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रोको आत्महत्याएँ....जगाओ आत्मविश्वास... अभिजीत सावंत और पल्लव पाण्डया की संगीतमयी पहल

दोस्तों नए फनकारों को एक मंच देने आवाज़ का परम उद्देश्य है. इसी कोशिश में आज एक कड़ी और जुड़ रही है. मिलिए संगीतकार, गायक और परामर्शदाता पल्लव पाण्डया से. दुनिया भर में प्रतिवर्ष हजारों लोग जीवन से हताश होकर अपनी जीवन लीला स्वयं समाप्त कर देते हैं और इश्वर के दिए इस अनमोल तोहफे को यूंही जाया कर देते हैं. अधिकतर मामलों में आत्महत्या लम्बे समय से चल रहे घुटन का नतीजा होती है जिसे रोका जा सकता है यदि सही समय पर उस व्यक्ति की मनोदशा को समझने वाला या सिर्फ सुनने वाला ही कोई मिल जाए. हमारे आज के कलाकार पल्लव प्रतिदिन ५ से १० व्यक्तियों में अपनी "कौन्सिलिंग" से जीवन को वापस जीने का उत्साह भरते हैं. वो इस आंकडे को और बढ़ाना चाहते हैं ताकि आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों की तादाद घटे. अपनी इसी कोशिश को संगीत के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने का नेक इरादा लेकर पल्लव ने इस गीत को लिखा और संगीतबद्ध किया. इस नेक काम से जुड़े पहले इंडियन आइडल रहे अभिजीत सावंत भी जिन्होंने इस गीत को अपनी आवाज़ दी. पल्लव संगीत के असर को, उसके महत्त्व को बखूबी समझते हैं, इसीलिए आज आवाज़ के माध्यम स

"माँ तो माँ है...", माँ दिवस पर विश्व की समस्त माँओं को समर्पित एक नया गीत

यूँ तो यह माना जाता है कि कवि किसी भी विषय पर लिख सकता है, अपने भाव व्यक्त कर सकता है और अमूमन ऎसा होता भी है। लेकिन दुनिया में अकेली एक ऎसी चीज है जिसे आज तक कोई भी शब्दों में बाँध नहीं सका है। और उस शय का नाम है "माँ"। माँ....जो बच्चे के मुख से निकला पहला शब्द होता है और शायद अंतिम भी, माँ जो हर रोज सुबह को जगाती है और शाम को चादर दे सुला देती है, माँ जो हर कुछ में है लेकिन ऎसा व्यक्त करती है मानो कुछ में भी न हो। माँ.......जो पिता का संबल है, बेटे की जिद्द है और बेटी की रीढ है ... माँ जो निराशा में आशा की एक किरण है, चोट में मलहम है, धूप में गीली मिट्टी है और ठण्ड में हल्की सी धूप है, माँ .....जो और कुछ नहीं, बस माँ है... बस माँ!! मिट्टी पे दूब-सी, कुहे में धूप-सी, माँ की जाँ है, रातों में रोशनी, ख्वाबों में चाशनी, माँ तो माँ है, चढती संझा, चुल्हे की धाह है, उठती सुबह,फूर्त्ति की थाह है। माँ...खुद में हीं बेपनाह है । ....ऎसी मेरी , उनकी, आपकी, हम सबकी माँ है। ये शब्द हैं कवि और गीतकार, विश्व दीपक "तन्हा" के. पर क्या शब्दों में बांधा जा सकता है "माँ" क

ए आर रहमान और ढेरों युवा संगीत कर्मियों के जोश को समर्पित एक गीत

ए आर रहमान का ऑस्कर जीतना पूरे भारत के युवा संगीत कर्मियों के लिए एक अनूठी प्रेरणा बन गया है. पहले हमारे संगीत योद्धा जो अब तक फिल्म फेयर या रास्ट्रीय पुरस्कारों के सपने सजाते थे अब उनमें साहस आ गया है कि वो बड़े अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों के भी ख्वाब देख पा रहे हैं. उनमें अब ये यकीन भर गया है कि अब उनका मंच एक "ग्लोबल औडिएंस" का है और उनके यानी भारतीय अंदाज़ के संगीत के श्रोता और कद्रदान देश विदेश में फैले भारतीय ही नहीं बल्कि वो विदेशी श्रोता भी हैं जो अब तक भारतीय विशेषकर लोकप्रिय भारतीय फिल्म और गैर फ़िल्मी संगीत से जी चुराते थे. "It is being an interesting Journey till now. I have come across criticism, flattery, highs and lows" - A.R. Rahman. ए आर के इसी वक्तव्य से प्रेरित होकर आवाज़ के एक संगीत कर्मी प्रदीप पाठक ने एक गीत रचा, प्रदीप पाठक इन्टरनेट पर ही मिले संगीतकार सागर पाटिल ने जब इसे पढ़ा तो वो उसे स्वरबद्ध करने के लिए प्रेरित हुए. पुनीत देसाई ने इसे अपनी आवाज़ दी और इस तरह मात्र इंटरनेटिया प्रयासों से तैयार हुआ संगीत के बादशाह ए आर रहमान को स