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राग भटियार : SWARGOSHTHI - 454 : RAG BHATIYAR

स्वरगोष्ठी – 454 में आज मारवा थाट के राग - 3 : राग भटियार पं. रविशंकर से सितार पर भटियार की दो रचनाएँ और पं. राजन मिश्र व एस. जानकी से फिल्मी गीत सुनिए पण्डित रविशंकर पण्डित राजन मिश्र “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई श्रृंखला “मारवा थाट के राग” की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र अर्थात कुल बारह स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए इन बारह स्वरों में से कम से कम पाँच का होना आवश्यक होता है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के बारह में से मुख्य सात स्वरों के क्रमानुसार उस समुदाय को थाट कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न होते हों। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रच

राग भैरवी और मालकौंस : SWARGOSHTHI – 371 : RAG BHAIRAVI & MALKAUNS

स्वरगोष्ठी – 371 में आज दस थाट, बीस राग और बीस गीत – 10 : भैरवी थाट पं. भीमसेन जोशी से राग भैरवी में खयाल और पं. राजन मिश्र से फिल्म संगीत की रचना सुनिए पण्डित भीमसेन जोशी पण्डित राजन मिश्र ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘दस थाट, बीस राग और बीस गीत’ की दसवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित व

राग कलावती : SWARGOSHTHI – 360 : RAG KALAVATI

स्वरगोष्ठी – 360 में आज पाँच स्वर के राग – 8 : “मैका पिया बुलावे अपने मन्दिरवा...” विदुषी गंगूबाई हंगल से राग कलावती की बन्दिश और लता मंगेशकर व सुरेश वाडकर से फिल्म का गीत सुनिए विदुषी गंगूबाई हंगल सुरेश वाडकर और लता मंगेशकर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला – “पाँच स्वर के राग” की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनमें केवल पाँच स्वरों का प्रयोग होता है। भारतीय संगीत में रागों के गायन अथवा वादन की प्राचीन परम्परा है। संगीत के सिद्धान्तों के अनुसार राग की रचना स्वरों पर आधारित होती है। विद्वानों ने बाईस श्रुतियों में से सात शुद्ध अथवा प्राकृत स्वर, चार कोमल स्वर और एक तीव्र स्वर; अर्थात कुल बारह स्वरो में से कुछ स्वरों को संयोजित कर रागों की रचना की है। सात शुद्ध स्वर हैं; षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन स्वरों में से षडज और पंचम अचल स्वर मान

राग भटियार : SWARGOSHTHI – 260 : RAG BHATIYAR

स्वरगोष्ठी – 260 में आज दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 8 : राग भटियार पण्डित रविशंकर और पण्डित राजन मिश्र का भटियार ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर्शक स

भैरवी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 223 : BHAIRAVI THAAT

स्वरगोष्ठी – 223 में आज   दस थाट, दस राग और दस गीत – 10 : भैरवी थाट   राग भैरवी में ‘फुलवन गेंद से मैका न मारो...’   और  मालकौंस में ‘आए सुर के पंछी आए...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की दसवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इ

‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ : SWARGOSHTHI – 199 : RAG BHATIYAR

स्वरगोष्ठी – 199 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 8 : राग भटियार पण्डित राजन मिश्र ने एस. जानकी के साथ भटियार के स्वरों में गाया- 'आयो प्रभात सब मिल गाओ...' ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। अब हम इस लघु श्रृंखला के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। इस श्रृंखला में अभी तक आपने 1943 से 1960 के बीच में बनी कुछ फिल्मों के ऐसे गीत सुने जो रागों पर आधारित थे और इन्हें किसी फिल्मी पार्श्वगायक या गायिका ने नहीं बल्कि समर्थ शास्त्रीय गायक या गायिका ने गाया था। छठे दशक के बाद अब हम आपको सीधे नौवें दशक में ले चलते है। इस दशक में भी फिल्मी गीतों में रागदारी संगीत का हल्का-फुल्का प्रयास किया गया था। ऐसा ही एक प्रयास संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने 1985 की फिल्म ‘सुर संगम’ में किया था। इस फिल्म के मुख्य चरित्र के लिए उन्होने सुविख्यात गायक पण्डित राजन मिश्र (युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र में से एक) से पार्श्वगायन कराया था। आज के अंक में हम