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मैंने देखी पहली फिल्म : सुमन दीक्षित

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 29 जुड़वा बहनों की कहानी से माँ ने मुझे प्रेरित करने का प्रयास किया भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया है। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। पिछले अंक में प्रस्तुत किये गए प्रतियोगी संस्मरण को हमने इस श्रृंखला का समापन संस्मरण घोषित किया था। परन्तु हमे विलम्ब से हमारी एक श्रोता/पाठक का एक और संस्मरण प्राप्त हो गया। आज के अंक में उसी संस्मरण को प्रस्तुत कर रहे हैं। अब हम इस प्रतियोगिता का परिणाम जनवरी के दूसरे गुरुवार को घोषित करेंगे। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता के आज के समापन अंक में हम प्रस्तुत कर रहे है, लखनऊ निवासी, एक गृहणी श्रीमती सुमन दीक्षित का संस्मरण। सुम

मैंने देखी पहली फिल्म : जब प्रिंसिपल ने हॉल पर छापा मारा

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 27     मैंने देखी पहली फ़िल्म   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया है। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। आज के अंक में हम उत्तर प्रदेश राज्य के सेवानिवृत्त सूचना अधिकारी सतीश पाण्डेय जी का प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। सतीश जी ने अपनी पहली देखी फिल्म ‘हक़ीक़त’ की चर्चा की है। यह भारत की पहली युद्ध विषयक फिल्म मानी जाती है।    पहली फिल्म देखने के दौरान जब प्रिंसिपल ने हॉल पर छापा मारा : सतीश पाण्डेय   आ ज जब मेरे सामने यह सवाल उठा कि मेरे जीवन की पहली फिल्म कौन थी, तो इसके जवाब में मैं यही कहना चाहूँगा कि वह ऐतिहासिक फिल्म थी ‘हकीकत’। 1962 में हमारे पड़ोसी

कवयित्री सीमा गुप्ता ने देखी फिल्म 'साहब बीवी और गुलाम'

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल -25 मैंने देखी पहली फिल्म   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया है। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। आज के अंक में हम कवयित्री सीमा गुप्ता का प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। सीमा जी ने अपने बचपन में देखी, भारतीय सिनेमा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित फिल्म ‘साहब बीवी और गुलाम’ की चर्चा की है। फिल्म देख कर औरत का दर्द महसूस हुआ जिसे मीनाकुमारी जी ने परदे पर साकार किया ‘मैं ने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता के कारण आज बरसों के बाद बचपन के झरोखों में फिर से जाकर पुरानी धुँधली हो चुकी तस्वीरों से रूबरू होने का मौका मिला है। बचपन कब बीत गया, कब सब पीछे रह गया, प

स्मृतियों के झरोखे से : अमित तिवारी की देखी पहली फिल्म 'बालिका वधु'

मैंने देखी पहली फ़िल्म : अमित तिवारी भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान में प्रत्येक गुरुवार को हम आपके लिए सिनेमा के इतिहास पर विविध सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं। माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को आपके संस्मरणों पर आधारित ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ स्तम्भ का प्रकाशन करते हैं। आज माह का चौथा गुरुवार है, इसलिए आज बारी है आपकी देखी पहली फिल्म के रोचक संस्मरण की। आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं, एक गैर-प्रतियोगी संस्मरण। आज का यह संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं, रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक-मण्डल के सदस्य अमित तिवारी।  सचमुच बहुत अच्छा लगता है, 'बालिका वधू' का गीत ‘बड़े अच्छे लगते हैं...’ मु झसे जब पुछा गया कि मेरी देखी पहली फिल्म कौन सी है तो मुझे दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की जरूरत नहीं पड़ी। मेरी याद में जो मेरी देखी पहली फिल्म है , वो थी शशि कपूर, प्राण और सुलक्षणा पण्डित के अभिनय से सजी 1978 में प्रदर्शित हुई फिल्म 'फाँसी'। उस समय मैं करीब पाँच साल का था। मुझे इस फिल्म का केवल एक दृश्य याद ह

स्मृतियों के झरोखे से : मिकी गोथवाल की पहली देखी फिल्म ‘गजब’ का संस्मरण

मैंने देखी पहली फिल्म  भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आपने श्रीमती अंजू पंकज के संस्मरण के साझीदार रहे। आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, पेशे से एक मॉडल तथा फिल्म लेखक और निर्देशक बनने के लिए संघर्षरत मिकी गोथवाल की पहली देखी फिल्म ‘गजब’ का संस्मरण। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है। धर्मेन्द्र जी का शारीरिक गठन देख कर मैंने कसरत करनी शुरू की : मिकी गोथवाल मे रा नाम मिकी गोथवाल है। मैं मूलत: हरियाणा का रहने वाला हूँ। पेशे से एक मॉडल हूँ और इन दिनों मुम्बई फिल्म-जगत में कुछ अलग हटकर कर गुजरने के लिए प्रयासरत हूँ। यूँ तो आमतौर पर हर मॉडल अभिनेता बनना चाहता है, पर मेरा शौक है फ़िल्में लिखना और फ़िल्में निर्देशित करना। मैंने दो फ़िल्में लिखी भी है, और उन्हें निर्देशित भी करना चाहता हूँ। बस अपने इस सपने को हक़ीक़त में

भारतीय सिनेमा के सौ साल - अंजू पंकज की दिव्य प्रेरणा "जय संतोषी माँ"

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आपने कवि और पत्रकार निखिल आनन्द गिरि के संस्मरण के साझीदार रहे। आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं, रेडियो प्लेबैक इण्डिया के नियमित पाठक और शुभचिन्तक पंकज मुकेश की पत्नी अंजू पंकज की पहली देखी फिल्म ‘जय सन्तोषी माँ’ का संस्मरण। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है। फिल्म देख कर सन्तोषी माँ का व्रत करने की इच्छा हुई : अंजू पंकज मैं ने अपने जीवन में सबसे पहली फिल्म देखी -"जय सन्तोषी माँ"। इस फिल्म के बारे में हर एक बात मैं आज तक भूल नहीं पायी। सच में पहली फिल्म कुछ ज्यादा ही यादगार होती है। बात उस समय की हैं जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ती थी, महज दस साल कि उम्र थी। दुनियादारी से कहीं दूर एक बच्ची के मन में जो कुछ आता था, उनमें कहीं न कहीं चम्पक, नन्हें सम्रा

मैंने देखी पहली फिल्म : पत्रकार कवि निखिल आनंद गिरी

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आपने हमारे संचालक मण्डल के सदस्य अनुराग शर्मा की देखी पहली दो फिल्मों ‘गीत’ और ‘पुष्पांजलि’ के गैरप्रतियोगी संस्मरण के साझीदार रहे। आज निखिल आनन्द गिरि अपनी देखी कुछ ऐसी फिल्मों का जिक्र कर रहे हैं जिन्होने उनके मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है। मे रा बचपन बिहार (और झारखण्ड) के अलग-अलग कस्बों में बीता। पिताजी पुलिस अधिकारी रहे हैं तो अलग-अलग थानों में तबादले होते रहे और हम उनके साथ घूमते रहे। इन्हीं में से किसी इलाके में पहली फिल्म देखी होगी, मगर मुझे ठीक से याद नहीं। हाँ, फिल्म देखने जाने के कई खट्टे-मीठे अनुभव याद हैं, जिन्हें बताना पहला अनुभव जानने से कम ज़रूरी नहीं। क्योंकि सिनेमा के सौ साल का सफर उन्हीं सिनेमाघरों में हम और आप जैसे तमाम दर्शको

मैंने देखी पहली फिल्म : अनुराग शर्मा की यादों से झांकती दो फ़िल्में

मैंने देखी पहली फ़िल्म : अनुराग शर्मा   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान में प्रत्येक गुरुवार को हम आपके लिए सिनेमा के इतिहास पर विविध सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं। माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को आपके संस्मरणों पर आधारित ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ स्तम्भ का प्रकाशन करते हैं। आज माह का चौथा गुरुवार है, इसलिए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं, गैर-प्रतियोगी संस्मरण। आज का यह संस्मरण, रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक-मण्डल के सदस्य अनुराग शर्मा का है। ‘गीत’ के गीत में फूलों की सुगन्ध है तो ‘पुष्पांजलि’ के गीत में राधा के लिए कृष्ण की व्यग्रता मे री आयु चार-पाँच वर्ष की थी जब हम लोग जम्मू के तालाब तिल्लो के एक नये बन रहे इलाक़े में किराये पर रहने आये थे। दिन में स्कूल जाना और शाम को अपने मित्रों के साथ तरह-तरह के खेल खेलना। आस-पास नहरें, खड्डों, पत्थरों और जंगली झाड़ियों की भरमार थी। जल्दी ही मैं आक और लेंटाना के पौधों को पहचानने लगा। छोटे-छोटे लाल बेर हम बच्चों के पसन्दीदा थे, जिन्हें डोगरी में गरने कह

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल -14

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आप श्री शिशिर कृष्ण शर्मा की देखी पहली फिल्म ‘ बीस साल बाद ’ के संस्मरण के साझीदार रहे। आज मनीष कुमार अपने परिवार वालों से अलग अपनी देखी पहली फिल्म ‘परिन्दा’ का संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है।   दोस्तों के साथ ‘ब्ल्यू लैगून’ देखने का साहस नहीं हुआ : मनीष कुमार सि नेमा देखना मेरे लिए कभी लत नहीं बना। शायद ही कभी ऍसा हुआ है कि मैंने कोई फिल्म शो के पहले ही दिन जा कर धक्का-मुक्की करते हुए देख ली हो। पर इसका मतलब ये भी नहीं कि हॉल में जाकर फिल्म देखना अच्छा नहीं लगता था। बस दिक्कत मेरे साथ यही है कि मन लायक फिल्म नहीं रहने पर मुझे तीन घण्टे पिक्चर झेल पाना असह्य कार्य लगता है। इसीलिए आजकल काफी तहकीकात करके ही फिल्म देखने जाता हूँ।