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आता है तेरा नाम मेरे नाम से पहले..."निकाह" और "तलाक" के बीच उलझी एक फ़नकारा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #२१ वै से देखें तो पहेलियाँ महफ़िल-ए-गज़ल की पहचान बन गई हैं, और इन पहेलियों के कारण हीं हम और आप एक दूसरे से इस तरह जुड़ पाते हैं। लेकिन आज मैं "गज़ल से गुमशुदा शब्द पहचानो" वाली पहेली की बात नहीं कर रहा,बल्कि मैं उस पहेली की बात कर रहा हूँ, जो "फ़नकार" की शिनाख्त करने के लिए अमूमन पहले पैराग्राफ़ में पूछी जाती है|उसी पहेली को एक नए अंदाज में मैं अभी पेश करने जा रहा हूँ। पहेली पूछने से पहले यह बता दूँ कि हम आज जिनकी बात कर रहे हैं, वो एक "फ़नकारा" हैं,एक गज़ल गायिका और हिंदी फ़िल्मों से उनका गहरा ताल्लुक है। पहेली यह है कि नीचे दिए गए दो कथनों (उन्हीं के क़ोट्स) से उन फ़नकारा की शिनाख्त करें: १.मैं जब नई-नई गायिका हुई थी तो बहुत सारे लोग मुझे मोहतरमा नूरजहाँ की बेटी समझते थे।हम दोनों ने हीं क्लासिकल म्युज़िक में तालीम ली हैं और ऐसी आवाज़ें बाकी की आवाज़ों से ज्यादा खुली हुई होती हैं। मेरी आवाज़ की पिच और क्वालिटी उनकी आवाज़ से बहुत ज्यादा मिलती है। शायद यही कारण है कि लोगों द्वारा हमारे बीच यह रिश्ता करार दिया गया था। २. मेरी बेटी "ज़ा

कितना है दम नवम्बर के नम्बरदार गीतों में

अक्तूबर के अजयवीरों ने पहले चरण की समीक्षा का समर पार किया अब बारी है नवम्बर के नम्बरदार गीतों की. यहाँ हम आपके लिए, पहले और दूसरे समीक्षक, दोनों के फैसलों को एक साथ प्रस्तुत कर रहे हैं, तो जल्दी से जान लेते हैं कि नवम्बर के इन नम्बरदारों ने समीक्षकों को क्या कहने पर मजबूर किया है. उडता परिन्दा पहले समीक्षक - सुदीप यशराज के ऒल इन वन प्रस्तुति का संगीत पक्ष बेहद श्रवणीय है. संगीत के अरेंजमेंट को भी कम वाद्यों की मदत से मनचाहा इफ़ेक्ट पैदा कर रहा है. प्रख्यात प्रयोगधर्मी संगीतकार एस एम करीम इसी तरह के स्वरों का केलिडियोस्कोप बनाया करते है. लोरी से लगने वाले इस गाने के कोमल बोलों का लेखन भी उतना ही अच्छा हो नहीं पाया है, क्योंकि कई अलग अलग ख्यालात एक ही गीत में डाल दिये गये है. मगर यही तो एक फ़ेंटासी और मायावी स्वप्न नगरी का सपना देख रही नई पीढी़ का यथार्थ है. यही बात गायक सुदीप के पक्ष में जाती है. थोडा कमज़ोर गायन ज़रूर है, जो बेहतर हो सकता था, क्योंकि गायक की रचनाधर्मिता तो बेहद मौलिक और वाद से परे है. गीत - ४, धुन व् संगीत संयोजन - ३.५, आवाज़ व गायकी - ३.५, ओवारोल प्रस्तुति - ३.५.

वो बुतखाना, ये मयखाना सब धोखा है...

भोपाल शहर की एक अलसाई सी दोपहर, एक सूनी गली का आखिरी मकान जहाँ जमा हैं "मार्तण्डया" संगीत समूह के सभी संगीत सदस्य. फिज़ा में विरक्ति के स्वर हैं, जैसे सब देखा जा चुका है, अनुभव किया जा चुका है महसूस किया जा चुका है हुस्न और इश्क जैसी सब बातों का खोखलापन, अब कहाँ दिल लगायें. मन बैरागी चाहता है कि कहीं दूर जंगल में डेरा डाला जाए और दरवेशों में बसर किया जाए. कुछ ऐसे ही भाव लिए है वर्तमान सत्र का ये २० वां गीत. संजय द्विवेदी ने लिखा है इसे और स्वरबद्ध किया है चेतैन्य भट्ट और कृष्णा पंडित ने. आवाजें हैं कृष्णा पंडित, रुद्र प्रताप और अभिषेक की. टीम के गिटारिस्ट हैं सागर और रिदम संभाला है हेमंत ने. सुनते हैं इस उभरते हुए जबरदस्त सूफी संगीत समूह का ये नया दमदार गीत. अपनी बेशकीमती राय देकर इन नए संगीत योद्धाओं का मार्गदर्शन अवश्य करें. गीत को सुनने के लिए नीचे के प्लेयर पर क्लिक करें - After the success of their first song "sooraj chand aur sitare" with us, this new upcoming sufi band from bhopal "martandya" is back again, with a completely different flavored song -