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सुर संगम में आज - सुर बहार की स्वरलहरियाँ

सुर संगम - 29 - सुर-बहार दुर्भाग्यपूर्वक, कई कारणों से सुर-बहार अन्य तंत्र वाद्यों की तरह लोकप्रिय नहीं हो सका। इसका सबसे प्रमुख कारण है इसकी विशाल बनावट जिसके कारण इसे संभालना व इसके यातायात में बाधा आती है। शा स्त्रीय तथा लोक संगीत को समर्पित साप्ताहिक स्तम्भ 'सुर-संगम' के सभी श्रोता- पाठकों का मैं, सुमित चक्रवर्ती हार्दिक स्वागत करता हूँ हमारे २९वें अंक में। हम सबने कहीं न कहीं, कभी न कभी, किसी न किसी को यह कहते अवश्य सुना होगा कि "परिवर्तन संसार का नियम है।" इस जगत में ईश्वर की शायद ही कोई ऐसी रचना हो जिसमें कभी परिवर्तन न आया हो। इसी प्रकार संगीत भी कई प्रकार के परिवर्तनों से होकर ग़ुज़रता रहा है तथा आज भी कहीं न कहीं किसी रूप में परिवर्तित किया जा रहा है तथा भारतीय शास्त्रीय संगीत भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं रहा है। न केवल गायन में बल्कि शास्त्रीय वाद्यों में भी कई इम्प्रोवाइज़ेशन्स होते आए हैं। सुर-संगम के आज के अंक में हम चर्चा करेंगे ऐसे ही परिवर्तन की जिसने भारतीय वाद्यों में सबसे लोकप्रिय वाद्य 'सितार' से जन्म दिया 'सुर बहार' को। यूँ तो मान

'सुर संगम' में आज - 'तूती' की शोर में गुम हुआ 'नक्कारा'

सुर संगम - 20 - संकट में है ये शुद्ध भारतीय वाध्य प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख 'दुन्दुभी' नाम से किया गया है| देवालयों में इस घन वाद्य का अन्य वाद्यों- शंख, घण्टा, घड़ियाल आदि के बीच प्रमुख स्थान रहा है| परन्तु मंदिरों में नक्कारा की भूमिका ताल वाद्य के रूप में नहीं, बल्कि प्रातःकाल मन्दिर के कपाट दर्शनार्थ खुलने की अथवा आरती आदि की सूचना भक्तों अथवा दर्शनार्थियों को देने के रूप में ही रही है| 'सु र संगम' के साप्ताहिक स्तम्भ में आज मैं कृष्णमोहन मिश्र, सभी संगीतप्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ| आज के अंक में हम आपके साथ एक ऐसे लोक ताल वाद्य के बारे में चर्चा करेंगे जो भारतीय ताल वाद्यों में सबसे प्राचीन है, किन्तु आज इस वाद्य के अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं| "नक्कारखाने में तूती की आवाज़"; दोस्तों, यह मुहावरा हम बचपन से सुनते आ रहे हैं और समय-समय पर इसका प्रयोग भी करते रहते हैं| ऐसे माहौल में जहाँ अपनी कोई सुनवाई न हो या बहुत अधिक शोर-गुल में अपनी आवाज़ दब जाए, वहाँ हम इसी मुहावरे का प्रयोग करते हैं| परन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आने वाल

सुर संगम में आज - सुनिए पं. विश्वमोहन भट्ट और उनकी मोहन वीणा के संस्पर्श में राग हंसध्वनी

सुर संगम - 18 - मोहन वीणा: एक तंत्र वाद्य की लम्बी यात्रा 1966 के आसपास एक जर्मन हिप्पी लड़की अपना गिटार लेकर मेरे पास आई और मुझसे आग्रह करने लगी कि मैं उसे उसके गिटार पर ही सितार बजाना सिखा दूँ| उस लड़की के इस आग्रह पर मैं गिटार को इस योग्य बनाने में जुट गया कि इसमें सितार के गुण आ जाएँ सु प्रभात! सुर-संगम की एक और संगीतमयी कड़ी में मैं, सुमित चक्रवर्ती सभी श्रोताओं व पाठकों का स्वागत करता हूँ। आप सबको याद होगा कि सुर-संगम की १४वीं व १५वीं कड़ियों में हमने चैती पर लघु श्रंख्ला प्रस्तुत की थी जिसमें इस लोक शैली पर हमारा मार्गदर्शन किया था लखनऊ के हमारे साथी श्री कृष्णमोहन मिश्र जी ने। उनके लेख से हमें उनके वर्षों के अनुभव और भारतीय शास्त्रीय व लोक संगीत पर उनके ज्ञान की झलक मिली। अब इसे हमारा सौभाग्य ही समझिये कि कृष्णमोहन जी एक बार पुनः उपस्थित हैं सुर-संगम के अतिथि स्तंभ्कार बनकर, आइये एक बार फिर उनके ज्ञान रुपी सागर में गोते लगाएँ! ------------------------------------------------------------------------------------------ सुर-संगम के सभी श्रोताओं व पाठकों को कृष्णमोहन मिश्र का प्यार भरा

सुर संगम में आज - लोकप्रिय तालवाद्य घटम की चर्चा

सुर संगम - 17 - घटम जब विक्कु अपना अरंगेत्रम् देने मंच पर जा रहे थे, तब 'गणेश' नामक एक बच्चे ने उनका घटम तोड़ दिया। इसे घटना को वे आज भी अपने करियर के लिए शुभ मानते हैं। सु प्रभात! सुर-संगम के आज के अंक में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत में ताल की भूमिका सबसे महत्त्व्पूर्ण मानी गयी है। ताल किसी भी तालवाद्य से निकलने वाली ध्वनि का वह तालबद्ध चक्र है जो किसी भी गीत अथवा राग को गाते समय गायक को सुर लगाने के सही समय का बोध कराता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में जहाँ कुछ ताल बहुत रसद हैं वहीं कुछ ताल बहुत ही जटिल व जटिल भी हैं। तालों के लिए कई वाद्‍यों का प्रयोग किया जाता है जिनमें तबला, ढोलक, ढोल, मृदंगम, घटम आदि कुछ नाम हम सब जानते हैं। आज के इस अंक में हम चर्चा करेंगे एक बहुत ही लोकप्रिय तालवाद्य - घटम के बारे में। घटम मूलतः दक्षिण भारत के कार्नाटिक संगीत में प्रयोग किया जाने वाला तालवाद्य है। राजस्थान में इसी के दो अनुरूप मड्गा तथा सुराही के नामों से प्रचलित हैं। यह एक मिट्टी का बरतन है जिसे वादक अपनी उँगलियो, अंगूठे, हथेलियों व हाथ की एड़ी से इसके बाहरी

सुर संगम में आज - जल तरंग की मधुरता से तरंगित है आज रविवार की सुबह

सुर संगम - 13 - जल तरंग की उमंग जल तरंग असाधारण इसलिए है कि यह एक तालवाद्‍य भी है और घनवाद्‍य भी। मूलतः इसमें चीनी मिट्टी की बनी कटोरियों में पानी भर उन्हें अवरोही क्रम(descending order) अथवा पंक्ति अथवा किसी भी और सुविधाजनक समाकृति में सजाया जाता है। फिर इन कटोरियों में अलग-अलग परिमाण में जल भर कर इन्हें रागानुसार समस्वरित(tune) किया जाता है। जब इन कटोरियों पर बेंत अथवा लकड़ी के बने छड़ों से मार की जाती है तब इनकी कंपन से एक मधुर झनकार सी ध्वनि उत्पन्न होती है। न मस्कार! सुर-संगम की एक और संगीतमयी कड़ी में सभी श्रोता-पाठकों का हार्दिक अभिनंदन। कैसी रही आप सब की होली? आशा है सब ने खूब धूम मचाई होगी। मैनें भी हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड" के साथी सुजॉय दा के साथ मिलकर जम के होली मनाई। ख़ैर अब होली के बादल छट गए हैं और अपने साथ बहा ले गए हैं शीत एवं बसंत के दिनों को, साथ ही दस्तक दे चुकी हैं गरमियाँ। ऐसे में हम सब का जल का सहारा लेना अपेक्षित ही है। तो हमनें भी सोचा कि क्यों न आप सबकी संगीत-पिपासा को शाँत करने के लिए आज की कड़ी भी ऐसे ही किसी वाद्‍य पर आधारित हो जिसका संबंध जल से है। आ