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"खुद पे यकीं" एक मिशन है, जिसका उद्देश्य स्पष्ट है और अब दरकार है बस आपके सहयोग की

अभी कुछ दिन पहले हमने एक खास गीत जारी किया था, जिसका उद्देश्य शारीरिक विकलांगता से झूझ रहे लोगों के मन में आत्मविश्वास भरना था, जी हाँ, आपने सही पहचाना, ये गीत था " खुद पे यकीं ", जिसे आप सब ने बेहद सराहा है, इस गीत के सन्देश को और अधिक लोगों तक पहुँचाने के उद्देश्य से इस गीत के गायक बिस्वजीत नंदा ने खोज निकला एक ऐसा शख्स जो इस गीत से सम्बंधित तस्वीरों और कथनों को जोड़ कर एक वीडियो बना सके, पोलैंड का ये शख्स हिंदी नहीं समझता है पर बिस्वजीत ने उनका साथ दिया और बन गया ये वीडियो. जिसको आज हम आवाज़ पर खोल रहे हैं. जिस शख्स की हम बात कर रहे हैं उनके बारे में आप अधिक जानकारी अवश्य लें यहाँ अब देखिये ये वीडियो और अगर पसंद आये तो अपने मित्रों को भी अवश्य दिखाएँ, ताकि ये सन्देश अधिक से अधिक जरूरतमंदों तक पहुँच सकें

एक संवेदनशील फ़िल्म जी बी रोड की सच्चाईयों पर

दिल्ली की इन "बदनाम गलियों" पर गुप्त कैमरे से शूट हुई मनुज मेहता की लघु फ़िल्म का प्रीमिअर, आज आवाज़ पर ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के, ये लुटते हुए कारवाँ जिंदगी के, कहाँ है कहाँ है मुहाफिज़ खुदी के, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. ये पुरपेच गलियां, ये बेख्वाब बाज़ार, ये गुमनाम राही, ये सिक्कों की झंकार, ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. ताअफ़्फ़ुन से पुरनीम रोशन ये गलियां, ये मसली हुई अधखिली जर्द कलियाँ, ये बिकती हुई खोखली रंग रलियाँ, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. मदद चाहती हैं ये हव्वा की बेटी, यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी, पयम्बर की उस्मत, जुलेखा की बेटी, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. बुलाओ, खुदयाने-दी को बुलाओ, ये कूचे ये गलियां ये मंज़र दिखाओ, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक को लाओ, सना- ख्वाने- तकदीसे- मशरिक कहाँ हैं. साहिर लुधिअनावी की इन पंक्तियों में जिन गलियों का दर्द सिमटा है, उनसे हम सब वाकिफ हैं. इन्हीं पंक्तियों को जब रफी साहब ने अपनी आवाज़ दी फ़िल्म "प्यासा" के लिए (जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं..