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राग हंसध्वनि : SWARGOSHTHI – 418 : RAG HANSADHWANI

स्वरगोष्ठी – 418 में आज बिलावल थाट के राग – 6 : राग हंसध्वनि पण्डित रविशंकर से सितार पर राग हंसध्वनि की रचना और लता मंगेशकर और मन्ना डे से फिल्मी गीत सुनिए पण्डित रविशंकर लता मंगेशकर और मन्ना डे “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला “बिलावल थाट के राग” की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट, रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातख

"दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा..." - जानिए पोलैण्ड के उस गीत के बारे में भी जिससे इस गीत की धुन प्रेरित है

एक गीत सौ कहानियाँ - 70   'दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 70-वीं कड़ी में आज जानिए 1958 की फ़िल्म ’मधुमति’ के गीत "दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा..." के बारे में जिसे

प्रातःकाल के राग : SWARGOSHTHI – 232 : MORNING RAGA

स्वरगोष्ठी – 232 में आज रागों का समय प्रबन्धन – 1 : दिन के प्रथम प्रहर के राग ‘जग उजियारा छाए, मन का अँधेरा जाए...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हम एक नई श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ आरम्भ कर रहे हैं। श्रृंखला की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सू

स्वरगोष्ठी – 137 में आज : ‘मन रे हरि के गुण गा...’

  स्वरगोष्ठी – 137 में आज रागों में भक्तिरस – 5 ध्रुवपद अंग में राग भैरव का रंग ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे राग भैरव पर चर्चा करेंगे जो भक्तिरस की सृष्टि करने में सबसे उपयुक्त राग है। भारतीय संगीत के इस प्राचीनतम राग में आज हम आपको एक ध्रुवपद रचना सुनवाएँगे। साथ ही इस राग पर आधारित, 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘मुसाफिर’ से एक मधुर भक्तिगीत प्रस्तुत करेंगे।   इ स श्रृंखला के पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान भारतीय संगीत की परम्परा वैदिक काल से जुड़ी है। उस काल के उपलब्ध प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि तत्कालीन संगीत का स्वरूप धर्म और आध्यात्म से प्रभावित था। वैदि