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Showing posts with the label kishore kumar

अलबेला मौसम कहता है स्वागतम....ताकि आप रहें खुश और तंदरुस्त

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 657/2011/97 फ़ि ल्म संगीत में हँसी मज़ाक की बात हो, और किशोर कुमार का नाम ही न आये, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। इन दिनों इसमें जारी है शृंखला 'गान और मुस्कान' और जैसा कि आपको पता है इसमें हम ऐसे गानें शामिल कर रहे हैं जिनमें गायक गायिका की हँसी सुनाई देती है। किशोर कुमार नें बेहिसाब मज़ाइया और हास्य रस के गीत गाये हैं। उनके गाये हास्य गीतों को सुनते हुए कई बार हम हँसते हँसते पेट पकड़ लेते हैं। लेकिन अगर आपसे यह पूछें कि उनकी हँसी किस गीत में सुनाई पड़ी है, तो शायद आपको कुछ समय लग जाये याद करने में। सबसे पहले जो गीत ज़हन में आता है वह है फ़िल्म 'पड़ोसन' का " एक चतुर नार ", जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भी बजा चुके हैं। आज के अंक के लिए हमने किशोर दा का जो गीत चुना है, वह कोई हास्य गीत नहीं है, बल्कि यह एक फ़मिली सॉंग् है, एक पारिवारिक गीत। एक आदर्श छोटा परिवार, जिसमें है माँ-बाप और एक छोटा सा प्यारा सा बच्चा। कुछ इसी पार्श्व पर ८० के दशक का एक गीत है किशोर

भोर आई गया अँधियारा....गजब की सकात्मकता है मन्ना दा के स्वरों में, जिसे केवल सुनकर ही महसूस किया जा सकता है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 650/2010/90 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के चाहनेवालों, आज हम आ पहुँचे हैं, लघु श्रृंखला 'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' की समापन कड़ी पर। पिछली कड़ियों में हम मन्ना डे के व्यक्तित्व और कृतित्व के कुछ थोड़े से रंगों से ही आपका साक्षात्कार कर सके। सच तो यह है कि एक विशाल वटबृक्ष की अनेकानेक शाखाओं की तरह विस्तृत मन्ना डे का कार्य है, जिसे दस कड़ियों में समेटना कठिन है। मन्ना डे नें हिन्दी फिल्मों में संगीतकार और गायक के रूप में गुणवत्तायुक्त कार्य किया। संख्या बढ़ा कर नम्बर एक पर बनना न उन्होंने कभी चाहा न कभी बन सके। उन्हें तो बस स्तरीय संगीत की लालसा रही। यह भी सच है कि फिल्म संगीत के क्षेत्र में जो सम्मान-पुरस्कार मिले वो उन्हें काफी पहले ही मिल जाने चाहिए थे। 1971 की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के गीत -"ए भाई जरा देख के चलो..." के लिए मन्ना डे को पहली बार फिल्मफेअर पुरस्कार मिला था। एक पत्रकार वार्ता में मन्ना डे ने स्वयं स्वीकार किया कि 'मेरा नाम जोकर' का यह गाना संगीत की दृष्टि से एक सामान्य गाना है, इससे पहले वो कई उल्लेखनीय

पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए.....किशोर दा के साथ खूब रंग जमाया गायिका हेमा मालिनी ने इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 637/2010/337 'सि तारों की सरगम' लघु शृंखला में कल संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में आप नें सुना था अमिताभ बच्चन का गाया फ़िल्म 'लावारिस' का गीत। कल के ही अंक में आप नें जाना कि कल्याणजी-आनंदजी नें कई फ़िल्मी कलाकारों से गीत गवाये हैं। अशोक कुमार और अमिताभ बच्चन के गाये गीतों का ज़िक्र हमनें किया। फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' के "एक था गुल और एक थी बुलबुल" में इन्होंने नंदा से संवाद बुलवाये। इसी तरह शंकर जयकिशन नें भी 'संगम' के गीत "बोल राधा बोल" में वैयजंतीमाला, 'मेरा नाम जोकर' के गीत "तीतर के दो आगे तीतर" में सिमी गरेवाल और 'ऐन ईवनिंग् इन पैरिस' के गीत "आसमान से आया फ़रिश्ता" में शर्मीला टैगोर की आवाज़ ली। आइए आज कल्याणजी-आनंदजी के संगीत में आपको सुनवाते हैं ड्रीम-गर्ल की आवाज़। जी हाँ, ड्रीम-गर्ल यानी हेमा मालिनी। हेमा जी नें बेशुमार फ़िल्मों में यादगार अभिनय तो किया ही, लेकिन आज हम उन्हें याद कर रहे हैं एक गायिका के रूप में। हेमा मालिनी के गाये गीतों की अगर ब

जीवन के दिन छोटे सही, हम भी बड़े दिलवाले....किशोर दा समझा रहे हैं जीने का ढंग...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 598/2010/298 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप इस लघु शृंखला का आनंद ले रहे हैं। विश्व के जाने माने पियानिस्ट्स में से दस पियानिस्ट्स के बारे में हम इस शृंखला में जानकारी दे रहे हैं। पाँच नाम शामिल हो चुके हैं, आइए आज की कड़ी में बाकी के पाँच नामों का ज़िक्र करें। शुरुआत कर रहे हैं महान संगीत-शिल्पी मोज़ार्ट से। वूल्फ़गैंग मोज़ार्ट भी एक आश्चर्य बालक थे, जिसे अंग्रेज़ी में हम child prodigy कहते हैं। केवल तीन वर्ष की उम्र में उनके हाथों की नाज़ुक उंगलियाँ पियानो के की-बोर्ड पर फिरती हुई देखी गई, और पाँच वर्ष के होते होते वो गानें कम्पोज़ करने लग गये, और पता है ये गानें किनके लिखे होते थे? उनके पिता के लिखे हुए। और बहुत ही छोटी उम्र से वो स्टेज-कॊण्सर्ट्स भी करने लगे, और आगे चलकर एक महान संगीतकार बन कर संगीताकाश में चमके। उन्हीं की सिम्फ़नी को आधार बना कर संगीतकार सलिल चौधरी ने फ़िल्म 'छाया' का वह गीत कम्पोज़ किया था, "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा..."। ख़ैर, आगे बढ़ते हैं, और अब जो नाम मैं लेना चाहत

गीत गाता हूँ मैं, गुनगुनाता हूँ मैं....एक दर्द में डूबी शाम, किशोर दा की आवाज़ और पियानो का साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 597/2010/297 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला की सातवीं कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा जलाने को। कल की कड़ी में हमने दुनिया भर से पाँच बेहद नामचीन पियानिस्ट्स का ज़िक्र किया था और आप से यह वादा भी किया था कि आगे किसी अंक में और पाँच नामों को शामिल करेंगे। हम अपने वादे पे ज़रूर कायम हैं, लेकिन वह अंक आज का अंक नहीं है। आज के अंक में तो हम एक फ़िल्मी पियानिस्ट की बात करेंगे जिन्होंने संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के लिए बेशुमार गीतों में पियानो बजाया है। हम जिस पियानिस्ट की बात कर रहे हैं, उनका नाम है रॊबर्ट कोर्रिया (Robert Correa)| दोस्तों, जैसे ही मुझे अपने किसी मित्र से यह पता चला कि रॊबर्ट कोर्रिया एस.जे. के लिए बजाते थे, तो मैं इस म्युज़िशियन के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश में जुट गया। और इसी खोजबीन के दौरान मुझे रॊबर्ट कोरीया के बेटे युजीन कोर्रिया के बारे में पता चला किसी ब्लॊग में लिखे उनकी टिप्पणी के ज़रिए। दरअसल उस ब्लॊग में शंकर जयकिशन पर एक लेख पोस्ट हुआ था, और उसकी टिप्पणी में युजीन कोरीया ने

मेरे नैना सावन भादो, फिर भी मेरा मन प्यासा....दर्द की ऐसी गहरी अभिव्यक्ति वाकई दुर्लभ है दोस्तों

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 575/2010/275 ऐ ल्बर्ट आइन्स्टाइन ने कहा था कि "Energy can neither be created, nor destroyed; it can only be transformed from one form to another"| उधर हज़ारों साल पहले गीता में भी तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था कि आत्मा अमर है, वह बस एक शरीर को त्याग कर दूसरे शरीर का रूप धारण कर लेती है। क्या आइन्स्टाइन और गीता की इन दो बातों का आपस में कोई ताल्लुख़ है? और अगर है तो क्या पुनर्जनम को वैज्ञानिक स्वीकृति दी जा सकती है? 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस अजीब-ओ-गरीब शृंखला में जिसका नाम है 'मानो या ना मानो'। जी हाँ, यह पूर्णत: आप पर है कि आप किस बात पर यकीन करे और किस बात पर नहीं। और हम भी आप पर कुछ थोपना नहीं चाहते। किसी भी बात को अपनी बुद्धि और ज्ञान से तोलकर उस पर विश्वास करना ही उचित है। हम तो बस इस शृंखला में ऐसी बातें और घटनाएँ बता रहे हैं जो प्रचलित हैं, मशहूर हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं कि विज्ञान सम्मत भी हो। ख़ैर, जैसा कि कल हमने वादा किया था कि आज की कड़ी में हम आपको दो मशहूर पुनर्जनम की कहानि

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (23), फिर एक बार साल की शुरूआत हो रही है मन्ना दा की स्वर साधना से

नमस्कार! पूरे 'आवाज़' और 'हिंद-युग्म' परिवार की तरफ़ से आप सभी को नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। २०११ का यह नया साल आप सब के जीवन में ढेरों ख़ुशियाँ व सफलताएँ लेकर आए, यह हमारी शुभेच्छा है आप सब के लिए। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार की विशेष प्रस्तुति 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। इस साप्ताहिक स्तंभ के ज़रिए आप अपनी खट्टी मीठी यादों को पूरी दुनिया के साथ बाँट सकते हैं, या फिर कोई ख़ास गीत अगर आप सुनवाना चाहें, या 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए अपनी राय और सुझाव भेजना चाहें, उनकी भी व्यवस्था है इस साप्ताहिक पेशकश में। किसी दायरे में हमने इस विशेषांक को नहीं बांधा है, इसलिए आप अपने तरीके से कुछ भी इसमें भेज सकते हैं जो आपको लगे कि सब से साथ बांटा जा सकता है। आज हम हमारे जिन दोस्त का ईमेल शामिल कर रहे हैं, वो हैं कृष्णमोहन मिश्र, जिनके मनपसंद गायक हैं मन्ना डे। तो चलिए आज का यह अंक कृष्णमोहन जी और मन्ना दा के नाम करते हैं। ****************************** प्रिय सजीव सारथी एवं सुजॉय चटर्जी, आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ; इसलि

एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह....ये था प्यार का नटखट अंदाज़ सत्तर के दशक का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 558/2010/258 'ए क मैं और एक तू' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की आठवीं कड़ी में आज एक और ७० के दशक का गीत पेश-ए-ख़िदमत है। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की गायक-गायिका जोड़ियों में जिन चार जोड़ियों का नाम लोकप्रियता के पयमाने पर सब से उपर आते हैं, वो हैं लता-किशोर, लता-रफ़ी, आशा-किशोर और आशा-रफ़ी। ७० के दशक में इन चार जोड़ियों ने एक से एक हिट डुएट हमें दिए हैं। कल के लता-रफ़ी के गाये गीत के बाद आज आइए आशा-किशोर की जोड़ी के नाम किया जाये यह अंक। और ऐसे में फ़िल्म 'खेल खेल में' के उस गीत से बेहतर गीत और कौन सा हो सकता है, जिसके मुखड़े के बोलों से ही इस शृंखला का नाम है! "एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह, और जो तन मन में हो रहा है, ये तो होना ही था"। नये अंदाज़ में बने इस गीत ने इस क़दर लोकप्रियता हासिल की कि जवाँ दिलों की धड़कन बन गया था यह गीत और आज भी बना हुआ है। उस समय ऋषी कपूर और नीतू सिंह की कामयाब जोड़ी बनी थी और एक के बाद एक कई फ़िल्में इस जोड़ी के बने। 'खेल खेल में' १९७५ में बनी थी जिसका निर्देशन किया

आसमां के नीचे हम आज अपने पीछे, प्यार का जहाँ बसा के चले...लता और किशोर दा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 555/2010/255 फ़ि ल्म संगीत के सुनहरे दौर के कुछ सदाबहार युगल गीतों से सज रही है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल इन दिनों। ये वो प्यार भरे तराने हैं, जिन्हे प्यार करने वाले दिल दशकों से गुनगुनाते चले आए हैं। ये गानें इतने पुराने होते हुए भी पुराने नहीं लगते। तभी तो इन्हे हम कहते हैं 'सदाबहार नग़में'। इन प्यार भरे गीतों ने वो कदमों के निशान छोड़े हैं कि जो मिटाए नहीं मिटते। आज इस 'एक मैं और एक तू' शृंखला में हमने एक ऐसे ही गीत को चुना है जिसने भी अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। लता मंगेशकर और किशोर कुमार की सदाबहार जोड़ी का यह सदाबहार नग़मा है फ़िल्म 'ज्वेल थीफ़' का - "आसमाँ के नीचे, हम आज अपने पीछे, प्यार का जहाँ बसाके चले, क़दम के निशाँ बनाते चले"। मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे इस गीत को दादा बर्मन ने स्वरबद्ध किया था। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के शुरुआती दिनों में, बल्कि युं कहें कि कड़ी नं - ६ में हमने आपको इस फ़िल्म का " रुलाके गया सपना मेरा " सुनवाया था, और इस फ़िल्म की जानकारी भी दी थी। आज इस युगल गीत के फ़िल्मांक

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (१९) - ई मेल तो नहीं पर आज बात एक खत की जो किशोर दा ने लिखा था लता को

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक में। युं तो हम इसमें 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' पेश किया करते हैं, लेकिन आज इसमें हम आपके लिए कुछ अलग चीज़ लेकर आये हैं। यह ईमेल तो नहीं है, लेकिन ख़त ज़रूर है। वही ख़त, जिसे हम काग़ज़ पर लिखा करते हैं। और पता है आज जिस ख़त को यहाँ हम शामिल करने वाले हैं, उसे किसने लिखा है और किसको लिखा है? यकीन करेंगे आप अगर हम कहें कि किशोर कुमार ने यह ख़त लिखा है लता मंगेशकर को? दिल थाम के बैठिए दोस्तों, पिछले दिनों लता जी ने किशोर दा के एक ख़त को स्कैन कर ट्विटर पर अपलोड किया था, तो मैंने सोचा कि क्यों ना उसे डाउनलोड करके अपनी उंगलियों से टंकित कर आपके लिए इस स्तंभ में पेश करूँ। तो चलिए अब मैं बीच में से हट जाता हूँ, ये रहा किशोर दा का ख़त लता जी के नाम... *************************************** 28.11.65 बहन लता, अच्छी तो हो! अचानक एक मुसीबत में आ फंसा हूँ। तुम ही मेरी जीवन नैय्या पार लगा सकती हो। घबराने की बात नहीं पर घबराने की बात भी है!!! सुनो, ज़िंदगी में पहली मर्तबा फ़ौजी भाइयों की सेवा करन

फूलों के रंग से दिल की कलम से....जब भी लिखा नीरज ने, खालिस कविताओं और फ़िल्मी गीतों का जैसे फर्क मिट गया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 525/2010/225 "फू लों के रंग से, दिल की कलम से, तुझको लिखी रोज़ पाती, कैसे बताऊँ किस किस तरह से, पल पल मुझे तू सताती, तेरे ही सपने लेकर के सोया, तेरी ही यादों में जागा, तेरे ख़यालों में उलझा रहा युं, जैसे कि माला में धागा, बादल बिजली, चंदन पानी जैसा अपना प्यार, लेना होगा जनम हमें कई कई बार, इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा मेरा प्यार, लेना होगा जनम हमें कई कई बार"। दोस्तों, जहाँ पर कविता और फ़िल्मी गीत का मुखड़ा एकाकार हो जाए, उस अनोखे और अनूठे संगम का नाम है गोपालदास नीरज। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और एक बार फिर स्वागत है लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की आज की कड़ी में। जी हाँ, आज हमने चुना है प्रेम कवि गोपाल दास नीरज को, जिन्हें साहित्य और फ़िल्मी दुनिया नीरज के नाम से पहचानती है। फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' के गीत का मुखड़ा जो उपर हमने लिखा, उसे पढ़ते हुए आपको यह ज़रूर लगा होगा कि आप कोई शृंगार रस की कविता पढ़ रहे हैं। साहित्य जगत के चमकीले सितारे कवि गोपालदास नीरज पहले साहित्य गीतकार हैं, फिर फ़िल्मी गीतकार। उनकी लिखी कविताएँ और स

कांची रे कांची रे.....भाई अब कोई गलती भी तो क्या, गीत तो खूबसूरत है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 519/2010/219 हाँ तो दोस्तों, कैसी लग रही है आपको 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह लघु शृंखला 'गीत गड़बड़ी वाले'? अब तक हमने इसमें जिन जिन ग़लतियों पर नज़र डाले हैं, वो हैं गायक का ग़लत जगह पे गा देना, गायक का ग़लत शब्द उच्चारण, गीत में ग़लत शब्द का व्यवहार, फ़िल्मांकन में त्रुटि, और गीत के अंतरे की पंक्तियाँ दो अंतरों के बीच आपस में बदल जाना। इन सब ग़लतियों से शायद आपको लग रहा होगा कि इनमें संगीतकार की तो कोई ग़लती नहीं है। है न? लेकिन आज हम जिस गीत का ज़िक्र करने वाले हैं, उसके लिए तो मेरे ख़याल से संगीतकार ही ज़िम्मेदार हैं। यह है फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' का बेहद लोकप्रिय युगल गीत "कांची रे कांची रे, प्रीत मेरी सांची, रुक जा न जा दिल तोड़ के"। नेपाली लोक धुन को आधार बना कर राहुल देव बर्मन कैसा ख़ूबसूरत कम्पोज़िशन बनाई है इस गीत के लिए। आनंद बक्शी के बोल तथा किशोर कुमार व लता मंगेशकर की युगल आवाज़ें। इस गीत में कोई शाब्दिक ग़लती तो नहीं है, लेकिन कम्पोज़िशन में एक त्रुटि ज़रूर सुनाई देती है। इस त्रुटि पर नज़र डालने से पहले हम आपको य

उलझन हज़ार कोई डाले....कभी कभी जोश में गायक भी शब्द गलत बोल जाते हैं, कुछ ऐसा हुआ होगा इस गीत में भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 516/2010/216 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के एक और नए सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं और इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं लघु शृंखला 'गीत गड़बड़ी वाले'। इस शृंखला का दूसरा हिस्सा आज से पेश हो रहा है। आज जिस गीत को हमने चुना है उसमे है शाब्दिक गड़बड़ी। यानी कि ग़लत शब्द का इस्तेमाल। इससे पहले हमने जिन अलग अलग प्रकारों की गड़बड़ियों पर नज़र डाला है, वो हैं गायक का ग़लत जगह पे गा देना, गायक का किसी शब्द का ग़लत उच्चारण करना, गीत के अंतरों में पंक्तियों का आपस में बदल जाना, तथा फ़िल्मांकन में गड़बड़ी। आज हम बात करेंगे ग़लत शब्द के इस्तेमाल के बारे में। सन् १९७७ में एक फ़िल्म आई थी 'चांदी सोना', जिसमें आशा भोसले, किशोर कुमार और मन्ना डे का गाया एक गाना था "उलझन हज़ार कोई डाले, रुकते कहाँ हैं दिलवाले, देखो ना आ गये, मस्ताने छा गए, बाहों में बाहें डाले"। इस गीत के आख़िरी अंतरे में किशोर कुमार गाते हैं - "जैसे बहार लिए खड़ी हाथों के हार , दीवानों देखो ना सदियों से तेरा मेरा था इंतज़ार।" दोस्तों, आपने कभी सुना है "हाथों के हार" के बार

पिया पिया मोरा जिया पुकारे...जब किशोर दा ने खूबसूरती से छुपाया आशा की गलती को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 512/2010/212 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है लघु शृंखला 'गीत गड़बड़ी वाले', जिसके तहत हम कुछ ऐसे गानें सुन रहे हैं जिनमें किसी ना किसी तरह की गड़बड़ी हुई है, या कोई त्रुटी, कोई कमी रह गई है। कल इसकी पहली कड़ी में आपने सुना कि किस तरह से सहगल साहब ने अमीरबाई की लाइन पर ग़लती से गा उठे और गाते गाते चुप हो गए। बिल्कुल इसी तरह की ग़लती एक बार गायिका आशा भोसले ने भी की थी किशोर कुमार के साथ गाए एक युगल गीत में, जिसमें वो किशोर दा की लाइन पर गा उठीं थीं और गाते गाते रह गयीं। आशा जी की इस ग़लती को किशोर कुमार ने किस तरह से क्लवर अप कर गाने को और भी ज़्यादा लोकप्रिय बना दिया, इसके बारे में हम आपको बताएँगे, लेकिन उससे पहले आपको यह तो बता दें कि यह गीत है १९५५ की फ़िल्म 'बाप रे बाप' का, "पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे, हम भी चलेंगे सइयाँ संग तुम्हारे"। जाँनिसार अख़्तर के बोल और ओ. पी. नय्यर साहब का संगीत। नय्यर साहब के ज़्यादातर डुएट्स आशा और रफ़ी के गाये हुए हैं, लेकिन आशा - किशोर के गाये इस गीत की लोकप्रियता अपनी जगह है। इसस

चील चील चिल्लाके कजरी सुनाए.....हास्य रस में सराबोर होकर सुनिए ये गीत, हंसिये, हंसायिये और खुश रहिये

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 494/2010/194 'र स माधुरी' शृंखला की चौथी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला में इन दिनों हम रसों की बात कर रहे हैं और नौ कड़ियों की इस शृंखला की हर कड़ी में एक रस की चर्चा कर रहे हैं और उस रस पर आधारित कोई लोकप्रिय फ़िल्मी गीत बजा रहे हैं। शृंगार, अद्भुत और शांत रस के बाद आज बारी हास्य रस की। हास्य रस, यानी कि ख़ुशी के भाव जो अंदर से हम महसूस करते हैं। बनावटी हँसी को हास्य रस नहीं कहा जा सकता। हास्य रस इतना संक्रामक होता है कि आप इस रस को अपने आसपास के लोगों में भी पल में आग की तरह फैला सकते हैं। सीधे सरल शब्दों में हास्य का अर्थ तो यही होता है कि ख़ुश होना, जो चेहरे पर हँसी या मुस्कुराहट के ज़रिए खिलती है, लेकिन जो शुद्ध हास्य होता है वह हम अपने अंदर बिना किसी कारण के ही महसूस करते हैं। और यह भाव तब उत्पन्न होती है जब हम यह समझ या अनुभूति कर लेते हैं कि ईश्वर या जीवन हम पर महरबान है। इस तरह का हास्य एक दैवीय रस होता है, जिसे एक दैवीय तृप्ति भी कह सकते हैं। हास्य रस के जो सब से विपरीत रस हैं वो हैं करुण, भयानक और रौद्