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तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा...इफ़्तिख़ार साहब का दर्द और चित्र सिंह की सशक्त अभिव्यक्ति

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 457/2010/157 'से हरा में रात फूलों की' इस शृंखला की आज है सातवीं कड़ी। कल की कड़ी में आपने जगजीत सिंह की आवाज़ सुनी थी। दोस्तों, जिस तरह से बहुत सारे संगीतकार जोड़ी के रूप में फ़िल्म जगत के मैदान पर उतरे हैं और आज भी उतर रहे हैं, वैसे ही ग़ज़लों की दुनिया में भी कुछ गायक अपने पार्टनर के साथ सामने आए हैं। दो ऐसी जोड़ियाँ जो सब से ज़्यादा लोकप्रिय रही हैं, वो हैं भूपेन्द्र और मिताली की जोड़ी, और जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की जोड़ी। इन दोनों जोड़ियों के जोड़ीदार व्यक्तिगत ज़िंदगी में पति-पत्नी भी हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये सब यहाँ लेकर क्यों बैठ गया। भई हम बस इतना कहना चाहते हैं कि जब कल जगजीत जी की आवाज़ शामिल हो ही चुकी है, तो क्यों ना आज उनकी पत्नी और सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका चित्रा सिंह की भी आवाज़ सुन ली जाए। चित्रा सिंह ने जहाँ एक तरफ़ जगजीत जी के साथ बहुत सी युगल ग़ज़लें गायी हैं, उनकी एकल ग़ज़लों की फ़ेहरिस्त भी छोटी नहीं है। फ़िल्मों की बात करें तो 'साथ साथ' और 'अर्थ' चित्रा जी के करीयर की दो महत्वपूर्ण फ़िल्में रही हैं। '

तुमको देखा तो ये ख्याल आया....कि इतनी सुरीली गज़ल पर क्यों न हम कुर्बान जाए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 456/2010/156 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के एक नए सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं। इससे पहले कि हम आज की प्रस्तुति की शुरुआत करें, आपको हम यह याद दिलाना चाहेंगे कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप अपने फ़रमाइश के गीत सुन सकते हैं अपने नाम के साथ। आपको बस इतना करना है कि अपने पसंद का गीत और अगर कोई याद उस गीत से जुड़ी हुई है तो उसे एक ई-मेल में लिख कर हमें oig@hindyugm.com के पते पर भेज दीजिए। साथ ही अगर आप कोई सुझाव देना चाहें तो भी इसी पते पर आप हमे लिख सकते हैं। हमें आपके ई-मेल का इंतेज़ार रहेगा। दोस्तों, इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आनंद ले रहे हैं ८० के दशक के कुछ चुनिंदा फ़िल्मी ग़ज़लों का लघु शृंखला 'सेहरा में रात फूलों की' के अंतर्गत। इस दौर के ग़ज़ल गायकों की जब बात चलती है तो जो एक नाम सब के ज़ुबान पर सब से पहले आता है, वो नाम है जगजीत सिंह का। युं तो मेहदी हसन और ग़ुलाम अली ग़ज़लों के बादशाह माने जाते हैं, लेकिन जगजीत सिंह की गायकी कुछ इस तरह से आयी कि छोटे, बड़े, जवान, बूढ़े, सभी को उन्होने अपनी ओर आकर्षित किया और आज भी वो सब से लोकप्रिय

इतनी शक्ति हमें देना दाता....एक प्रार्थना जो हर दिल को सकून देती है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 380/2010/80 '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में ये सुमधुर गानें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में प्रस्तुत है एक प्रार्थना गीत। १९८६ में एक फ़िल्म आई थी 'अंकुष' और इस फ़िल्म के लिए एक ऐसा प्रार्थना गीत रचा गया कि जिसे सुन कर लगता है कि किसी स्कूल का ऐंथेम है। "इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना, हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना"। फ़िल्म 'गुड्डी' में "हम को मन की शक्ति देना" गीत की तरह इस गीत ने भी अपना अमिट छाप छोड़ा है। फ़िल्म तो थी ही असाधारण, लेकिन आज इसफ़िल्म के ज़िक्र से सब से पहले इस गीत की ही याद आती है। सुष्मा श्रेष्ठ और पुष्पा पगधरे की आवाज़ों में यह गीत है जिसे लिखा है अभिलाश ने और स्वरबद्ध किया है कुलदीप सिंह ने। जी हाँ, कल और आज मिलाकर हमने लगातार दो गीत सुनवाए कुलदीप सिंह के संगीत में। कल के गीत की तरह आज का यह गीत भी कुलदीप सिंह के गिने चुने फ़िल्मी गीतों में एक बेहद ख़ास मुकाम रखता है। 'अंकुष' का निर्माण एन.

कोई ये कैसे बताये कि वो तन्हा क्यों है....कैफी साहब और जगजीत सिंह जैसे चीर देते है दिल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 379/2010/79 क ल हमने १९८२ की फ़िल्म 'बाज़ार' का ज़िक्र किया था। आज भी हम १९८२ पर ही कायम हैं और आज की फ़िल्म है 'अर्थ'। 'अर्थ' महेश भट्ट निर्देशित फ़िल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे शबाना आज़्मी, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटिल, राज किरण, रोहिणी हत्तंगड़ी। यानी कि फिर एक बार समानांतर सिनेमा के चोटी के कलाकारों का संगम। अपनी आत्मकथा पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी लिखी थी ख़ुद महेश भट्ट ने (उनके परवीन बाबी के साथ अविवाहिक संबंध को लेकर)। इस फ़िल्म को बहुत सारे पुरस्कार मिले। फ़िल्मफ़ेयर के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (शबाना आज़्मी), सर्बश्रेष्ठ स्कीनप्ले (महेश भट्ट) और सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री (रोहिणी हत्तंगड़ी)। शबाना आज़्मी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार (सिल्वर लोटस) भी मिला था इसी फ़िल्म के लिए। इस फ़िल्म का साउंडट्रैक भी कमाल का है जिसमें आवाज़ें हैं ग़ज़ल गायकी के दो सिद्धहस्थ फ़नकारों के - जगजीत सिंह और चित्रा सिंह। "झुकी झुकी सी नज़र", "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो", "तेरे ख़ुशबू में बसे", &q

सीखिए गायकी के गुर

गाना आए या न आए,गाना चाहिए...जनाब बाथरूम सिंगिंग छोडिये, और महफिलों की जान बनिए, आवाज़ पर संजय पटेल लेकर आए हैं, नए गायकारों के लिए मशहूर संगीतकार कुलदीप सिंह के सुझाये कुछ नायाब टिप्स... दोस्तो, एक संगीत प्रतियोगिता के संचालन के दौरान, मैंने बतौर निर्णायक उपस्थित, जाने माने संगीतकार कुलदीप सिंह (फ़िल्म साथ-साथ और अंकुश से मशहूर), जिन पर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह को पहली बार पार्श्व गायन में उतारने का श्रेय भी है, से जानना चाहा कुछ ऐसे मशवरे, जो उभरते हुए नए गायकों, विशेषकर जो सुगम संगीत (गीत, ग़ज़ल,और भजन आदि ) गा रहे हैं या फ़िर इस क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं. कुलदीप जी ने जो बातें बतायीं वो आपके साथ बाँट रहा हूँ, एक बार फ़िर "आवाज़" के मध्यम से, तो गायक दोस्तो, नोट कर लीजिये कुछ अनमोल टिप्स : - ज़्यादातर बाल कलाकार अपने गुरू का रटवाया हुआ गाते हैं.गुरूजनों का दायित्व है कि वे इस बात का ख़ास ख़याल रखें कि क्या जो बच्चे को सिखाया जा रहा है, वह उसकी उम्र पर फ़बता है. - कविता/शायरी की समझ सबसे बड़ी चीज़ है.जब गा रहे हैं ' रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ’ तो ये जानना ज़र