Skip to main content

Posts

Showing posts with the label jagjit kaur

चले आओ सैयां रंगीले मैं वारी रे....क्या खूब समां बाँधा था इस विवाह गीत ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 378/2010/78 जि स तरह से ५० से लेकर ७० के दशक तक के समय को फ़िल्म संगीत का सुनहरा दौर माना जाता है, वैसे ही अगर समानांतर सिनेमा की बात करें तो इस जौनर का सुनहरा दौर ८० के दशक को माना जाना चाहिए। इस दौर में नसीरुद्दिन शाह, ओम पुरी, शबाना आज़्मी, स्मिता पाटिल, सुप्रिया पाठक, फ़ारुख़ शेख़ जैसे अभिनेताओं ने अपने जानदार अभिनय से इस जौनर को चार चांद लगाए। दोस्तों, मैं तो आज एक बात क़बूल करना चाहूँगा, हो सकता है कि यही बात आप के लिए भी लागू हो! मुझे याद है कि ८० के दशक में, जो मेरे स्कूल के दिन थे, उन दिनों दूरदर्शन पर रविवार (बाद में शनिवार) शाम को एक हिंदी फ़ीचर फ़िल्म आया करती थी, और हम पूरा हफ़्ता उसी की प्रतीक्षा किया करते थे। साप्ताहिकी कार्यक्रम में अगले दिन दिखाई जाने वाली फ़िल्म का नाम सुनने के लिए बेचैनी से टीवी के सामने बैठे रहते थे। और ऐसे में अगर फ़िल्म इस समानांतर सिनेमा के या फिर कलात्मक फ़िल्मों के जौनर से आ जाए, तो हम सब उदास हो जाया करते थे। हमें तो कमर्शियल फ़िल्मों में ही दिलचस्पी रहती थी। लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते गए, वैसे वैसे इन समानांतर फ़िल्

तुम अपना रंजो गम, अपनी परेशानी मुझे दे दो....कितनी आत्मीयता के कहा था जगजीत कौर ने इन अल्फाजों को, याद कीजिये ज़रा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 335/2010/35 "मे री याद आएगी आती रहेगी, मुझे तू भुलाने की कोशिश ना करना"। दोस्तों, कुछ आवाज़ें भुलाई नहीं भूलती। ये आवाज़ें भले ही बहुत थोड़े समय के लिए या फिर बहुत चुनिंदा गीतों में ही गूंजी, लेकिन इनकी गूंज इतनी प्रभावी थे कि ये आज भी हमारी दिल की वादियों में प्रतिध्वनित होते रहते हैं। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कमचर्चित पार्श्वगायिकाओं पर केन्द्रित लघु शृंखला 'हमारी याद आएगी' की आज की कड़ी में एक और अनूठी आवाज़ वाली गायिका का ज़िक्र। ये वो गायिका हैं जिन्होने हमारा रंज-ओ-ग़म और परेशानियाँ हम से अपने सर ले लिया था। आप यक़ीनन समझ गए होंगे कि हम आज बात कर रहे हैं गायिका जगजीत कौर की। जगजीत जी ने फ़िल्मों के लिए बहुत कम गीत गाए हैं लेकिन उनका गाया हर एक गीत ख़ास मुकाम रखता है अच्छे संगीत के रसिकों के दिलों में। जगजीत कौर १९४८-४९ में बम्बई आ गईं थीं। उन्होने संगीतकार श्याम सुंदर के साथ फ़िल्म 'लाहौर' ('४९) के गीतों, "नज़र से...", "बहारें फिर भी आएँगी..." आदि की रिहर्सल की थीं, लेकिन बाद में वे गीत लता जी से गवा