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मध्यरात्रि बाद के राग : SWARGOSHTHI – 307 : RAGAS AFTER MIDNIGHT

स्वरगोष्ठी – 307 में आज राग और गाने-बजाने का समय – 7 : रात के तीसरे प्रहर के राग राग मालकौंस - “नन्द के छैला ढीठ लंगरवा...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला – “राग और गाने-बजाने का समय” की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं अथवा प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों के प्रयोग का एक निर्धारित समय होता है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दि

मध्यरात्रि बाद के राग : SWARGOSHTHI – 238 : RAGAS OF AFTER MIDNIGHT

स्वरगोष्ठी – 238 में आज रागों का समय प्रबन्धन – 7 : रात के तीसरे प्रहर के राग राग मालकौंस - “नन्द के छैला ढीठ लंगरवा...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं अथवा प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों के प्रयोग का एक निर्धारित समय होता है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दिन

‘झनक झनक पायल बाजे...’ : SWARGOSHTHI – 196 : RAG ADANA

स्वरगोष्ठी – 196 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 5 : राग अड़ाना फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ में उस्ताद अमीर खाँ ने गाया राग अड़ाना के स्वरों में यह गीत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के पाँचवें अंक में आज हम आपसे 1955 में प्रदर्शित, भारतीय फिल्म जगत की संगीत और नृत्य की प्रधानता वाली फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे’ के एक शीर्षक गीत- ‘झनक झनक पायल बाजे...’ पर चर्चा करेंगे। फिल्म के इस गीत में राग अड़ाना के स्वरों का ओजपूर्ण उपयोग किया गया है। भारतीय संगीत के उल्लेखनीय स्वरसाधक उस्ताद अमीर खाँ ने इस गीत को स्वर दिया है। खाँ साहब और पण्डित दत्

‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : SWARGOSHTHI – 187 : THUMARI BHAIRAVI, KHAMAJ AND ADANA

स्वरगोष्ठी – 187 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 6 : ठुमरी भैरवी, खमाज और अड़ाना लता जी के जन्मदिन पर शुभकामनाओं सहित समर्पित है उन्हीं की गायी ठुमरी  ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी साथी प्रस्तुतकर्त्ता संज्ञा टण्डन के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का अभिनन्दन करता हूँ। आज ‘भारतरत्न’ की उपाधि से अलंकृत, विश्वविख्यात कोकिलकंठी गायिका लता मंगेशकर की 85वीं वर्षगाँठ है। इस अवसर पर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ परिवार अपने हजारों पाठकों और श्रोताओं के साथ लता जी का हार्दिक अभिनन्दन करता है। इन दिनों हमारी जारी श्रृंखला 'फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के छठे अंक में आज हमने एक ऐसी पारम्परिक ठुमरी का चयन किया है, जिसके पारम्परिक स्वरूप को अपने समय की सुविख्यात गायिकाओं- रसूलन बाई और रोशनआरा बेगम ने स्वर दिया है, तो इसी ठुमरी के परिमार्जित फिल्मी संस्करण को लता मंगेशकर ने अनूठे अंदाज से प्रस्तुत किया ह