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जाने क्या ढूंढती रही है ये ऑंखें मुझमें...ढूंढते हैं हम संगीत प्रेमी आज भी उस आवाज़ को जो कहीं आस पास ही है हमेशा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 157 'द स चेहरे एक आवाज़ - मोहम्मद रफ़ी', आवाज़ पर इन दिनों आप सुन रहे हैं गायक मोहम्मद रफ़ी को समर्पित यह लघु शृंखला, जिसमें दस अलग अलग अभिनेताओं पर फ़िल्माये रफ़ी साहब के गाये गीत सुनवाये जा रहे हैं। आज बारी है अभिनेता धर्मेन्द्र की। धर्मेन्द्र और रफ़ी साहब का एक साथ नाम लेते ही झट से जो गानें ज़हन में आ जाते हैं वो हैं "यही है तमन्ना तेरे घर के सामने", "मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊँ कैसे", "क्या कहिये ऐसे लोगों से जिनकी फ़ितरत छुपी रहे", "आप के हसीन रुख़ पे आज नया नूर है", "मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे", "एक हसीन शाम को दिल मेरा खो गया", "छलकायें जाम आइये आपकी आँखों के नाम", "गर तुम भुला न दोगे", "हो आज मौसम बड़ा बेइमान है", "मैं जट यमला पगला दीवाना", और भी न जाने कितने ऐसे हिट गीत हैं जिन्हे रफ़ी साहब ने गाये हैं परदे पर अभिनय करते हुए धर्मेन्द्र के लिये। लेकिन आज हम ने इस जोड़ी के नाम जिस गीत को समर्पित किया है वह उस फ़िल्म का है जो धर्मेन्द्

जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम....खेल अधूरा छूटे न...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 41 क हते हैं कि "ज़िंदगी हर क़दम एक नयी जंग है, जीत जाएँगे हम तू अगर संग है". हमसफ़र का अगर साथ हो तो ज़िंदगी की कोई भी बाज़ी आसानी से जीती जा सकती है, ज़िंदगी का सफ़र बडे ही सुहाने ढंग से तय किया जा सकता है. चाहे दुनिया कितनी भी रुकावटें खडी करें, चाहे कितनी भी परेशानियाँ दीवार बनकर सामने आए, अगर कोई सच्चा साथी साथ में हो तो ज़िंदगी के हर खेल को पूरा खेला जा सकता है. कुछ इसी तरह की बात कही गयी है आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' में शामिल गीत में. मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर की आवाज़ों में "शोला और शबनम" फिल्म से आज हम लेकर आए हैं "जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम". शोला और शबनम रमेश सहगल की फिल्म थी जिसे उन्होने 1961 में बनाया था. अभी भट्टाचार्य और विजयलक्ष्मी अभिनीत इस फिल्म में ज़बरदस्त 'स्टारकास्ट' तो नहीं थी, लेकिन अच्छी कहानी, अच्छा अभिनय, बेहतरीन निर्देशन और मधुर गीत संगीत की वजह से इस फिल्म को लोगों ने सराहा और आज भी इस फिल्म के गाने बडे चाव से सुने जाते हैं, ख़ास कर ये गीत. फिल्म शोला और शबनम के संगीतकार थे ख़य्याम. 1949 म