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राग भैरवी : SWARGOSHTHI – 385 : RAG BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 385 में आज राग से रोगोपचार – 14 : सदा-सुहागिन राग भैरवी अस्वाभाविक शारीरिक और मानसिक समस्याओं से मुक्ति दिलाता है यह राग विदुषी परवीन सुल्ताना पण्डित भीमसेन जोशी ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की चौदहवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, इस श्रृंखला के लेखक, संगीतज्ञ और इसराज तथा मयूरवीणा के सुविख्यात वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मानव का शरीर प्रकृति की अनुपम देन है। बाहरी वातावरण के प्रतिकूल प्रभाव से मानव के तन और मन में प्रायः कुछ विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इन विकृतियों को दूर करने के लिए हम विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों की शरण में जाते हैं। पूरे विश्व में रोगोपचार की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित है। भारत में हजारों वर्षों से योग से रोगोपचार की परम्परा जारी है। प्राणायाम का तो पूरा आधार ही श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होता है। संगीत में स्वरोच्चार भी श्वसन क्रिया पर केन्द्रित होते हैं। भारतीय संगीत

ठुमरी खमाज और पहाड़ी : SWARGOSHTHI – 337 : THUMARI KHAMAJ & PAHADI

स्वरगोष्ठी – 337 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 4 : ठुमरी खमाज और पहाड़ी “कौन गली गयो श्याम...” - श्रृंगार और भक्ति का अनूठा समागम है इस ठुमरी में डॉ. प्रभा  अत्रे परवीन सुल्ताना ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप्र

राग पहाड़ी : SWARGOSHTHI – 325 : RAG PAHADI

स्वरगोष्ठी – 325 में आज संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन – 11 : राग पहाड़ी रोशन की जन्मशती पर उनकी स्मृतियों को शताधिक नमन ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की जारी श्रृंखला “संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन” की ग्यारहवीं और समापन कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस सप्ताह की 14 जुलाई 2017 को संगीतकार रोशन की जन्मशती पूर्ण हो तही है। यह श्रृंखला हमने इसीलिए रोशन की स्मृतियों को समर्पित की है। मित्रों, इस श्रृंखला में हम फिल्म जगत में 1948 से लेकर 1967 तक सक्रिय रहे संगीतकार रोशन के राग आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। रोशन ने भारतीय फिल्मों में हर प्रकार का संगीत दिया है, किन्तु राग आधारित गीत और कव्वालियों को स्वरबद्ध करने में उन्हें विशिष्टता प्राप्त थी। भारतीय फिल्मों में राग आधारित गीतों को स्वरबद्ध करने में संगीतकार नौशाद और मदन मोहन के साथ रोशन का नाम भी चर्चित है। इस श्रृंखला में हम आपको संगीतकार रोशन के स्वरबद्ध किये राग आधारित गीतों में से कुछ गीतों को चुन कर सुनवाया और इ

राग काफी : SWARGOSHTHI – 309 : RAG KAFI

स्वरगोष्ठी – 309 में आज फागुन के रंग – 1 : राग काफी गाने-बजाने का परिवेश विदुषी परवीन सुलताना से सुनिए -‘कैसी करी बरजोरी श्याम, देखो बहियाँ मोरी मरोरी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की एक नई श्रृंखला “फागुन के रंग” के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर चर्चा करेंगे। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। पिछले सप्ताह ही हमने हर्षोल्लास से होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया है। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से होली के रस-रंग को अभिव्यक्त करने के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। आज के अंक में हम पहले इस राग

राग पहाड़ी : SWARGOSHTHI – 273 : RAG PAHADI

स्वरगोष्ठी – 273 में आज मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 6 : पहली फिल्म का पहला राग आधारित गीत ‘मोरी अटरिया पे कागा बोले...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ जारी है। श्रृंखला की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की छठी कड़ी में आज हम आपको राग पहाड़ी के स्वरों में पिरोये गए 1950 में प्रदर्शित फिल्म ‘आँखें’ के एक गीत का रसास्वादन कराएँगे। इस राग आधारित गीत को स्वर दिया है, तत्कालीन पार्श्वगायिका मीना कपूर ने। सं