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एक गीत सौ अफ़साने || एपिसोड 02 || छोटी सी कहानी से

  एक गीत सौ अफ़साने की दूसरी कड़ी में आज चर्चा फिल्म "इजाजत" के लाजवाब गीत "छोटी सी कहानी से" की  Ek Geet Sau Afsane explores the interesting unknown and unheard back stories of a Song. Every song has its own journey, and every new episode of this program is an attempt to understand the process behind making a song. with program head Sangya Tandon, her dedicated team of podcasters are here to tell these insightful stories that went behind in the process of making a song, enjoy. आप हमारे इस पॉडकास्ट को इन पॉडकास्ट साईटस पर भी सुन सकते हैं  Spotify Amazon music   Google Podcasts Apple Podcasts Gaana JioSaavn हम से जुड़ सकते हैं - facebook  instagram  YouTube  Hope you like this initiative, give us your feedback on radioplaybackdotin@gmail.com

चित्रकथा - 55: फ़िल्म जगत के दो महान गिटार वादकों का निधन

अंक - 55 फ़िल्म जगत के दो महान गिटार वादकों का निधन गोरख शर्मा और भानु गुप्त रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! स्वागत है आप सभी का ’चित्रकथा’ स्तंभ में। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें हम लेकर आते हैं सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े विषय। श्रद्धांजलि, साक्षात्कार, समीक्षा, तथा सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर शोधालेखों से सुसज्जित इस साप्ताहिक स्तंभ की आज 55-वीं कड़ी है। 26 और 27 जनवरी 2018 को फ़िल्म जगत के दो सुप्रसिद्ध गिटार वादकों का निधन हो गया। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के प्यारेलाल के भाई गोरख शर्मा के 26 जनवरी को और राहुल देव बर्मन टीम के भानु गुप्त के 27 जनवरी को निधन हो जाने से फ़िल्म-संगीत जगत के दो चमकते सितारे हमेशा के लिए डूब गए। भले हम इन दोनों कलाकारों को मुख्य रूप से फ़िल्मी गीतों में उनके गिटार के टुकड़ों से जानते हैं, लेक

चित्रकथा - 53: पंचम के दो महारथियों का निधन

अंक - 53 पंचम के दो संगीत महारथियों का निधन पंडित उल्हास बापट और अमृतराव काटकर  रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! स्वागत है आप सभी का ’चित्रकथा’ स्तंभ में। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें हम लेकर आते हैं सिनेमा और सिनेमा-संगीत से जुड़े विषय। श्रद्धांजलि, साक्षात्कार, समीक्षा, तथा सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर शोधालेखों से सुसज्जित इस साप्ताहिक स्तंभ की आज 53-वीं कड़ी है। 4 जनवरी 2018 को सुप्रसिद्ध संतूर वादक पंडित उल्हास बापट और 15 जनवरी 2018 को फ़िल्मी गीतों में रेसो रेसो वाद्य के भीष्म पितामह व जाने-माने संगीत संयोजक व वादक श्री अमृतराव काटकर का निधन हो गया। संयोग की बात है कि इन दोनों संगीत महारथियों ने संगीतकार राहुल देव बर्मन के साथ लम्बा सफ़र तय किया, और उससे भी आश्चर्य की बात यह है कि 4 जनवरी को राहुल देव बर्मन की भी पुण्यतिथि है। इस दु

फिल्मी चक्र समीर गोस्वामी के साथ || एपिसोड 17 || मन्ना डे

Filmy Chakra With Sameer Goswami  Episode 17 Manna Dey फ़िल्मी चक्र कार्यक्रम में आप सुनते हैं मशहूर फिल्म और संगीत से जुडी शख्सियतों के जीवन और फ़िल्मी सफ़र से जुडी दिलचस्प कहानियां समीर गोस्वामी के साथ, लीजिये आज इस कार्यक्रम के 17 वें एपिसोड में सुनिए कहानी मन्ना डे की...प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... 1 फिल्मी चक्र में सुनिए इन महान कलाकारों के सफ़र की कहानियां भी - किशोर कुमार शैलेन्द्र  संजीव कुमार  आनंद बक्षी सलिल चौधरी  नूतन  हृषिकेश मुखर्जी  मजरूह सुल्तानपुरी साधना  एस डी बर्मन राजेंद्र कुमार  शकील बदायुनी  जयकिशन गीता दत्त  चित्रगुप्त  आर डी बर्मन 

फिल्मी चक्र समीर गोस्वामी के साथ || एपिसोड 16 || आर डी बर्मन

Filmy Chakra With Sameer Goswami  Episode 16 R D Burman फ़िल्मी चक्र कार्यक्रम में आप सुनते हैं मशहूर फिल्म और संगीत से जुडी शख्सियतों के जीवन और फ़िल्मी सफ़र से जुडी दिलचस्प कहानियां समीर गोस्वामी के साथ, लीजिये आज इस कार्यक्रम के 16 वें एपिसोड में सुनिए कहानी पंचम यानी आर डी बर्मन की...प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... फिल्मी चक्र में सुनिए इन महान कलाकारों के सफ़र की कहानियां भी - किशोर कुमार शैलेन्द्र  संजीव कुमार  आनंद बक्षी सलिल चौधरी  नूतन  हृषिकेश मुखर्जी  मजरूह सुल्तानपुरी साधना  एस डी बर्मन राजेंद्र कुमार  शकील बदायुनी  जयकिशन गीता दत्त  चित्रगुप्त 

पंचम के रंग में रंगी है आज की 'सिने पहेली'

5 जनवरी, 2013 सिने-पहेली - 53  में आज   पहचानिये पंचम  के कुछ गीतों को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। दोस्तों, इन दिनों समूचे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। कई जगहों पर न्यूनतम तापमान 2 डिग्री तक पहुँच गया है। इस मौसम में छुट्टी का दिन हो, हाथ में गरम चाय का प्याला हो, सामने प्लेट पर गरमागरम पकौड़े हों, और सामने कम्प्यूटर स्क्रीन पर ताज़ी 'सिने पहेली' का पेज खुला हो तो भई क्या बात है, नहीं? ख़ैर,  छठे सेगमेण्ट की पहली कड़ी में प्रतियोगियों की भागीदारी में जो कमी आई थी, पिछली कड़ी में उसमें कुछ बढ़ौत्री हुई है, और हम यह आशा करते हैं कि आने वाले सप्ताहों में यह फिर से अपनी पूराने शक्ल में आ जायेगी। बढ़ते हैं आज की पहेली की ओर।. दोस्तों, कल यानी 4 जनवरी को संगीतकार राहुल देव बर्मन के याद का दिन था। राहुल देव बर्मन, या पंचम, का नाम क्रान्तिकारी संगीतकार के रूप में लिया जाता है। पाँच चिन्हित क्रान्तिकारी संगीतकारों के बाकी चार नाम हैं मास्टर गुलाम

छोटी सी कहानी से, बारिशों के पानी से - 'एक गीत सौ कहानियाँ' की पहली कड़ी में यादें पंचम के इस कालजयी गीत की

गुलज़ार हमेशा कहते थे कि पिक्चराइज़ करने के लिए उन्हें उस वक़्त कम्पोज़र के साथ बैठना बहुत ज़रूरी है जब गाना कम्पोज़ हो रहा हो वरना वो पिक्चराइज़ नहीं कर पाते। उन्हें इमेजेस मिलते हैं जब गाना कम्पोज़ हो रहा होता है। पर पंचम नें चाल चली और गुलज़ार के साथ बैठ कर इस गीत को कम्पोज़ करने से इन्कार कर दिया।

फिर किसी शाख ने फेंकी छाँव....और "बहुत देर तक" महकती रही तनहाईयाँ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 719/2011/159 'ए ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहने वालों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! जैसा कि इन दिनों इस स्तंभ में आप आनंद ले रहे हैं सजीव सारथी की लिखी कविताओं और उन कविताओं पर आधारित फ़िल्मी रचनाओं की लघु शृंखला ' एक पल की उम्र लेकर ' में। आज नवी कड़ी के लिए हमने चुनी है कविता ' बहुत देर तक '। बहुत देर तक यूँ ही तकता रहा मैं परिंदों के उड़ते हुए काफ़िलों को बहुत देर तक यूँ ही सुनता रहा मैं सरकते हुए वक़्त की आहटों को बहुत देर तक डाल के सूखे पत्ते भरते रहे रंग आँखों में मेरे बहुत देर तक शाम की डूबी किरणें मिटाती रही ज़िंदगी के अंधेरे बहुत देर तक मेरा माँझी मुझको बचाता रहा भँवर से उलझनों की बहुत देर तक वो उदासी को थामे बैठा रहा दहलीज़ पे धड़कनों की बहुत देर तक उसके जाने के बाद भी ओढ़े रहा मैं उसकी परछाई को बहुत देर तक उसके अहसास ने सहारा दिया मेरी तन्हाई को। इस कविता में कवि के अंदर की तन्हाई, उसके अकेलेपन का पता चलता है। कभी कभी ज़िंदगी यूं करवट लेती है कि जब हमारा साथी हमसे बिछड़ जाता है। हम लाख कोशिश करें उसके दामन को अपनी ओर खींचे

कतरा कतरा मिलती है.....खुशी और दर्द के तमाम फूलों को समेट लेता है "वो" आकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 717/2011/157 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय और सजीव का प्यार भरा नमस्कार! आज इस सुरीली महफ़िल की शमा जलाते हुए पेश कर रहे हैं सजीव सारथी की लिखी कविता ' वो '। लघु शृंखला ' एक पल की उम्र लेकर ' की यह है सातवीं कड़ी। समय की पृष्ठभूमि पर बदलते रहे चित्र कुछ चेहरे बने कुछ बुझ गए कुछ कदम साथ चले कुछ खो गए पर वो उसकी ख़ुशबू रही साथ सदा उसका साया साथ चला मेरे हमेशा टूटा कभी जब हौंसला और छूटे सारे सहारे उन थके से लम्हों में डूबी-डूबी तन्हाइयों में वो पास आकर ज़ख़्मों को सहलाता रहा उसके कंधों पर रखता हूँ सर तो बहने लगता है सारा गुबार आँखों से वो समेट लेता है मेरे सारे आँसू अपने दामन में फिर प्यार से काँधे पर रख कर हाथ कहता है - अभी हारना नहीं अभी हारना नहीं मगर उसकी उन नूर भरी चमकती मुस्कुराती आँखों में मैं देख लेता हूँ अपने दर्द का एक झिलमिलाता-सा कतरा। इसमें कोई शक़ नहीं कि उस एक इंसान की आँखों में ही अपनी परछाई दिखती है, अपना दर्द बस उसी की आँखों से बहता है। जिस झिलमिलाते कतरे की बात कवि नें उपर कविता की अंतिम पंक्ति में

क्या जानूँ सजन होती है क्या गम की शाम....जब जल उठे हों मजरूह के गीतों के दिए तो गम कैसा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 667/2011/107 फ़ि ल्म-संगीत इतिहास के सुप्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया' की सातवीं कड़ी में एक ऐसे संगीतकार की रचना लेकर आज हम उपस्थित हुए हैं जिस संगीतकार के साथ भी मजरूह साहब नें एक सफल और बहुत लम्बी पारी खेली है। आप हैं राहुल देव बर्मन। इन दोनों के साथ की बात बताने से पहले यह बताना ज़रूरी है कि इस जोड़ी को मिलवाने में फ़िल्मकार नासिर हुसैन की मुख्य भूमिका रही है। वैसे कहीं कहीं यह भी सुनने/पढ़ने में आता है कि मजरूह साहब नें पंचम की मुलाक़ात नासिर साहब से करवाई। उधर ऐसा भी कहा जाता है कि साहिर लुधियानवी नें नासिर साहब की आलोचना की थी उनकी व्यावसायिक फ़िल्में बनाने के अंदाज़ की। नासिर साहब नाराज़ होकर साहिर साहब से यह कह कर मुंह मोड़ लिया कि साहिर साहब चाहते हैं कि हर निर्देशक गुरु दत्त बनें। नासिर हुसैन को अपना स्टाइल पसंद था, जिसमें वो कामयाब भी थे, तो फिर किसी और फ़िल्मकार के नक्श-ए-क़दम पर क्यों चलना! और इस तरह से मजरूह बन गये नासिर हुसैन की पहली पसंद और उन्होंने मजरूह साहब से

क्या गजब करते हो जी, प्यार से डरते हो जी....मगर जनाब हँसना कभी नहीं छोडना रोने के डर से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 659/2011/99 'गा न और मुस्कान' शृंखला में अब तक आपने आठ गीत सुनें जिनके भाव अलग अलग थे, लेकिन जो एक बात उनमें समान थी, वह यह कि हर गीत में किसी न किसी बात पर गायक की हँसी सुनाई दी। आज के अंक के लिए हमने जिस गीत को चुना है, उसमें भी हँसी तो है ही, लेकिन यह हँसी थोड़ी मादकता लिये हुए है। एक सेनशुअस नंबर, एक सिड्युसिंग् नंबर, और इस तरह के गीतों को आशा जी किस तरह का अंजाम देती हैं, इससे आप भली-भाँति वाकिफ़ होंगे। जी हाँ, आज आशा भोसले की मादक आवाज़ में सुनिए १९८१ की फ़िल्म 'लव स्टोरी' से "क्या ग़ज़ब करते हो जी, प्यार से डरते हो जी, डर के तुम और हसीन लगते हो जी"। युं तो फ़िल्म के नायक-नायिका हैं कुमार गौरव और विजेता पंडित, लेकिन यह गीत फ़िल्माया गया है अरुणा इरानी पर, जो नायक कुमार गौरव को अपनी तरफ़ आकर्षित करना चाह रही है, लेकिन नायक साहब कुछ ज़्यादा इंटरेस्टेड नहीं लगते। उस पर नायिका विजेता भी तो पर्दे के पीछे से यह सब कुछ देख रही है, और कुमार गौरव भी उसे देखते हुए देखता है, लेकिन अरुणा इरानी इससे बेख़बर है। इस गीत में आशा जी की शरारती हँसी

बोलिए सुरीली बोलियाँ...और पिरोते रहिये हँसी की लड़ियाँ हर पल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 656/2011/96 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज रविवार, यानी छुट्टी का दिन, आप सभी नें अपने अपने परिवार के साथ हँसी-ख़ुशी बिताया होगा। हँसी-ख़ुशी से याद आया कि इन दिनों इस स्तंभ में जारी है लघु शृंखला 'गान और मुस्कान', जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गायक/गायिका की हँसी सुनाई देती है। आज आप सुनेंगे गायिका-अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित की हँसी। सिंगिंग् सुपरस्टार्स की श्रेणी में सुलक्षणा पंडित और सलमा आग़ा दो ऐसे नाम हैं जिनके बाद इस श्रेणी को पूर्णविराम सा लग गया है। ख़ैर, आज जिस गीत को लेकर हम उपस्थित हुए हैं वह है फ़िल्म 'गृहप्रवेश' का - "बोलिये सुरीली बोलियाँ"। भूपेन्द्र और सुलक्षणा पंडित की आवाज़ों में यह शास्त्रीय संगीत पर आधारित रचना है राग बिहाग पर आधारित, लेकिन इसमें हास्य का भी पुट है। अब जिस गीत के मुखड़े के ही बोल हैं "नमकीन आँखों की रसीली गोलियाँ", उसमें हास्य तो होगा ही न! और "नमकीन आँखों की रसीली गोलियाँ" कहने वाले गीतकार गुलज़ार साहब के अलावा भला और कौन हो सकता है! बासु भट्टाचार्य नि

एक बात कहूँ गर मानो तुम.....हमेशा हँसते हंसाते रहिये इसी तरह

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 653/2011/93 गा यक गायिकाओं की हँसी इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला 'गान और मुस्कान' के अंतर्गत। आज बारी लता मंगेशकर की हँसी सुनने की। कल का जो गीत था उसमें चुपके से सपने में आने की बात कही गई थी और आज जो गीत लेकर हम आये हैं, उसका भी भाव कुछ कुछ इसी तरह का है। नायिका शिकायत कर रही है कि नायक उनके सपनों में आते हैं जिस वजह से कभी वो नींद में उठकर चलती है तो कभी सोफ़े से गिर पड़ती है, तो कभी नायक का हाथ समझ कर सोफ़े का पाया ही पकड़ लेती है। जी हाँ, फ़िल्म 'गोलमाल' का यह गीत है "एक बात कहूँ गर मानो तुम, सपनों में न आना जानो तुम, मैं नींद में उठके चलती हूँ, जब देखती हूँ सच मानो तुम"। गुलज़ार और पंचम की जोड़ी का कमाल। वैसे इस गीत की तरफ़ लोगों का ध्यान ज़रा कम कम ही रहा है। 'गोलमाल' के नाम से लोग ज़्यादा "आने वाला पल जाने वाला है" को ही याद करते हैं। लेकिन गुणवत्ता में यह गीत भी कुछ कम नहीं है। इसमें गुलज़ार साहब नें बड़े ही सीधे बोलचाल जैसी भाषा का इस्तमाल करते हुए हास्य रस में डूबो डूबो कर