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खासी तिंग्या का खास अंदाज़ लिए तन्हा राहों में कुछ ढूँढने निकले हैं गुमशुदा बिक्रम घोष और राकेश तिवारी

ताज़ा सुर ताल ३६/२०१० विश्व दीपक - 'ताज़ा सुर ताल' में आप सभी का फिर एक बार बहुत बहुत स्वागत है! पिछले हफ़्ते हमने एक ऒफ़बीट फ़िल्म 'माधोलाल कीप वाकिंग्‍' के गानें सुने थे, और आज भी हम एक ऒफ़बीट फ़िल्म लेकर हाज़िर हुए हैं। इस फ़िल्म के भी प्रोमो टीवी पर दिखाई नहीं दिए और कहीं से इसकी चर्चा सुनाई नहीं दी। यह फ़िल्म है 'गुमशुदा'। सुजॊय - अपने शीर्षक की तरह ही यह फ़िल्म गुमशुदा-सी ही लगती है। सुना है कि यह एक मर्डर मिस्ट्री की कहानी पर बनी फ़िल्म है जिसका निर्माण किया है सुधीर डी. आहुजा ने और निर्देशक हैं अशोक विश्वनाथन। फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं रजत कपूर, विक्टर बनर्जी, सिमोन सिंह, राज ज़ुत्शी और प्रियांशु चटर्जी। फ़िल्म में संगीत है बिक्रम घोष का और गानें लिखे हैं राकेश त्रिपाठी ने। विश्व दीपक - सुजॊय जी, ये बिक्रम घोष कहीं वही बिक्रम घोष तो नहीं हैं जो एक नामचीन तबला वादक हैं और जिनका फ़्युज़न संगीत में भी दबदबा रहा है? सुजॊय - जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक पहचाना, और आपको यह भी बता दूँ कि बिक्रम के पिता हैं पंडित शंकर घोष जो एक जानेमाने तबला वादक रहे हैं जिन्हो

पीपरा के पतवा सरीके डोले मनवा...मिटटी की सौंधी सौंधी महक लिए "गोदान" का ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 376/2010/76 '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला की छठी कड़ी में हमने आज एक ऐसी फ़िल्म के गीत को चुना है जिसकी कहानी एक ऐसे साहित्यकार ने लिखी थी जिनका नाम हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। मुंशी प्रेमचंद, जिनकी बहुचर्चित उपन्यास 'गोदान' हिंदी साहित्य के धरोहर का एक अनमोल नगीना है। 'गोदान' की कहानी गाँव में बसे एक किसान होरी और उसके परिवार की मर्मस्पर्शी कहानी है कि किस तरह से समाज उन पर एक के बाद एक ज़ुल्म ढाते हैं और किस तरह से वो हर मुसीबत का सामना करते हैं। सेल्युलॊयड के पर्दे पर 'गोदान' को जीवंत किया था निर्देशक त्रिलोक जेटली के साथ साथ अभिनेता राज कुमार, शशिकला, महमूद, शुभा खोटे, मदन पुरी, टुनटुन और कामिनी कौशल ने। फ़िल्म में संगीत था पंडित रविशंकर का और गीत लिखे शैलेन्द्र और अंजान ने। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि युं तो अंजान ने फ़िल्म जगत में १९५३ में ही क़दम रख दिया था 'प्रिज़नर्स ऒफ़ गोलकोण्डा' नामक फ़िल्म से, लेकिन उसके बाद कई सालों तक उनकी झोली में कम बजट की फ़िल्में ही आती रहीं जिसकी वजह से

कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया....पंडित रवि शंकर और शैलेन्द्र की जुगलबंदी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 299 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं शरद तैलंग जी के पसंद के पाँच गानें बिल्कुल बैक टू बैक। आज है उनके चुने हुए चौथे गाने की बारी। फ़िल्म 'अनुराधा' से यह है लता जी का गाया "कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया, पिया जाने ना"। इस फ़िल्म का एक गीत हमने 'दस राग दस रंग' शृंखला के दौरान आपको सुनवाया था। याद है ना आपको राग जनसम्मोहिनी पर आधारित गीत " हाए रे वो दिन क्यों ना आए "? फ़िल्म 'अनुराधा' के संगीतकार थे सुविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर, जिन्होने इस फ़िल्म के सभी गीतों में शास्त्रीय संगीत की वो छटा बिखेरी कि हर गीत लाजवाब है, उत्कृष्ट है। इस फ़िल्म में उन्होने राग मंज खमाज को आधार बनाकर दो गानें बनाए। एक है "जाने कैसे सपनों में खो गई अखियाँ" और दूसरा गीत है "कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया", और यही दूसरा गीत पसंद है शरद जी का। शैलेन्द्र की गीत रचना है और लता जी की सुरीली आवाज़। वैसे हम इस फ़िल्म के बारे में सब कुछ "हाए रे वो दिन..." गीत के वक़्त ही बता चुके हैं। यहाँ तक कि फ

हाय रे वो दिन क्यों न आये....ओल्ड इस गोल्ड पर पहली बार पंडित रविशंकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 230 'द स राग दस रंग' शृंखला मे पिछले नौ दिनों में आप ने सुने नौ अलग अलग शास्त्रीय रागों पर आधारित कुछ बेहतरीन फ़िल्मी रचनाएँ। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में हम आप को सम्मोहित करने के लिए लेकर आए हैं राग जनसम्मोहिनी, जिसे शुभ कल्याण भी कहा जाता है। सुविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर आधुनिक काल के ऐसे संगीत साधक हैं जिन्होने ख़ुद कई रागों का विकास किया, नए नए प्रयोग कर नए रागों का इजाद किया। राग जनसम्मोहिनी उन्ही का पुनराविष्कार है। दोस्तों, एक बार ज़ी टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम 'सा रे गा मा पा' में एक प्रतिभागी ने फ़िल्म 'अनुराधा' का एक गीत गाते वक़्त उसके राग को कलावती बताया था, जिसे सुधारते हुए जज बने ख़ुद पंडित रविशंकर ने बताया कि दरअसल यह राग कलावती नहीं बल्कि जनसम्मोहिनी है। जब पंडित जी ने यह राग बजाया था तब उन्हे मालूम नहीं था कि इसे क्या कहा जाता है। जब इसका उल्लेख कहीं नहीं मिला तो वो इसे अपने नाम पर रवि कल्याण या कुछ और रख सकते थे, जैसे कि तानसेन के नाम पर है मिया की तोड़ी और मिया की मल्हार। पंडित रविशंकर ने और ज़्यादा शोध किया औ

अरे दिल है तेरे पंजे में तो क्या हुआ....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 02 ओल्ड इस गोल्ड आवाज़ का एक ऐसा स्तम्भ है जिसमें हम आपको फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर से चुनकर एक लोकप्रिय गीत सुनवाते हैं और साथ ही साथ उस गीत की चर्चा भी करते हैं उपलब्ध तथ्यों के आधार पर. आज हमने इस स्तम्भ के लिए जिस गीत को चुना है उस गीत को सुनकर न केवल आप मुस्कुरायेंगें बल्कि आपके कदम थिरकने भी लगेंगे. १९५८ में एक फ़िल्म आई थी-"दिल्ली का ठग" और इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में थे किशोर कुमार और नूतन. इस फ़िल्म में किशोर कुमार और आशा भोंसले का गाया एक ऐसा गीत है जो अपने आप में एक ही है, और ऐसा गीत फ़िर उसके बाद कभी नही बन पाया. जब किशोर दा के सामने हास्य गीत गाने की बारी आती है, तो जैसे उनका अंदाज़ ही बदल जाता है. संगीतकार चाहे जैसी भी धुन बनाये, किशोर दा उस पर अपने अंदाज़ की ऐसी छाप छोड़ देते हैं की वो गीत सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्ही का बन कर रह जाता है. ऐसा ही है ये गीत भी जिसे आज हम आपको सुनवाने जा रहे हैं. फ़िल्म की सिचुअशन ये है कि नूतन, किशोर कुमार को अंग्रेजी की "वोक्युबलरी" सिखा रही हैं. इस सिचुअशन पर जब गीत बनाने का सोचा गया तब तब गीत

बिल्लू को कहना नही कोई हज्ज़ाम...

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (11) नामांकन में आना भी एक उपलब्धि है - पंडित रवि शंकर ग्रैमी पुरस्कार विजेता उस्ताद जाकिर हुसैन को बधाई देने वालों में तीन बार ग्रैमी हुए पंडित रवि शंकर भी हैं. एक ताज़ा इंटरव्यू में पंडित जी ने कहा-"विश्व मोहन भट्ट को जब ग्रैमी मिला तब इस बाबत मीडिया में जग्रता आयी. मेरे पहले दो सम्मानों के बारे में तो मुझे भी ख़बर नही लगी देशवासियों की बात तो दूर है. कई बार जूरी के सदस्यों के वोट न मिल पाने के कारण कोई अच्छा संगीतकार विजयी होने से रह जाता है पर इससे उसके संगीत की महत्ता कम नही होती, मेरा मानना है कि नामांकन में आना भी एक बड़े सम्मान की बात है. मुझे दुःख है कि लक्ष्मी शंकर ग्रैमी नही जीत पायी, वे बेहद प्रतिभाशाली हैं.पर खुशी इस बात की है कि जाकिर ने इसे जीता." गौरतलब है कि मोहन वीणा वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट भी पंडित रवि शंकर जी के ही शिष्य हैं. भारत रत्न पंडित रवि शंकर ऐ आर रहमान को भी बधाई देना नही भूले-"मैं हिन्दी फ़िल्म संगीतकारों का सालों से प्रशंसक रहा हूँ, सी रामचंद्र, सलिल चौधरी, एस डी और आर डी बर्मन, इल्ल्याराजा और अब ऐ आर रहमान जो न

रहमान के बाद अब बाज़ी मारी उस्ताद जाकिर हुसैन ने भी...

भारतीय संगीत की थाप विश्व पटल पर सुनाई दे रही है, लॉस एन्जेलेंस और लन्दन में भारत के दो संगीत महारथियों ने अपने अन्य प्रतियोगियों पर विजय पाते हुए शीर्ष पुरस्कारों पर कब्जा जमाया. जहाँ चार अन्य प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए रहमान ने एक बार फ़िर "स्लम डोग मिलिनिअर" के लिए बाफ्टा (ब्रिटिश एकेडमी ऑफ़ फ़िल्म एंड टेलिविज़न आर्ट) जीता तो वहीँ तबला उस्ताद जाकिर हुसैन ने दूसरी बार ग्रैमी पुरस्कार जिसे संगीत का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है, पर अपनी विजयी मोहर लगायी.जाकिर ने अपनी एल्बम "ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट" के लिए कंटेम्पररी वर्ल्ड म्यूजिक अल्बम श्रेणी में ये पुरस्कार जीता. गोल्डन ड्रम प्रोजेक्ट में हुसैन ने रॉक बैंड "ग्रेटफुल डेड" के मिकी हार्ट के साथ जुगलबंदी की है और उनका साथ दिया नईजीरियन पर्काशानिस्ट सिकिरू एडेपोजू और जैज़ पर्काशानिस्ट प्युरेटो रिकोन ने. ये इस समूह का और ख़ुद हुसैन का दूसरा ग्रैमी है. पहली बार भी १९९१ में उन्होंने मिकी हार्ट ही के साथ टीम अप कर "प्लेनट ड्रम" नाम का एल्बम किया था जिसे १९९२ में ग्रैमी सम्मान हासिल हुआ था. दूसरी तरफ़

जब मुझे विचित्र वीणा वादन हेतु मिला आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी का आशीर्वाद

( पहले अंक से आगे...) शाम के यही कोई आठ बजे का समय था, बनारस में गंगा मैया झूम झूम कर बह रही थी और कई युवा संगीत कलाकारों को शब्द, स्वर और लय की सरिता में खो जाने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी, नगर के एक सभागार में 'आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता' के विजेताओ का संगीत प्रदर्शन हो रहा था, मैं मंच पर विचित्र वीणा लेकर बैठी, श्रोताओं की पहली पंक्ति में ही श्रद्धेय स्वर्गीय किशन महाराज जी को देखा और दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्कार किया, तत्पश्चात वीणा वादन शुरू किया, जैसे ही वादन समाप्त समाप्त हुआ, आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी मंच पर आए, अपना हाथ मेरे सर पर रखा और कहा "अच्छा बजा रही हो, खूब बजाओ "। उनका यह आशीर्वाद और फ़िर उनके हाथ से स्वर्ण पदक पाकर मेरी संगीत साधना सफल हो गई, जीवन का वह क्षण मेरे लिए अविस्मर्णीय हैं । कई बार कई संगीत समारोह में उनका तबला सुनने का अवसर भी मुझे प्राप्त हुआ, उनका तबला चतुर्मिखी था, तबले की सारी बातें उसमे शामिल थी, लव और स्याही का वे सूझबूझ से प्रयोग करते थे, उनके उठान, कायदे रेलों और परनो की विशिष्ट पहचान थी । उन्होंने तबले में गणित के