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चित्रकथा - 46: पार्श्वगायिका मीना कपूर को श्रद्धांजलि, ’रसिकेषु’ के निर्माण की कहानी के साथ

अंक - 46 पार्श्वगायिका मीना कपूर को श्रद्धांजलि, ’रसिकेषु’ के निर्माण की कहानी के साथ मेरे भाई श्यामल के अनुसार "कुछ और ज़माना कहता है" अब तक का बेस्ट फ़िल्मी गीत है... - तुषार भाटिया फ़िल्म जगत के सुनहरे दौर की जानी-मानी पार्श्वगायिका मीना कपूर का 23 नवंबर को कोलकाता में निधन हो गया। ख़ुद एक सुरीली गायिका होने के साथ-साथ मीना जी संगीतकार अनिल बिसवास जी की पत्नी  भी थीं। मीना कपूर के गाए गीत हमें जिन फ़िल्मों में सुनने को मिली, उनमें प्रमुख हैं शहनाई’ ’छोटी छोटी बातें’, ’अनोखा प्यार’, ’परदेसी’, ’आग़ोश’, ’दुखियारी’, ’हरिदर्शन’, ’गोपीनाथ’, ’आकाश’, ’नैना’, ’उषा किरण’, ’दूर चलें’, ’चलते चलते’, ’घायल’, ’आधी रात’, ’घर की इज़्ज़त’ और ’नई रीत’। बरसों पहले ’विविध भारती’ के लोकप्रिय कार्यक्रम ’संगीत सरिता’ के लिए अनिल दा और मीना जी की सितार वादक व संगीतकार श्री तुषार भाटिया से लम्बी बातचीत रेकॉर्ड की गई थी। इस बातचीत को ’रसिकेषु’ नामक श्रूंखला के रूप में प्रसारित किया गया था, और आगे भी इसका कई कई बार दोहराव हुआ है। आइए आज ’चित्रकथा’ में मीना जी को याद करते हुए इस

राग पहाड़ी : SWARGOSHTHI – 273 : RAG PAHADI

स्वरगोष्ठी – 273 में आज मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 6 : पहली फिल्म का पहला राग आधारित गीत ‘मोरी अटरिया पे कागा बोले...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ जारी है। श्रृंखला की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी दे रहे हैं। श्रृंखला की छठी कड़ी में आज हम आपको राग पहाड़ी के स्वरों में पिरोये गए 1950 में प्रदर्शित फिल्म ‘आँखें’ के एक गीत का रसास्वादन कराएँगे। इस राग आधारित गीत को स्वर दिया है, तत्कालीन पार्श्वगायिका मीना कपूर ने। सं

'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' - २७ 'अनिल बिस्वास पर केन्द्रित विविध भारती की यादगार शृंखला 'रसिकेशु' के बनने की कहानी संगीतकार तुषार भाटिया की ज़बानी'

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में एक बार फिर आप सभी का हम स्वागत करते हैं। आज का यह अंक बहुत ही ख़ास है क्योंकि आज आप इसमें एक महान संगीतकार के बारे में कुछ बातें जानने जा रहे हैं जो शायद अब तक आपको मालूम ना होंगी, और ये सब बातें आपको बताएँगे एक और बेहद गुणी फ़नकार। दोस्तों, अगर आप विविध भारती के श्रोता हैं और सुबह सवेरे 'संगीत सरिता' सुनते हैं तो आपने इसमें एक शृंखला ज़रूर सुनी होगी 'रसिकेशु', जिसमें संगीतकार अनिल बिस्वास से युवा संगीतकार तुषार भाटिया की बहुत अच्छी और लम्बी बातचीत सुनवाई गई थी। विविध भारती ने बड़े प्यार से इस रेकोडिंग् को अपने संग्रहालय में सहेज कर रखा है और इस शृंखला का दोहराव भी हर वर्ष होता रहता है श्रोताओं की फ़रमाइश पर। पिछले दिनों मेरी तुषार जी से फ़ेसबूक पर मुलाक़ात हुई, उनका बड़प्पन ही कहूँगा कि मुझे अपने फ़्रेण्ड्स-लिस्ट में शामिल किया, और इतना ही नहीं, एक इंटरव्यु के लिए भी तुरंत राज़ी हो गए। मुझे बहुत रोमांच हो आया क्योंकि यह मेरा पहला इंटरव्यु था। इससे पहले जितने भी इंटरव्युज़ मैंने किये हैं, सब ईमेल के माध्यम से हुए हैं। ट

मोहे भी रंग देता जा मोरे सजना...संगीत के विविध रंगों से सजा एक रंगीला गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 363/2010/63 रं ग रंगीले गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह लघु शृंखला 'गीत रंगीले' जारी है 'आवाज़' पर। "आजा रंग दूँ तेरी चुनरिया प्यार के रंग में", दोस्तों, अक्सर ये शब्द प्रेमी अपनी प्रेमिका को कहता है। लेकिन कभी कभी हालात ऐसे भी आन पड़ते हैं कि नायिका ख़ुद अपनी कोरी चुनरिया को रंग देने का अनुरोध कर बैठती है। कुछ साल पहले इस तरह का एक गीत फ़िल्म 'तक्षक' में ए. आर. रहमान ने स्वरब्द्ध किया था जिसे आशा भोसले और साथियों ने गाया था, "मुझे रंग दे, मुझे रंग दे, मुझे अपने प्रीत विच रंग दे"। लेकिन प्यार के रंग में रंगने की नायिका की यह फ़रमाइश हिंदी फ़िल्मों में काफ़ी पुराना है। ५० के दशक के आख़िर में, यानी कि १९५९ में एक फ़िल्म आई थी 'चार दिल चार राहें', जिसमें एक बेहद लोकप्रिय गीत था मीना कपूर की आवाज़ में, "कच्ची है उमरिया, कोरी है चुनरिया, मोहे भी रंग देता जा मोरे सजना, मोहे भी रंग देता जा"। जब रंगीले गीतों की बात चल रही हो, तो हमने सोचा कि क्यों ना इस अनूठे गीत को भी इसी शृंखला में शामिल कर

रसिया रे मन बसिया रे तेरे बिना जिया मोरा लागे ना...एक गीत मीना कपूर को समर्पित

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 333/2010/33 फ़ि ल्म संगीत के सुनहरे दौर की कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास लघु शृंखला 'हमारी याद आएगी' की तीसरी कड़ी में आज बातें गायिका मीना कपूर की। जी हाँ, वही मीना कपूर जो एक सुरीली गायिका होने के साथ साथ सुप्रसिद्ध संगीतकार अनिल बिस्वास जी की धर्मपत्नी भी हैं। अनिल दा तो नहीं रहे, मीना जी आजकल दिल्ली में रहती हैं। दोस्तों, आप में से कई पाठक हर मंदिर सिंह 'हमराज़' के नाम से वाकिफ होंगे जिन्होने फ़िल्मी गीत कोश का प्रकाशन किया एक लम्बे समय से शोध कार्य करने के बाद। इस शोध कार्य के दौरान वे फ़िल्म जगत के तमाम कलाकारों से ख़ुद जा कर मिले और तमाम जानकारियाँ बटोरे। उनकी निष्ठा और लगन का ही नतीजा है कि १९३१ से लेकर ८० के दशक तक के सभी फ़िल्मों के सभी गीतों के डिटेल्स उनके बनाए गीत कोश में दर्ज है। तो एक बार वे दिल्ली में अनिल दा के घर भी गए थे। आइए उन्ही की ज़बानी में सुनें उस मुलाक़ात के बारे में जिसमें अनिल दा के साथ साथ मीना जी से भी उनकी भेंट हुई और मीना जी के गाए शुरु शुर के गीतों के बारे में कुछ दुर्लभ बा