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सौ रंग बिखेरती मधुर सारंगी

स्वरगोष्ठी – 170 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 8 मानव-कण्ठ का अनुकरण करने में सक्षम लोक और शास्त्रीय तंत्रवाद्य सारंगी      ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की आठवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी स्तम्भकार सुमित चक्रवर्ती के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे संगीत वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में शास्त्रीय या लोकमंचों पर प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का भी उल्लेख कर रहे हैं। वाद्य परिचय श्रृंखला की आज यह समापन कड़ी है और आज की इस कड़ी में हम आपसे एक ऐसे गज-

संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला : पं. श्रीकुमार मिश्र से बातचीत

स्वरगोष्ठी – ८८ में आज संगीत के सौ रंग बिखेरती सारंगी ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आपकी गोष्ठी में उपस्थित हूँ और आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। मित्रों, यह ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ का सौभाग्य रहा है कि इसे आरम्भ से ही संगीत-साधकों, संगीत-शिक्षकों और संगीत-प्रेमियों का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा। हमारे एक ऐसे ही मार्गदर्शक हैं जाने-माने इसराज और मयूर वीणा वादक और शिक्षक पं. श्रीकुमार मिश्र। पिछले दिनों उनकी कक्षा में मैं आकस्मिक रूप से जब पहुँचा तो आश्चर्यचकित रह गया। लगभग अप्रचलित इन गज-वाद्यों को सीखने के लिए कुल ९ विद्यार्थी उस कक्षा में उपस्थित थे, जिनमें ५ बालिकाएँ थीं। श्रीकुमार जी इन बच्चों को एक सरल सी तान का अभ्यास करा रहे थे। मैंने संगीत के उन विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों की सराहना की और श्रीकुमार जी से गज-तंत्र वाद्यों के बारे में ‘स्वरगोष्ठी’ के लिए कुछ बातचीत करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार कर लिया। आज के अंक में हम इस बातचीत के सम्पादित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। कृष्णमोहन : श्रीकुमार जी