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मिर्च, ब्रेक के बाद, तेरा क्या होगा जॉनी, नो प्रोब्लम और इसी लाईफ़ में के गानों के साथ हाज़िर है इस साल की आखिरी समीक्षा

हम हरबार किसी एक या किन्ही दो फिल्मों के गानों की समीक्षा करते थे और इस कारण से कई सारी फिल्में हमसे छूटती चली गईं। अब चूँकि अगले मंगलवार से हम दो हफ़्तों के लिए अपने "ताजा सुर ताल" का रंग कुछ अलग-सा रखने वाले हैं, इसलिए आज हीं हमें बची हुई फिल्मों को निपटाना होगा। हमने निर्णय लिया है कि हम चार-फिल्मों के चुनिंदा एक या दो गाने आपको सुनवाएँगे और उस फिल्म के गाने मिला-जुलाकर कैसे बन पड़े हैं (और किन लोगों ने बनाया है), वह आपको बताएँगे। तो चलिए इस बदले हुए हुलिये में आज की समीक्षा की शुरूआत करते हैं। आज की पहली फिल्म है "ब्रेक के बाद"। इस फिल्म में संगीत दिया है विशाल-शेखर ने और बोल लिखे हैं प्रसून जोशी ने। बहुत दिनों के बाद प्रसून जोशी की वापसी हुई है हिन्दी फिल्मों में... और मैं यही कहूँगा कि अपने बोल से वे इस बार भी निराश नहीं करते। अलग तरह के शब्द लिखने में इनकी महारत है और कुछ गानों में इसकी झलक भी नज़र आती है, हाँ लेकिन वह कमाल जो उन्होंने "लंदन ड्रीम्स" में किया था, उसकी थोड़ी कमी दिखी। बस एक गाना "धूप के मकान-सा" में उनका सिक्का पूरी तरह से

कैलाश खेर की सूफियाना आवाज़ है "अ फ़्लैट" मे तो वहीं ज़िंदगी से भरे कुछ गीत हैं "लाइफ़ एक्सप्रेस" में

ताज़ा सुर ताल ३९/२०१० विश्व दीपक - 'ताज़ा सुर ताल' के सभी श्रोताओं व पाठकों को मेरा नमस्कार और सुजॊय जी, आपको भी! सुजॊय - नमस्कार! विश्व दीपक जी, आज भी हम पिछले हफ़्ते की तरह दो फ़िल्में लेकर हाज़िर हुए हैं। साल के इन अंतिम महीनो में बहुत सी फ़िल्में प्रदर्शित होती हैं, और इसीलिए बहुत से नए फ़िल्मों के गानें इन दिनों जारी हो रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी हो गया है कि जहाँ तक सभव हो हम दो दो फ़िल्मों के गानें इकट्ठे सुनवाएँ। आज के लिए जिन दो फ़िल्मों को हमने चुना है, उनमें एक है ख़ौफ़ और मौत के करीब एक कहानी, और दूसरी है ज़िंदगी से लवरेज़। अच्छा विश्व दीपक जी, क्या आप भूत प्रेत पर यकीन रखते हैं? विश्व दीपक - देखिए, यह एक ऐसा विषय है कि जिस पर घण्टों तक बहस की जा सकती है। बस इतना कह सकता हूँ कि गीता में यही कहा गया है कि आत्मा अजर और अमर है, वह केवल शरीर बदलता रहता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इसका क्या एक्स्प्लेनेशन है, यह तो विज्ञान ही बता सकता है। सुजॊय - चलिए इतन बताइए कि फ़िल्मी आत्माओं के बारे में आपके क्या विचार हैं? विश्व दीपक - हाँ, यह एक मज़ेदार सवाल आपने पूछा है। एक पुरानी ह

"क्रूक" में कुमार के साथ तो "आक्रोश" में इरशाद कामिल के साथ मेलोडी किंग प्रीतम की जोड़ी के क्या कहने!!

ताज़ा सुर ताल ३८/२०१० सुजॊय - दोस्तों, नमस्कार, स्वागत है आप सभी का इस हफ़्ते के 'ताज़ा सुर ताल' में। विश्व दीपक जी, इस बार के लिए मैंने दो फ़िल्में चुनी हैं, और ये फ़िल्में हैं 'क्रूक' और 'आक्रोश'। विश्व दीपक - सुजॊय जी, क्या कोई कारण है इन दोनों को इकट्ठे चुनने के पीछे? सुजॊय - जी हाँ, मैं बस उसी पे आ रहा था। एक नहीं बल्कि दो दो समानताएँ हैं इन दोनों फ़िल्मों में। एक तो यह कि दोनों के संगीतकार हैं प्रीतम। और उससे भी बड़ी समानता यह है कि इन दोनों की कहानी दो ज्वलंत सामयिक विषयों पर केन्द्रित है। जहाँ एक तरफ़ 'क्रूक' की कहानी आधारित है हाल में ऒस्ट्रेलिया में हुए भारतीयों पर हमले पर, वहीं दूसरी तरफ़ 'आक्रोश' केन्द्रित है हरियाणा में आये दिन हो रहे ऒनर किलिंग्स की घटनाओं पर। विश्व दीपक - वाक़ई ये दो आज के दौर की दो गम्भीर समस्यायें हैं। तो शुरु किया जाए 'क्रूक' के साथ। मुकेश भट्ट निर्मित और मोहित सूरी निर्देशित 'क्रूक' के मुख्य कलाकार हैं इमरान हाश्मी, अर्जुन बजवा और नेहा शर्मा। प्रीतम का संगीत और कुमार के गीत। पहला गीत सुनते हैं