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आशा भोसले की 81वीं जयन्ती पर विशेष

स्वरगोष्ठी – 136 में आज रागों में भक्तिरस – 4 राग दरबारी और भक्तिगीत : 'तोरा मन दर्पण कहलाए...'   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान रागों और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला के आज के अंक में हम आपसे एक ऐसे राग पर चर्चा करेंगे जो भक्तिरस के साथ-साथ श्रृंगाररस का सृजन करने में भी समर्थ है। आज हम आपसे राग दरबारी कान्हड़ा के भक्ति-पक्ष पर चर्चा करेंगे और इसके साथ ही सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोसले की आवाज़ में, राग दरबारी पर आधारित, फिल्म ‘काजल’ से एक बेहद लोकप्रिय भक्तिगीत प्रस्तुत करेंगे। यह भी संयोग है कि आज ही आशा भोसले का 81वाँ जन्मदिवस है। इसके अलावा आज की कड़ी में आप विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित जसराज से राग दरबारी कान्हड़ा में निबद्ध एक भक्तिगीत सुनेंगे।  सं गीत के क्षेत

अतिथि संगीतज्ञ का पृष्ठ : पण्डित श्रीकुमार मिश्र

स्वरगोष्ठी – 114 में आज अतिथि संगीतकार का पृष्ठ स्वर एक राग अनेक   ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के इस विशेष अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी संगीत-प्रेमी पाठकों और श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, आज का यह अंक एक विशेष अंक है। विशेष इसलिए कि यह अंक संगीत-जगत के एक जाने-माने संगीतज्ञ प्रस्तुत कर रहे हैं। दरअसल इस वर्ष के कार्यक्रमों की समय-सारिणी तैयार करते समय ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ ने माह के पाँचवें रविवार की ‘स्वरगोष्ठी’ किसी संगीतज्ञ लेखक से प्रस्तुत कराने का निश्चय किया था। आज माह का पाँचवाँ रविवार है और आपके लिए आज का यह अंक देश के जाने-माने इसराज व मयूर वीणा-वादक और संगीत-शिक्षक पण्डित श्रीकुमार मिश्र प्रस्तुत कर रहे है। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक के लिए उन्होने तीन ऐसे राग- पूरिया, सोहनी और मारवा का चयन किया है, जिनमें समान स्वरों का प्रयोग किया जाता है। लीजिए, श्रीकुमार जी प्रस्तुत कर रहे हैं, इन तीनों रागों में समानता और कुछ अन्तर की चर्चा, जिनसे इन रागों में और उनकी प्रवृत्ति में अन्तर आ जाता है।  ‘रे डियो प्लेबैक इण्ड

वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों के संग – समापन कड़ी

             स्वरगोष्ठी – ८४ में आज ‘चतुर्भुज झूलत श्याम हिंडोला...’ : मल्हार अंग के कुछ अप्रचलित राग व र्षा ऋतु के संगीत पर केन्द्रित ‘स्वरगोष्ठी’ की यह श्रृंखला विगत सात सप्ताह से जारी है। परन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब इस ऋतु ने भी विराम लेने का मन बना लिया है। अतः हम भी इस श्रृंखला को आज के अंक से विराम देने जा रहे हैं। पिछले अंकों में आपने मल्हार अंग के विविध रागों और वर्षा ऋतु की मनभावन कजरी गीतों का रसास्वादन किया था। आज इस श्रृंखला के समापन अंक में मल्हार अंग के कुछ अप्रचलित रागों पर चर्चा करेंगे और संगीत-जगत के कुछ शीर्षस्थ कलासाधकों से इन रागों में निबद्ध रचनाओं का रसास्वादन भी करेंगे। पण्डित सवाई गन्धर्व  मल्हार अंग का एक मधुर राग है- नट मल्हार। आजकल यह राग बहुत कम सुनाई देता है। यह राग नट और मल्हार अंग के मेल से बना है। इसे विलावल थाट का राग माना जाता है। इस राग में दोनों निषाद का प्रयोग होता है, शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयुक्त होते हैं। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। इसराज और मयूर वीणा-वादक पं. श्रीकुमार मिश्र के अनुसार इस राग के गायन-वादन में नट अ

सुर संगम में आज - सात सुरों को जसरंगी किया पंडित जसराज ने

सुर संगम - 16 - पंडित जसराज १४ वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। न मस्कार! सुर-संगम के इस साप्ताहिक स्तंभ में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। आज हम सुर-संगम में ऐसे हि एक विशिष्ट शास्त्रीय गायक के बारे में जानेंगे जिनकी आवाज़ मानो सुनने वालों को सीधा उस परमेश्वर से जाकर जोड़ती है। एक ऐसी आवाज़ जिन्होंने मात्र ३ वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत पिता से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ कदम रखा, आज वही सात स्वर उनकी प्रतिभा का इन्द्रधनुष बन विश्व-जगत में उन्हें विख्यात कर चले हैं। जी हाँ! मैं बात कर रहा हूँ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली के समकालीन दिग्गज, संगीत मार्तांड पंडित जसराज जी की। आईये पंडित जसराज के बारे में और जानने