगीत आधारित रचनाएँ हमारी फ़िल्मों में आती रही हैं। आज के दौर की फ़िल्मों में भी कई गीत शास्त्रीय संगीत की छाया लिए होते हैं। भले इनमें रागों का शुद्ध रूप से प्रयोग ना हो, लेकिन एक छाया उनमें ज़रूर होती है। आज ’चित्रकथा’ के इस अंक में हम नज़र डालेंगे हाल के कुछ बरसों में बनने वाली फ़िल्मों के उन गीतों पर जिनमें भारतीय शास्त्रीय संगीत की छाया दिखाई देती है। इस लेख को तैयार करने में कृष्णमोहन मिश्र जी का विशेष योग

चित्रकथा - 35: शायर व गीतकार ज़फ़र गोरखपुरी का फ़िल्म संगीत में योगदान

अंक - 35 शायर व गीतकार ज़फ़र गोरखपुरी का फ़िल्म संगीत में योगदान "समझ कर चाँद जिसको आसमाँ ने दिल में रखा है..."  82 बरस की उम्र में लम्बी बीमारी के बाद शायर व गीतकार ज़फर गोरखपुरी ने 29 जुलाई 2017 की रात मुम्बई में अपने परिवार के बीच आखिरी सांस ली। गोरखपुर की सरज़मी पर पैदा ज़फर गोरखपुरी की शायरी उन्हें लम्बे समय तक लोगों के दिल-ओ-दिमाग में ज़िंदा रखेगी। ज़फ़र साहब उर्दू के उम्दा शायर तो थे ही, साथ ही कुछ हिन्दी फ़िल्मों के लिए गाने भी लिखे। आइए फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत पार आधारित स्तंभ ’चित्रकथा’ में आज ज़िक्र छेड़ें उन गीतों की जिन्हें ज़फ़र गोरखपुरी ने लिखा है। आज के ’चित्रकथा’ का यह अंक समर्पित है ज़फ़र साहब की पुण्य स्मृति को। Zafar Gorakhpuri (5 May 1935 - 29 July 2017) ज़ फर गोरखपुरी को श्रद्धांजलि देते हुए साहित्यकार दयानंद पाण्डेय अपनी वाल पर लिखते हैं कि ‘अजी बड़ा लुत्फ था जब कुंवारे थे हम तुम, या फिर धीरे धीरे कलाई लगे थामने, उन को अंगुली थमाना ग़ज़ब हो गया! जैसी क़व्वालियों की उन दिनों बड़ी धूम थी। उस किशोर उम्र में ज़फर की यह दोनो

चित्रकथा - 34: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 5)

अंक - 34 इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 5) "तू मेरा हीरो नंबर वन.."  ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम