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राग गुणकली : SWARGOSHTHI – 390 : RAG GUNKALI

स्वरगोष्ठी – 390 में आज पूर्वांग और उत्तरांग राग – 5 : राग गुणकली लता मंगेशकर से फिल्म का एक गीत और संजीव अभ्यंकर से राग गुणकली में खयाल सुनिए संजीव अभ्यंकर लता मंगेशकर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। रागों को पूर्वांग और उत्तरांग में विभाजित करने के लिए सप्तक के सात स्वरों के साथ तार सप्तक के षडज स्वर को मिला कर आठ स्वरों के संयोजन को दो भागों में बाँट दिया जाता है। प्रथम भाग षडज से मध्यम तक पूर्वांग और दूसरे भाग पंचम से तार षडज तक उत्तरांग कहा जाता है। इसी प्रकार जो राग दिन के पहले भाग (पूर्वार्द्ध) अर्थात दिन के 12 बजे से रात्रि के 12 बजे के बीच में गाया-बजाया जाता हो उन्हें पूर्व राग और जो राग दिन के दूसरे भाग (उत्तरार्द्ध) अर्थात रात्रि 12 बजे से दिन के 12 बजे के बीच गाया-बजाया जाता हो उन्हें उत्तर राग कहा जाता है। भारतीय संगीत का यह नियम है कि जिन रागों में वादी

राग शिवरंजनी : SWARGOSHTHI – 361 : RAG SHIVARANJANI

स्वरगोष्ठी – 361 में आज पाँच स्वर के राग – 9 : “कहीं दीप जले कहीं दिल...” संजीव अभ्यंकर से राग शिवरंजनी में खयाल और लता मंगेशकर से फिल्मी गीत सुनिए लता मंगेशकर संजीव अभ्यंकर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला – “पाँच स्वर के राग” की नौवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनमें केवल पाँच स्वरों का प्रयोग होता है। भारतीय संगीत में रागों के गायन अथवा वादन की प्राचीन परम्परा है। संगीत के सिद्धान्तों के अनुसार राग की रचना स्वरों पर आधारित होती है। विद्वानों ने बाईस श्रुतियों में से सात शुद्ध अथवा प्राकृत स्वर, चार कोमल स्वर और एक तीव्र स्वर; अर्थात कुल बारह स्वरो में से कुछ स्वरों को संयोजित कर रागों की रचना की है। सात शुद्ध स्वर हैं; षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन स्वरों में से षडज और पंचम अचल स्वर माने जाते हैं। शेष में से ऋषभ, गान्धार, धैवत

भोर की लाली का आह्वान करते आठवें प्रहर के राग

स्वरगोष्ठी – 110 में आज राग और प्रहर – 8 / समापन कड़ी ‘देख वेख मन ललचाय...’ : सोहनी, भटियार, ललित और कलिंगड़ा रागों के रंग आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में उपस्थित हूँ। पिछली सात कड़ियों में हमने दिन और रात के सात प्रहरों में गाये-बजाये जाने वाले रागों पर चर्चा की है। आज इस श्रृंखला की समापन कड़ी है और इस कड़ी में हम आपसे आठवें प्रहर अर्थात रात्रि के चौथे प्रहर के कुछ रागों की चर्चा करेंगे। आठवाँ प्रहर रात्रि के लगभग तीन बजे से लेकर सूर्योदय की लाली फूटने तक की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में प्रस्तुत किये जाने वाले रागों में उजाले का आह्वान, रात की कालिमा व्यतीत होने की कामना और कुछ अलसाए भावों की अभिव्यक्ति होती है। श्रृंखला की समापन कड़ी में आज हम आपसे राग सोहनी, भटियार, ललित और कलिंगड़ा की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे।  आ ठवें प्रहर अर्थात रात्रि के अन्तिम प्रहर में गाये-बजाये जाने वाले रागों में आज सबसे पहले हम आपको र